Friday, August 14, 2015

देश बंटे हुए है तुम्‍हारे मन के कारण

सीमा हमारे द्वारा आरोपित की गई है। यह हमारे कारण है, क्‍योंकि हम अनंत को देख नहीं पाते, इसलिए उसको विभाजित कर देते है। ऐसा हमने हर चीज के साथ किया है। तुम अपने घर के आस-पास बाड़ लगा लेते हो। और कहते हो कि ‘यह जमीन मेरी है, और दूसरी और किसी और की जमीन है।’ लेकिन गहरे में तुम्‍हारी और तुम्‍हारे पड़ोसी की जमीन एक ही है। वह बाड़ केवल तुम्‍हारे ही कारण है। जमीन बंटी हुई नहीं है। पड़ोसी और तुम बंटे हुए हो अपने-अपने मन के कारण।

देश बंटे हुए है तुम्‍हारे मन के कारण। कहीं भारत समाप्‍त होता है और पाकिस्‍तान शुरू होता है। लेकिन जहां अब पाकिस्‍तान है कुछ वर्ष पहले वहां भारत था। उस समय भारत पाकिस्‍तान की आज की सीमाओं तक फैला हुआ था। लेकिन अब पाकिस्‍तान बंट गया, सीमा आ गई लेकिन जमीन वही है।

मैंने एक कहानी सुनी है जो तब घटी जब भारत और पाकिस्‍तान में बंटवारा हुआ। भारत और पाकिस्‍तान की सीमा पर ही एक पागलखाना था। राजनीतिज्ञों को कोई बहुत चिंता नहीं थी कि पागलखाना कहां जाए। भारत में कि पाकिस्‍तान में। लेकिन सुपरिनटैंडैंट को चिंता थी। तो उसने पूछा कि पागलखाना कहां रहेगा। भारत में या पाकिस्‍तान में। दिल्‍ली से किसी ने उसे सूचना भेजी कि वह वहां रहने वाले पागलों से ही पूछ ले और मतदान ले-ले कि वे कहां जाना चाहते है।

सुपरिन्‍टेंड़ेंट अकेला आदमी था जो पागल नहीं था और उसने उनको समझाने की कोशिश कि। उसने सब पागलों को इकट्ठा किया और उन्‍हें कहां, ‘अब यह तुम्‍हारे ऊपर है, यदि तुम पाकिस्‍तान में जाना चाहते हो तो पाकिस्‍तान में जा सकते हो।’ लेकिन पागलों ने कहां, ‘हम यही रहना चाहते है। हम कहीं भी नहीं जाना चाहते।’ उसने उन्‍हें समझाने की बहुत कोशिश की। उसने कहां, ‘तुम यहीं रहोगे। उसकी चिंता मत करो। तुम यहीं रहोगे लेकिन तुम जाना कहां चाहते हो।’ वे पागल बोले, ‘लोग कहते है कि हम पागल है, पर तुम तो और भी पागल लगते हो। तुम कहते हो कि तुम भी यहीं रहोगे और हम भी यहीं रहेंगे। कहीं जाने की चिता नहीं है।’

सुपरिन्‍टेंड़ेंट तो मुश्‍किल में पड़ गया कि इन्‍हें पूरी बात किस तरह समझाई जाए। एक ही उपाय था। उसने एक दीवार खड़ी कर दी और पागल खाने के दो बराबर हिस्‍सों में बांट दिया। एक हिस्‍सा पाकिस्‍तान हो गया एक हिस्‍सा भारत बन गया। और कहते है कि कई बार पाकिस्‍तान वाले पागल खाने के कुछ पागल दीवार पर चढ़ आते है। और भारत वाले पागल भी दीवार कूद जाते है और वे अभी भी हैरान है कि क्‍या हो गया है। हम है उसी जगह पर और तुम पाकिस्‍तान चले गए हो हम भारत चले गए है। और गया कोई कहीं भी नहीं।

वे पागल समझ ही नहीं सकते, वे कभी भी नहीं समझ पाएंगे, क्‍योंकि दिल्‍ली और कराची में और भी बड़े पागल है। हम बांटते चले जाते है। जीवन अस्‍तित्‍व बंटा हुआ नहीं है। सभी सीमाएं मनुष्‍य की बनाई हुई है। वे उपयोगी है यदि तुम उसके पीछे पागल न हो जाओ और यदि तुम्‍हें पता हो कि वे बस कामचलाऊ है, मनुष्‍य की बनाई हुई है। मात्र उपयोगिता के लिए है; असली नहीं है, यथार्थ नहीं है, बस मान्‍यता मात्र है, कि वे उपयोगी तो है, लेकिन उसमें कोई सच्‍चाई नहीं है।

विज्ञान भैरव तंत्र

ओशो 

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