Friday, October 9, 2015

अहंकार के सुक्ष्म रूप

जब तुम एक बुराई को काटते हो, तो तुम दस बुराइयां पैदा भी कर रहे हो। एक बुराई काटते हो, निन्यानबे बुराइयां तो तुम्हारे भीतर मौजूद हैं। वे तुम्हारी एक भलाई को भी रंग देंगी,उसे भी बुरा कर देंगी। इसलिए, तुम पुण्य भी करते हो, तो वह भी पाप जैसा हो जाता है। तुम अमृत भी छूते हो तो जहर हो जाता है; क्योंकि शेष सब बुराइयां उस पर टूट पड़ती हैं। तुम मंदिर भी बनाओ तो भी उससे विनम्रता नहीं आती; उससे अहंकार भरता है। और, अहंकार के बड़े सूक्ष्म रास्ते हैं! व्यर्थ से भी अहंकार भरता है।

मुल्ला नसरुद्दीन के पास एक कुत्ता था। न उस कुत्ते की कोई नसल का ठिकाना था; न कोई डील डौल; देखने में बदशक्ल, कमजोर; हर समय डरा हुआ, भयभीत; पैर झुके हुए, शरीर दुर्बल; लेकिन, नसरुद्दीन उसकी भी तारीफ हांका करता था। मैंने उससे पूछा, ‘कुछ इस कुत्ते के संबंध में बताओ भी’।, नाम उसने उसका रखा था: एडोल्फ हिटलर। नसरुद्दीन ने कहा कि हिटलर की नसल का भला कोई ठीक ठीक पता न हो; लेकिन, बड़ा कीमती जानवर है। और, एक अजनबी कदम नहीं रख सकता घर के आसपास, बिना हमें खबर हुए। हिटलर फौरन खबर देता है।

मैंने पूछा कि क्या करता है तुम्हारा हिटलर, क्योंकि उसे देखकर संदेह होता था कि वह कुछ कर सकेगा भौकता है, चिल्लाता है, चीखता है, काटता है, क्या करता है? नसरुद्दीन ने कहा, ‘जी नहीं! जब भी कोई अजनबी आता है, हिटलर फौरन हमारे बिस्तर के नीचे आकर छिप जाता है। ऐसा कभी नहीं होता कि अजनबी आ जाए और हमें पता न हो। मगर उसका भी गुण गौरव है।’

तुम्हारा अहंकार मुल्ला नसरुद्दीन के हिटलर जैसा है न तो नसल का कोई पता है…। तुम्हें पता है कि तुम्हारा अहंकार कहां से पैदा हुआ? जो है ही नहीं, वह पैदा कैसे होगा? वह भांति है। उसकी नसल का कोई पता नहीं
तुम तो परमात्मा से पैदा हुए हो; तुम्हारा अहंकार कहां से पैदा हुआ? और, कभी तुमने अपने अहंकार को गौर से देखा कि भला नाम तुम एडोल्फ हिटलर रख लिये हो सभी सोचते हैं; लेकिन उसके पैर बिलकुल झुके है.. .दीन हीन!

बड़े से बडा अहंकार भी दीन हीन होता है। क्यों? क्योंकि, बड़े से बडा अहंकार भी नपुंसक होता है। उसमें तो कोई ऊर्जा तो होती नहीं; ऊर्जा तो आत्मा की होती है। ऊर्जा का स्रोत अलग है। इसलिए, अहंकार को चौबीस घंटे सम्हालना पड़ता है। वह अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं रह सकता; उसे और पैर हमें उधार देने पड़ते हैं। कभी पद से हम उसे सहारा देते हैं; कभी धन से सहारा देते हैं; कभी पुण्य से सहारा देते है, कुछ न बने तो पाप से सहारा देते हैं।

कारागृह में जाकर देखो! वहां लोग अपने पापों की झूठी चर्चा करते हैं, जो उन्होंने कभी किये ही नहीं। जिसने एक आदमी को मारा है, वह कहता है कि मैंने सैकडों का सफाया कर दिया; क्योंकि कारागृह में अहंकार के बड़े होने का वही उपाय है। छोटे मोटे आदमी वहां बड़े कैदी हैं जिन्होंने काफी उपद्रव किये हैं। जिन पर एकाध धारा में मुकदमा चला है, उनकी कोई कीमत है! जिन पर दस पच्चीस धाराएं लगी हैं; जिन पर सौ दो सौ मुकदमे चल रहे हैं; जो रोज अदालत में हाजिर होते हैं  आज इस मुकदमे के लिए, कल उस मुकदमे के लिए कारागृह में वे ही दादा गुरु हैं। वहां आदमी झूठे पापों की भी बात करता है, जो उसने कभी नहीं किये।

पुण्य से भी, पाप से भी; धन से, पद से हर चीज से अहंकार को तुम सहारा देते हो, तब भी वह खड़ा नहीं रहता; मौत उसे गिरा देती है। क्योंकि, जो नहीं है, मौत उसी को मिटाकी; जो है, उसके मिटने का कोई भी उपाय नहीं। तुम तो बचोगे लेकिन, ध्यान रखना जब मैं कहता हूं ‘तुम बचोगे’, तो मैं उस तत्व की बात कर रहा हूं जिसका तुम्हें कोई पता ही नहीं।

जिसे तुम समझते हो तुम्हारा होना, वह तो नहीं बचेगा; वह तुम्हारा अहंकार मात्र है। तुम्हारा नाम, तुम्हारा रूप, तुम्हारा धन, तुम्हारी प्रतिष्ठा, तुम्हारी योग्यता तुमने जो कमाया, वह कुछ भी न बचेगा, उसको छोड्कर भी अगर तुम कुछ हो; अगर थोड़ी सी भी संधि रेखा उसकी मिलनी शुरू हो गयी जो तुम्हारी योग्यता से बाहर है; जो तुमने कमाया नहीं, जिसे तुम लेकर ही पैदा हुए थे; जो पैदा होने के पहले भी तुम्हारे साथ था वही केवल मृत्यु के बाद तुम्हारे साथ रहेगा।

शिव सूत्र 

ओशो 

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