Saturday, September 12, 2015

पुनरुक्ति का सम्मोहन

पुनरुक्ति का एक सम्मोहन है, जादू है। एडोल्फ हिटलर ने अपनी आत्मकथा ‘मेनकेंप्‍फ’ में लिखा है कि झूठ को अगर बार बार दोहराया जाए तो वह सत्य हो जाता है। और उसने ऐसा लिखा ही नहीं, उसने बड़े से बड़े झुठे को सत्य करके दिखा भी दिया, सिर्फ पुनरुक्ति के बल पर। दोहराए गया, दोहराए गया, पहले लोग हंसे, फिर लोग सोचने लगे, फिर धीरे  धीरे लोग स्वीकार करने लगे।

विज्ञापन की सारी कला ही इस बात पर आधारित है : दोहराए जाओ। फिर चाहे हेमा मालिनी का सौन्दर्य हो, चाहे परवीन बाबी का, सबका राज लक्स टायलेट साबुन में है। दोहराए जाओ अखबारों में, फिल्मों में, रेडियो पर, टेलीविजन पर और धीरे धीरे लोग मानने लगेंगे। और एक अचेतन छाप पड़ जाती है। और फिर तुम जब बाजार में साबुन खरीदने जाओगे और दुकानदार पूछेगा, कोन सा साबुन? तो तुम सोचते हो कि तुम लक्स टायलेट खरीद रहे हो! तुमसे खरीदवाया जा रहा है। वह जो तुमने पढ़ा है बार बार! तुम कहते हो, लक्स टायलेट दे दो। तुम यही सोचते हो, यही मानते हो कि तुमने खरीदा, मगर तुम भांति में हो। पुनरुक्ति ने तुम्हें सम्मोहित कर दिया।

नये नये जब पहली दफा विद्युत के विज्ञापन बने तो वे थिर होते थे। फिर वैज्ञानिकों ने कहा कि थिर का यह परिणाम नहीं होता। जैसे लक्स टायलेट लिखा हो बिजली के अक्षरों में और थिर रहें अक्षर, तो आदमी एक ही बार पढ़ेगा। लेकिन अक्षर जलें, बुझे, जलें, बुझे, तो जितनी बार जलेंगे, बुझेंगे, उतनी बार पढ़ने को मजबूर होना पड़ेगा। तुम चाहे कार में ही क्यों न बैठकर गुजर रहे होओ, जितनी देर तुम्हें बोर्ड के पास से गुजरने में लगेगी, उतनी देर में कम से कम दस पंद्रह दफा अक्षर जलेंगे, बुझेंगे, उतनी बार पुनरुक्ति हो गयी। उतनी पुनरुक्ति तुम्‍हारे भीतर बैठ गयी।

दीपक बारा नाम का 

ओशो 
 

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