Thursday, August 20, 2015

द्रष्टा

तुम हिमालय चले जा सकते हो, तुम संसार छोड़ सकते हो, लेकिन अगर तुम सोचते हो कि विचार मेरे है तो तुम कहीं नहीं गए। तुम वहीं हो। हिमालय में बैठे हुए तुम संसार में उतने ही होगे जितने यहां रह कर हो। क्‍योंकि विचार संसार है। तुम हिमालय में भी अपने विचार साथ लिए जाते है। तुम घर छोड़ देते हो, लेकिन असली घर अंदर है। असली घर विचार की ईटों से बना है। बाहर का घर असली घर नहीं है।

यह अजीब बात है, लेकिन यह रोज ही घटती है। मैं एक व्‍यक्‍ति को देखता हूं कि उसने संसार छोड़ दिया और फिर भी वह हिंदू ही है। वह संन्‍यासी हो जाता है। और फिर भी हिन्‍दू जैन बना रहा था। इसका क्‍या मतलब है। यह संसार का त्‍याग कर देता है। लेकिन विचारों का त्‍याग नहीं करता। वह अभी भी जैन है। वह अभी भी हिंदू है। उसका विचारों का संसार अभी भी कायम है। और विचारों का संसार ही असली संसार है।

अगर तुम देख सको कि कोई विचार मेरा नहीं है-ओर तुम देख सकोगे। क्‍योंकि तुम द्रष्‍टा होगे, और विचार विषय बन जाएंगे। जब तुम शांत होकर विचारों का निरीक्षण करोगे तो विचार विषय होंगे और तुम देखने वाले होगे। तुम द्रष्‍टा होंगे। तुम साक्षी होगे और विचार तुम्‍हारे सामने तैरते रहेंगे।

और अगर तुम गहरे देख सके, गहरे अनुभव कर सके। तो तुम देखोगें कि विचारों की कोई जड़ें नहीं है। तुम देखोगें कि विचार आकाश में बादलों की भांति तैर रहे है और तुम्‍हारे भीतर उसकी कोई जड़ें नहीं है। वे आते है और चले जाते है। तुम नाहक उनके शिकार हो गये हो। नाहक तुम्‍हारा उनके साथ तादात्म्य हो गया है। विचार का जो भी बादल तुम्‍हारे घर से गुजरता है, तुम कहते हो कि यह मेरा बादल है।

विचार बादलों जैसे है। तुम्‍हारी चेतना के आकाश से वे गुजरते रहते है और तुम उनसे लगाव निर्मित करते रहते हो। तुम कहते हो कि यह बादल मेरा है। और सिर्फ एक आवारा बादल है, जो गुजर रहा है। और यह गुजर जाएगा।

विज्ञान भैरव तंत्र

ओशो 

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