Thursday, September 24, 2015

मन के जाल

जिस दिन तुम भय और लोभ से मुक्त हो गये, उसी दिन तुम देख लोगे न तो कोई स्वर्ग है, न कोई नर्क है। जब तक तुम भय से भरे कांप रहे हों, नर्क में ही हो। और जब तक तुम स्वर्ग से लालायित हो,, डांवांडोल हो रहे हो, तब तक दोनों चीजें सत्य मालूम पड़ती हैं। मगर वे प्रतीतिया हैं, भ्रांतिया हैं।

जहां मन थिर हुआ, शांत हुआ, मौन हुआ: दोनों ही खो जाते हैं। और उन दोनों के खो जाने पर क्या मांगोगे लोक! कौन सी कामनाएं करोगे?

सुना है मैंने : एक आदमी भूलाभटका स्वर्ग पहुंच गया। थका मांदा  था, एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने को लेट गया। उसे पता न था कि यह कल्पवृक्ष है; इसके नीचे लेटो और बैठो और जो भी कामना करो पूरी हो जाती है! 
कहानी मधुर है: भूखा था। मन में खयाल उठा कि ‘काश! इस वक्त कहीं से भोजन मिल जाता—बड़ी भूख लगी है!’ ऐसा उठना था विचार का कि तत्‍क्षण सुस्वादु भोजनों से भरे हुए स्वर्णथाल प्रगट हो गये। वह इतना भूखा था, इतना थका था कि उसने सोचा भी नहीं कि ये कहां से आये कौन लाया! भूखा आदमी क्या सोचे? ये सब भरे पेट की बातें हैं। उसने तो जल्दी से भोजन किया।

पेट भर गया, तो सोचा कि ‘कहीं से कुछ पीने को मिल जाये कोकाकोला फेंटा! नहीं तो लिम्‍का ही सही!’ और देखकर हैरान हुआ कि कोकाकोला, फेंटा, लिम्‍का  सब चले आ रहे हैं! थीड़ा चौंका भी कि कोकाकोला तो बंद हो गया था! मगर तस्करों की कृपा से सभी कुछ उपलब्ध होता है। तस्करी ‘जो न कर दे थोड़ा…….! असंभव को संभव बना देती है। फिर किसको फिक्र पड़ी थी! अभी तो बहुत थका था; कोकाकोला पीकर लेटने लगा। लेटने लगा तो सोचा कि ‘पेट तो भर गया, मगर कंकड़ पत्थर हैं। जमीन साफ सुथरी नहीं। ऐसे समय में तो कोई गद्दी होनी थी। सुंदर सेज होती, तो आज जैसी गहरी नींद आती, जैसा घोड़े बेचकर आज सोता ऐसा कभी नहीं सोया था!’

अचानक देखकर हैरान हुआ कि पलंग चला आ रहा है! थीड़ा सकुचाया भी कि क्या क्या हो रहा है! मगर नींद इतनी गहरी आ रही थी कि उसने अभी कहा कि ‘कि बाद में देखेंगे। यह विचार वगैरह सब बाद में कर लेंगे।’

सो गया पलंग पर। बड़ा चकित हुआ कि डनलप की गद्दियां! मगर उसने कहा कि पीछे जगकर देखेंगे।

जब जगा, तब थीडासा चिंतित हुआ कि इस निर्जन स्थान में, इस वृक्ष के नीचे वृक्ष के आस पास न तो कहीं कोई रेफ्रिजरेटर दिखाई पड़ता है; न कोई आदम जात दिखाई पड़ता है। कोकाकोला प्रगट हुए! भोजन आया! यही नहीं बिस्तर भी प्रगट हुआ! टटोलकर बिस्तर ठीक से देखा भी कि मैं कोई कल्पना कर रहा हूं?  लेकिन है! थोड़ा डरा: कि कहीं कोई भूत प्रेत तो नहीं हैं इस वृक्ष में!

बस, जैसे ही उसने सोचा कि ‘कहीं कोई भूतप्रेत तो न हों! कहीं कोई भूतप्रेत तो नहीं छिपे हैं! मैं किन्हीं भूतप्रेतों के चक्कर में तो नहीं पड़ गया हूं?’ कि तत्‍क्षण चारों तरफ भूतप्रेत एकदम जैसे आनंदमार्गी तांडव नृत्य करते हैं ऐसा आदमियों की खोपडियां लेकर एकदम नृत्य करने लगे! उसने कहा, ‘मारे गये!’ और वह  मारा गया!

कल्पवृक्ष के नीचे तो जो कहोगे, वही हो जायेगा। वह कोकाकोला बहुत महंगा पड़ा! मगर अब तो बहुत देर हो चुकी थी। जब कह ही चुका कि मारे गये, तो वे सब आनंदमार्गी पटककर खोपड़ियां वगैरह उसकी गर्दन तोड़ दी उन्होंने। इसी तरह खोपडियां इकट्ठी करते हैं, नहीं तो फिर खोपडिया इकट्ठी कहां से करोगे? यही जो कल्पवृक्षों के नीचे फंस जाते हैं, इन्हीं की खोपडिया फिर तांडव नृत्य के काम में आती हैं!

न तो कहीं कोई स्वर्ग है, न कहीं कोई नर्क है। न तो डरो नर्क की अग्नि से न कामना करो स्वर्ग के सुखों की। सब तुम्हारे मन के जाल हैं।

अनहद में बिसराम

ओशो 

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