Thursday, September 3, 2015

दूसरे के मालिक बन जाने की एक तरकीब और साजिश

अहंकार के नीचे जो प्रेम से आपको अपनी छाती से लगाता है, आप थोड़ी देर में ही पाएंगे कि वे हाथ नहीं थे, वे लोहे की जंजीरें थीं जिन्होंने आपके प्राणों को जकड़ लिया। अहंकार के नीचे जो प्रेम, आपको अच्छी अच्छी बातें कहता है और मधुर वचन कहता है और गीत गाता है, थोड़ी देर में ही आपको पता चलेगा कि वे गीत केवल प्रारंभिक प्रलोभन थे, उन गीतों के भीतर बहुत जहर था। और जो प्रेम फूलों की शक्ल लेकर आता है अहंकार की छाया में, फूल को पकड़ते ही आपको पता चलेगा कि भीतर बड़े कांटे थे, जिन्होंने आपको छेद दिया है।


मछलियां पकड़ने लोग जाते हैं और कांटों के ऊपर आटा लगा कर मछलियां पकड़ लेते हैं। और अहंकार मालिक बनना चाहता है दूसरे लोगों का, पजेस करना चाहता है उनको और तब वह प्रेम का आटा लगा कर गहरे कांटों से लोगों को छेद लेता है। प्रेम के धोखे में जितने लोग दुख और पीड़ा पाते हैं उतने लोग किसी नरक में भी पीड़ा और दुख नहीं पाते। प्रेम के इस डिसइलूजन में सारी पृथ्वी और सारी मनुष्य की जाति नरक भोगती है। लेकिन फिर भी यह खयाल नहीं आता कि अहंकार के नीचे प्रेम झूठा है, इसलिए यह सारा नरक पैदा होता है।


अहंकार जिस प्रेम में जुड़ा है, वह प्रेम जेलेसी का, ईर्ष्या का एक रूप है। और इसलिए प्रेमी जितने जेलेस होते हैं, जितने ईर्ष्यालु होते हैं उतना कोई भी ईर्ष्यालु नहीं होता। अहंकार से जो प्रेम जुड़ा है वह घृणा का, दूसरे को पजेस करने का, दूसरे के मालिक बन जाने की एक तरकीब और साजिश है। वह एक कासपिरैसि है; इसलिए प्रेम करने की बातें करने वाले लोग जितने लोगों की गर्दन कस लेते हैं, उतना और कोई भी नहीं कसता। यह सारी स्थिति अहंकार के नीचे प्रेम के कारण पैदा होती है और अहंकार के साथ प्रेम का कभी भी कोई संबंध नहीं हो सकता।

अंतरयात्रा शिविर

ओशो 

No comments:

Post a Comment