Sunday, September 20, 2015

सत्यार्थी, कहां है गोली?

मेरे एक परिचित हैं, बड़े धनपति हैं। एक बार मेरे साथ ट्रेन में सफर किया। कभी मुझे कहा नहीं था, लेकिन ट्रेन में अकेले ही थे साथ मेरे। बात होते -होते बात में से बात निकल आई। उन्होंने कहा कि आज पूछने का साहस करता हूं। मेरी जिंदगी में एक दुर्घटना अमावस की तरह छाई हुई है। और दुर्घटना यह है कि मैंने अपने सारे रिश्तेदारों को, मित्रों को, सबका इतना दिया कि आज मेरे सब रिश्तेदार धनी हैं, सब मित्र धनी हैं, सब परिचित धनी है। ( धन उनके पास काफी है। और उन्होंने जरूर दिल खोल कर दिया है। ) मगर कोई भी मुझसे प्रसन्न नहीं! उल्टे वे सब मुझसे नाराज हैं। उल्टे वे मुझे बर्दाश्त ही नहीं कर सकते। यह मेरी समझ में नहीं आता कि मैंने इतना किया, सबके लिए किया।

… और यह सच है। मैं उनके रिश्तेदारों को जानता हूं; जो भिखमंगे थे, आज अमीन हैं। मैं उनके मित्रों को जानता हूं; जिनके पास कुछ नहीं था, आज सब कुछ है। यह बात सच है। इस बात में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं कि उन्होंने बहुत दिया है और देने में उन्होंने जरा भी कृपणता नहीं की है। उनके हाथ बड़े मुक्त हैं। मुक्त – भाव से दिया है। तो स्वभावत: उनका प्रश्न सार्थक है कि मुझसे लोग नाराज क्यों हैं?

मैंने कहा कि आप को समझ में नहीं आता, लेकिन मैं एक बात पूछता हूं र उससे बात स्पष्ट हो जायेगी। आपने इन मित्रों को, परिजनों को, परिवार वालों को उत्तर में कुछ आपके लिए करने दिया है कभी? उन्होंने कहा कि नहीं, कोई जरूरत ही नहीं। मेरे पास सब है। और अगर कभी कोई कुछ करना भी चाहा है तो मैंने इनकार किया है कि क्या फायदा! मेरे पास बहुत है। तो मैंने किसी से कोई प्रत्युत्तर में तो लिया नहीं।

बस मैंने कहा : बात साफ हो गई, क्यों वे नाराज हैं। वे आपको क्षमा नहीं कर पा रहे। वे आपको कभी क्षमा नहीं कर पायेंगे। आप ने उनको नीचा दिखाया है। उनके भीतर ग्लानि है। वे जानते हैं कि आप ऊपर हैं, दानी हैं, दाता हैं और हम भिखमंगे हैं। भिखमंगे कभी दाताओं को क्षमा नहीं कर सकते।

आप एक काम करो। उनसे मैंने कहा : छोटे -छोटे काम उनको भी आप के लिए करने दो। मुझे पता है आपको कोई जरूरत नहीं, मगर छोटे -छोटे काम…। आप बीमार हो, कोई एक गुलाब का फूल ले आये, तो ले आने दो और गुलाब का फूल लेकर अनुग्रह मानो। कभी किसी मित्र को कह दिया कि भाई यह काम तुमसे ही हो सकेगा, यह मुझसे नहीं हो पा रहा, तुम्हीं निपटाओ। जरा मौका दो उन्हें कुछ करने का। छोटे -छोटे मौके। जरूर मुझे पता है कि आपको कुछ भी नहीं, आप सारे अपने काम खुद ही कर ले सकते हैं। लेकिन अगर उनको थोड़ा कुछ करने का आप मौका दे सको तो वे आपको धीरे – धीरे क्षमा करने में समर्थ हो पायेंगे। उनको लगेगा : हम ने लिया ही नहीं, दिया भी! उनको लगेगा : हम नीचे ही नहीं हैं, समतुल हो गये।

मगर यह उनके अहंकार के विपरीत है। यह वे नहीं कर पाये। दो वर्ष वाद जब मैंने उनसे पूछा, उन्होंने कहा : मुझे क्षमा करें! मैं किसी से ले नहीं सकता। गुलाब का फूल भी नहीं ले सकता! यह मेरी जीवन-प्रक्रिया के विपरीत है। मैं यह बात मान ही नहीं सकता कि मैं और किसी से लूं। मैंने देना ही जाना है, लेना नहीं। फिर मैंने कहा कि जिनको आपने दिया है वे आपके दुश्मन रहेंगे।

आनंद सत्यार्थी! यही कठिनाई यहां है : इसलिए नहीं कि मैं तुमसे कुछ लेने में संकोच करूं। इसलिए नहीं कि मेरा कोई अहंकार है। मगर यह जो देना है यह ऐसा है कि इसका लौटाना हो ही नहीं सकता। मैं तो सब उपाय करता हूं छोटे -छोटे करता हूं जो भी मुझसे बन सकता है वह उपाय करता हूं। छोटे -छोटे काम लोगों को दे देता हूं। कोई जा रहा है अमेरिका, उसको कह देता हूं : एक कलम मेरे लिए खरीद लाना, कि एक पौधा मेरे बगीचे के लिए ले आना। ऐसे मेरे बगीचे में जगह नहीं है। और कलमें इतनी इकट्ठी हो गई हैं कि विवेक मुझसे बार -बार पूछती है, इनका करियेगा क्या? उसको सम्हालना पड़ता है, साफ-सुथरा रखना पड़ता है। और जब फिर कोई जाने लगता है और मैं कहता हूं कि मेरे लिए एक कलम ले आना, तो उसकी समझ के बाहर है कि यह जरूरत क्या है?

जरूरत केवल इतनी है कि मैं तुम्हें एक मौका देना चाहता हूं कि कुछ तुमने मेरे लिए किया।

अभी मैं जल्दी नहीं चाहता कि कोई मुझे गोली मार दे। बाद में मार देगा। जरा ठहरो, थोड़ा काम हो जाने दो। वह तो आखिरी पुरस्कार है। लेकिन अभी तो काम शुरू ही शुरू हुआ। अभी जरा सम्हालना। आनंद सत्यार्थी, गोली वगैरह रखना तैयार, मगर सम्हालना। थोड़ा काम व्यवस्थित हो जाने दो। थोड़े संन्यास का यह रंग छितर जाने दो पृथ्वी पर!

हां कोई -न-कोई गोली मारेगा। और संभावना यही है कि कोई संन्यासी ही गोली मारेगा-जिसके बिलकुल बर्दाश्त के बाहर हो जायेगा, जो सह न सकेगा; जिसको इतना मिलेगा कि उत्तर देने का उसके पास कोई उपाय न रह जायेगा। आखिर जीसस को जुदास ने बेचा-तीस रुपये में! और जुदास जीसस का सबसे बड़ा शिष्य था, सबसे प्रमुख था। उसने ही जीसस को मरवाया। उसने ही सूली लगवायी। और देवदत्त ने बुद्ध को मारने बहुत चेष्टाएं कीं- और देवदत्त बुद्ध का भाई था, अग्रणी शिष्य था।

यह सब स्वाभाविक है। इसके पीछे एक जीवन का गणित है। गणित यह है कि तुम इतने दब जाते हो ऋण से कि तुम करो क्या, गोली न मारो तो करो क्या!? मगर अभी नहीं, पर। रुको। ठीक समय पर मैं खुद ही तुमसे कह दूंगा : सत्यार्थी, कहां है गोली?

हंसा तो मोती चुगे

ओशो 

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