Monday, October 12, 2015

प्रेम+ध्‍यान=परमात्‍मा १

सवाल मनुष्‍यों के साथ ही प्रेम पूर्णा होने का नहीं, यह सवाल नहीं है कि मां को प्रेम दो? ये गलत बात है। जब कोई मां अपने बच्‍चे को कहती है कि में तेरी मां हूं इसलिए प्रेम कर। तब वह गलत शिक्षा दे रही है। क्‍योंकि जिस प्रेम में इसलिए लगा हुआ है। इसलिए वह प्रेम झूठा है। जो कहता है, इसलिए प्रेम करो कि मैं बाप हूं,वह गलत शिक्षा दे रहा है। वह कारण बता रहा है प्रेम का।

प्रेम अकारण होता है, प्रेम कारण सहित नहीं होता है।

मां कहती है, मैं तेरी मां हूं,मैंने तुझे इतने दिन पाला-पोसा,बड़ा किया, इसलिए प्रेम कर। वह वजह बता रही है, प्रेम खत्‍म हो गया। अगर वह प्रेम भी होगा तो बच्‍चा झूठा प्रेम दिखाने की कोशिश करेगा। क्‍योंकि यह मां है। इसलिए प्रेम दिखाना पड़ रहा है।

नहीं प्रेम की शिक्षा का मतलब है: प्रेम का कारण नहीं; प्रेमपूर्ण होने की सुविधा और व्‍यवस्‍था कि बच्‍चा प्रेमपूर्ण हो सके।

जो मां कहती है कि मुझसे प्रेम कर, क्‍योंकि मैं मां हूं, वह प्रेम नहीं सिखा रही। उसे यह कहना चाहिए कि यह तेरा व्‍यक्‍तित्‍व,यह तेरे भविष्‍य, यह तेरे आनंद की बात है, कि जो भी तेरे मार्ग पर पड़ जाये, तू उससे प्रेमपूर्ण हो पत्‍थर पड़ जाए। फूल पड़ जाये, आदमी पड़ जाये, जानवर पड़ जाये, तू प्रेम देना। मां को प्रेम देने का नहीं, तेरे प्रेमपूर्ण होने का है। क्‍योंकि तेरा भविष्‍य इस पर निर्भर करेगा। कि तू कितना प्रेमपूर्ण है। तेरा व्‍यक्‍तित्‍व कितना प्रेम से भरा हुआ है। उतना तेरे जीवन में आनंद की संभावना बढ़ेगी।

प्रेम पूर्ण होने की शिक्षा चाहिए मनुष्‍य को, तो वह कामुकता से मुक्‍त हो सकता है।

लेकिन हम तो प्रेम की कोई शिक्षा नहीं देते। हम तो प्रेम का कोई भाव पैदा होने नहीं देते। हम तो प्रेम के नाम पर जो भी बात करते है वह झूठे ही सिखाते है उनको।

क्‍या आपको पता है कि एक आदमी एक के प्रति प्रेमपूर्ण है और दूसरे के प्रति घृणा पूर्ण हो सकता है? यह असंभव है।

प्रेमपूर्ण आदमी प्रेमपूर्ण होता है। आदमी से कोई संबंध नहीं है उस बात का। अकेले में बैठता है तो भी प्रेमपूर्ण होता है। कोई नहीं होता तो भी प्रेमपूर्ण होता है। प्रेमपूर्ण होना उसके स्‍वभाव की बात है। वह आपसे संबंधित होने का सवाल नहीं है।

क्रोधी आदमी अकेले में भी क्रोधपूर्ण होता है। घृणा से भरा आदमी घृणा से भरा हुआ होता है। वह अकेले भी बैठा है तो आप उसको देख कर कह सकते है कि यह आदमी क्रोधी है, हालांकि वह किसी पर क्रोध नहीं कर रहा है। लेकिन उसका सारा व्‍यक्‍तित्‍व क्रोधी है।

क्रमशः 

सम्भोग से समाधी की ओर 

ओशो 



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