Saturday, September 19, 2015

उद्विग्न मत हो

हर घटना के पीछे उससे विपरीत क्षण आता है। हर घटना के पीछे उससे विपरीत मौजूद रहता है। क्योंकि इस जगत में बिना विपरीत के कुछ भी नहीं है। इसकी प्रतीक्षा करना। जब दुख तुम्हें घेर ले, तो तुम दुख से बहुत उद्विग्न मत हो जाना। दुखी होना, लेकिन उद्विग्न मत होना। उद्विग्नता का अर्थ समझ लेना।

दुख काफी दुख है, हम दुख से तो दुखी होते ही हैं, फिर दुख के कारण दुखी होते हैं। ये दोनों भिन्न बातें हैं। दुख से दुखी होना शुद्ध है। फिर हम इसलिए दुखी होते हैं कि हम क्यों दुखी हुए! कि जगत में दुख क्यों है, हम इससे दुखी होते हैं! कि दुख नहीं होना चाहिए, इससे दुखी होते हैं! यह दूसरा दुख दार्शनिक है और खतरनाक है। इस दूसरे दुख से बचना, यह सत्य नहीं है। क्योंकि यह दूसरा दुख पहले वाले दुख के पीछे जो सुख की किरण आती है, उसको डुबा लेगा।

अब यह बड़े मजे का मामला है कि आदमी कैसे उलझता है! आप परेशान हैं, कुछ बुरा नहीं है। लेकिन फिर परेशानी से परेशान हैं, वह बहुत बुरा है। आप अशांत हैं, कुछ बुरा नहीं है, शिक्षण का हिस्सा है। फिर आप अशांति से अशांत हैं, तब आप खतरे में पड़ गए, तब आप एक ऐसे चक्कर में पड़ रहे हैं, जिसका कोई अंत नहीं है। वह अंतहीन है। इसलिए कहता हूं कि अंतहीन है, कि अब आप कितने भी अशांत हो सकते हैं, और इस अशांति से शांति का कभी भी कोई अनुभव नहीं होगा।

समझिए ऐसा, कि मैं अशांत हूं फिर इसलिए अशांत हूं कि क्यों अशांत हूं। मैं और भी अशांत हो सकता हूं कि अब मैं क्यों अशांत हूं। जैसा मैंने आपसे कहा कि अशांति से अशांत मत होइए। आप पुराना तो जारी रख सकते हैं, मेरी शिक्षा और जोड़ ले सकते हैं। तब आप अशांत हो रहे हैं; फिर उससे अशांत हो रहे हैं अपनी आदत की वजह से; फिर मुझे सुन लिया, अब आप तीसरी अशांति पैदा कर रहे हैं कि अशांति से अशांत नहीं होना चाहिए। अब यह तीसरी अशांति है। यह इनफिनिट है। अब आप इसमें जा सकते हैं अंतहीन और कोई सुख का, शांति का क्षण इसमें से न आएगा।

वास्तविक अशांति के पीछे शांति का क्षण है। काल्पनिक अशांति के पीछे कोई शांति का क्षण नहीं है। क्योंकि कल्पना तथ्य नहीं है, उस पर जगत के नियम लागू नहीं होते। वह आपके मन का ही खेल है। इसलिए ध्यान रखना, वास्तविक दुख बुरा नहीं है, काल्पनिक सुख भी बुरा है, क्योंकि आप सपने में घूम रहे हैं। वास्तविक दुख की एक मौज है, क्योंकि उसके पीछे वास्तविक सुख का क्षण आएगा ही, अनिवार्य है, इससे अन्यथा नहीं हो सकता।

मगर आप अगर दूसरे तीसरे दुख में पड़ गए, झूठे दुख में पड़ गए, दुख के कारण आपने और नए मानसिक दुख खड़े कर लिए, तो उनमें आप इतने ज्यादा डूब जाएंगे, इतने बादलों से घिर जाएंगे, कि वह जो किरण सुख की पैदा होती है, जो होती ही है, उससे आप चूक जाएंगे। अंधेरी रात के बाद सुबह है। लेकिन रात से अगर आप इतने भयभीत, और अंधेरे से इतने पीड़ित हो गए हों, कि आंख ही बंद करके बैठे रहें, कि अंधेरा इतना ज्यादा है कि क्या फायदा आंख खोलने से, तो आप सुबह को चूक जाएंगे, जो कि रात के बाद है।

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