Friday, August 14, 2015

प्रकृति की सब भूख प्‍यास कमी से पैदा होती है।

  शरीर में पानी की कमी है तो प्यास पैदा होती है। शरीर में भोजन की कमी है तो भूख पैदा होती है। शरीर में वीर्य ऊर्जा ज्‍यादा इकट्ठी हो गयी तो कामवासना पैदा होती है। फेंको उसे बाहर। उलीचो उसे फेंक दो उसे खाली हो जाओ ताकि भर सको।

शरीर दो तरह की जरूरतें है भरने की और निकालने की। जो चीज नहीं है उसे भरों जो ज्‍यादा है उसे निकालों। यह शरी की कुल दुनियां है। वीर्य भी एक मल है। जब ज्‍यादा हो जाये तो उसे फेंक दो बाहर,नहीं तो वि बोझिल करेगा। सिर को भारी करेगा।

ये जो दो जरूरतें है जब कमी हो तो भरों, जब ज्‍यादा हो तो निकालों। इसलिए दुनिया में इतनी कामवासना दिखाई देती है। उसका कारण यह है कि भरने की जरूरत काफी दूर तक लोगों की पूरी हो गयी है। निकालने की जरूरत बढ़ गई है। भूखा आदमी है, गरीब आदमी है मकान नहीं कपड़ा नहीं है, प्रतिपल भरने की चिंता है, तो निकालने की चिंता का सवाल नहीं उठता। इसलिए आज अगर अमरीका में एकदम कामुकता है तो उसका कारण आप यह मत समझना की अमरीका अनैतिक हो गया है। जिस दिन आप भी इतना समृद्धि में होंगे, इतनी की कामुकता इस देश में भी होगी। क्‍योंकि जब भरने का काम पूरा हो गया तो अब निकलने का ही काम बचा। जब भोजन की कोई जरूरत नहीं रह तो संभोग की ही, सेक्‍स की ही जरूरत रह जाती है। और कोई जरूरत बची नहीं।

भोजन भरना है संभोग निकलना है। तो भोजन ज्‍यादा होगा तो तकलीफ शुरू होगी। इसलिए सभी सभ्‍यताएं जब भोजन की जरूरत पूरा कर लेती है तब कामुक हो जाती है। इसलिए हम बड़े हैरान होते है कि समृद्ध लोग अनैतिक क्‍यों हो जाते है। गरीब आदमी सोचता है हम बड़े नैतिक है। अपनी पत्‍नी से तृप्‍त है। ये बड़े आदमी समृद्ध आदमी तृप्‍त नहीं होते,शांत क्‍यों नहीं होते, ये क्‍यों भागते रहते है।

यह जो स्‍थिति है, यह तो प्रकृति गत है। धर्म कहां से शुरू होगा है? धर्म वहां से शुरू होता है जहां भरना भी व्‍यर्थ हो गया। निकालना भी व्‍यर्थ हो गया। जहां दुःख तो व्‍यर्थ हो ही गया। सुख भी व्‍यर्थ हो गया। जहां प्रकृति व्‍यर्थ मालूम होने लगी।

महावीर वाणी-भाग दो
प्रवचन-दूसरा,
दिनांक 14 सितम्‍बर 1972,
पाटकर हाल, बम्‍बई

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