Friday, August 7, 2015

सातवां सूत्र, ‘जो तुम्हारे भीतर है, केवल उसी की इच्छा करो।’


बड़ा उलटा है। दो अर्थों में उलटा है। एक तो, हम सदा उसकी इच्छा करते हैं, इच्छा ही उसकी होती है, जो हमारे भीतर नहीं है। इच्छा का अर्थ ही यह होता है कि जो हमारे पास नहीं है, जिसका अभाव है, उसकी ही इच्छा होती है। इच्छा का अर्थ ही यह हुआ कि अभी हमारे पास नहीं है, कल हो सके। कल हो सकेगा, इसकी वासना ही तो इच्छा है।

यह सूत्र कहता है, ‘जो तुम्हारे भीतर है, केवल उसी की इच्छा करो।’

तो पहली तो बात कि जो तुम्हारे भीतर नहीं है, उसकी इच्छा मत करना। और हमारी सारी इच्छाएं तो उसी की हैं, जो हमारे भीतर नहीं है। हम तो उसी को मांग रहे हैं, जो हमारे पास नहीं है। और यह तर्कयुक्त भी है कि हम उसी को मांगें, जो पास नहीं है। जो पास है ही, उसे मांगने का क्या अर्थ? इसलिए पहली तो बात यह है कि इच्छा, जो भीतर है, उसकी होती ही नहीं। इसलिए सूत्र बड़ा उलटा है।

और दूसरे इसलिए भी यह सूत्र बड़ा गहरा और उलटा है कि जीवन में मिलता केवल वही है, जो हमारे पास था। वह तो कभी मिलता ही नहीं, जो हमारे भीतर था ही नहीं। कुछ भी हम पा लें, वह बाहर ही रह जाएगा। और जो बाहर ही रह जाएगा, वह हमें मिला कहां? वह हमसे छीना जा सकता है। कितना ही कोई धन इकट्ठा कर ले, उसकी चोरी हो सकती है, उस पर डाका पड़ सकता है। और न चोरी हो, न डाका पड़े, न राज्य समाजवादी हो, कुछ भी न हो, तो भी मौत छीन लेगी। मौत के क्षण में, जो भी आपने चाहा था, इकट्ठा किया था, वह आपके हाथ से गिर जाएगा। वह आपके पास था, लेकिन आपका नहीं हुआ था। आपका हो जाता, तो कोई भी उसे छीन न सकता था। इसलिए धर्म की दृष्टि में संपदा का अर्थ है, वह जो आपसे छीनी न जा सके। जो आपसे छीनी जा सके, उसका नाम विपदा है। क्योंकि उसको बचाओ, उसका कष्ट भोगो बचाने का। उसे दूसरों से छीनो, झपटो, उसका कष्ट भोगो। और सारा कर लेने के बाद भी ड़रे रहो, चौबीस घंटे कंपते रहो कि वह छिन न जाए। और फिर आखिर में वह छिने भी। तो धर्म कहता है कि इसको संपत्ति नासमझ कहते होंगे, यह विपत्ति है।

संपत्ति तो वही है जो तुम्हारे पास से छीनी न जा सके। तो ही अपनी है, तो ही अपनी कहने का कोई अर्थ है। लेकिन ऐसी क्या संपत्ति होगी जो आपसे न छीनी जा सके? अगर ऐसी कोई संपत्ति है, तो वह आपके भीतर मौजूद ही होगी, तो ही। जो भी हम बाहर से डालेंगे, वह वापस लिया जा सकता है। जो हमारे स्वभाव के साथ ही उपलब्ध हुआ है, वही हमसे नहीं छीना जा सकता। जो हमारी आत्मा में ही बसा है, वही हमसे नहीं छीना जा सकता। जो तुमसे छीनी न जा सके, उस सत्ता का नाम ही आत्मा है।

साधना सूत्र

ओशो 

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