Tuesday, October 20, 2015

भगवान। दिल्ली में जो चल रहा है उसके संबंध में कुछ कहें?

एक छोटी कहानी कहूंगा। लंका का पिछला शासक रावण जब मरने लगा, तो राम ने लक्ष्मण को उसके पास राजनीति की शिक्षा लेने के लिए भेजा यह कह कर कि तात, अपन जीत तो गये हैं, मगर अपने को यहां शासन चलाने का कोई अनुभव नहीं है; इससे पूछ कर आओ कि कैसे क्या चलाना है। लक्ष्मण वहां गया, रावण से कहा कि अब तू तो मर ही रहा है, यहां शासन कैसे चलाएं, यह बताता जा? रावण ने कहा कि आधी राजनीति मैं करता था, आधी कुंभकर्ण; तुमने कुंभकर्ण से भी संपर्क साधा था क्या? लक्ष्मण ने कहा : ही, वह कह गया है कि आनंद से जमकर खाना पेलो और सोफे पर आराम से आंखें मूंदकर डले हो। यह पद्धति सर्वश्रेष्ठ है। 
 
यह बताओ, रावण ने पूछा. तुम लोग तानाशाही मचाओगे कि प्रजातंत्र से चलोगे? कौनसी पद्धति उपयुक्त होगी?
‘जनता को क्या जमेगा?’

कुछ नहीं, रावण ने कहा, जब तानाशाही मचाओगे तो जनता प्रजातंत्र के लिए छटपटायेगी और जब प्रजातंत्र लागू करोगे तो तानाशाही के गुण गाने लगेगी। 

‘फिर?’

‘फिर क्या, ऐसे चलना कि लोग समझ ही न पायें कि तानाशाही है या प्रजातंत्र। कुल मिलाकर एक कनफ्यूजन की स्थिति बनाये रखना। ‘

‘जनता के लिए कुछ कार्यक्रम वगैरह?’

‘बस साल दो साल में एक आध नया नारा दे देना। और धकाते रहना। न हो तो आपस में लड़ाई झगड़ा शुरू कर देना। जनता से कहना कि हमारे आपस के झगड़े निपट जायेंगे तब तुम्हारे लिए कुछ करेंगे। अब यह ध्यान रखना कि अगला चुनाव आने तक वे आपस के झगड़े कहीं निपट न जायें। ‘ यह कह कर रावण ने आंखें मूंद लीं। सुना है उसके बाद जंबूद्वीप में रामराज्य आ गया।

यही सब दिल्ली में हो रहा है। जंबूद्वीप में रामराज्य आ रहा है! सत्ता में पहुंच कर लोग कुछ करना नहीं चाहते। करने में खतरा है, क्योंकि करने में भूलें हो सकती हैं। जो करता है उससे भूलें हो सकती हैं। इसलिए जो सत्ता में पहुंच जाते हैं चालबाज राजनीतिज्ञ, वे बस टालमटोल करते रहते हैं, कुछ करते नहीं। क्योंकि कुछ करेंगे तो कहीं भूल न हो जाये, कोई नाराज न हो जाये। कुछ करोगे तो कोई न कोई नाराज होगा। कुछ करोगे तो किसी के खिलाफ जायेगा, किसी के पक्ष में जायेगा। तुम सबको राजी न रख सकोगे। और राजनीतिज्ञ की चेष्टा होती है सब को राजी रखने की। सब को राजी रखने का एक ही उपाय है : कुछ मत करो; बातें करो, बड़ी—बड़ी बातें करो। जितनी बातें कर सकते हो करते रहो। और समय टालो, और समय को हटाओ और आगे के लिए स्थगित करो। अच्छे नारे देते रहो और लोगों को भरमाये रखो। और लोग भी अजीब हैं, देख—देख कर भी नहीं देख पाते हैं! लोग बड़े अंधे हैं!

राजनीतिज्ञ का कुल लक्ष्य इतना होता है कि वह कैसे सत्ता में पहुंच जाये। बस सत्ता में पहुंचकर उसका लक्ष्य पूरा हो गया, उसकी मंजिल आ गयी। अब उसको कुछ नहीं करना है। अब दूसरा लक्ष्य यह है कि कैसे सत्ता में बना रहे; कोई दूसरा हटा न दे। पहले पहुंचने की चेष्टा में लगा रहता है, फिर जमने की चेष्टा में लगा रहता है। इसी में समय व्यतीत हो जाता है। करना तो कोई भी कुछ चाहता नहीं। करना तो खतरनाक है, जोखिम का काम है। और करने वाले को जनता कभी बर्दाश्त भी नहीं करती। क्योंकि कुछ भी करोगे तो जनता की धारणाओं के विपरीत जाता है। देश की आबादी बढ़ती है। अगर कुछ करो आबादी रोकने के लिए, जनता नाराज होती है। क्योंकि जनता की सदा से आदत रही है कि जितने बच्चे पैदा करना हो करो। उसको अड़चन आ जाती है। जनता को भ्रांति है कि बच्चे पैदा करने में ही कोई पुरुषत्व है! जनता को भ्रांति है कि अगर तुम्हारा संतति नियमन का कोई कार्यक्रम लागू तुम पर किया गया तो तुम्हारा पुरुषत्व छिन गया। जनता बड़ी अजीब है!

मैं एक गांव में गया। वहा स्वामी करपात्री महाराज व्याख्यान दे रहे थे। जिस घर में मैं ठहरा था, उसके सामने ही व्याख्यान चल रहा था, तो मजबूरी में मुझे सुनना पड़ा। पास ही वहां एक बांध बननेवाला था। आदिवासी इलाका। वे आदिवासियों को समझा रहे थे कि बांध मत बनने दो, क्योंकि उसमें से पानी जो निकलेगा वह बेकार पानी होगा, नपुंसक पानी। मैं भी थोड़ा चौंका कि पानी कैसा नपुंसक होता है! सजग होकर सुनने लगा। वे समझा रहे थे, उसमें से बिजली तो पहले ही निकाल ली जायेगी। जब पानी में से बिजली ही निकल गयी तो बचा क्या?
और जनता कह रही थी, यह बात तो सच है कि जब बिजली ही निकल गयी तो बचा क्या खाक! जनता बांध के विरोध में हो गयी कि बांध नहीं बनना चाहिए, नहीं तो पानी सब नपुंसक हो जायेगा। फिर उससे क्या खेतीबाड़ी होगी? उसकी असली चीज तो निकल ही गयी!

ऐसे ऐसे लोग हैं! जनता नासमझ है, अंधविश्वासी है। राजनीतिज्ञ चालबाज हैं, बेईमान हैं। राजनीतिज्ञ को एक ही बात ध्यान रखनी पड़ती है कि चुनाव जल्दी फिर आते हैं। उन्हीं लोगों से वोट लेनी पड़ेगी, उनको नाराज मत कर देना। उनको नाराज किया तो मुश्किल में पड़ोगे। उनको खुश रखना। तो राजनेता उनके मंदिर में जाता है, मस्जिद में भी जाता है, गुरुद्वारे में भी जाता है, शंकराचार्य को भी नमस्कार कर आता है। मेला भरा हो तो मेले में हो आता है। रामलीला हो रही हो तो रामलीला में पहुंच जाता है। कुंभ में मौजूद हो जाता है। उसे जनता के अंधविश्वासों को समर्थन देना चाहिए।

और मजा यह है कि जनता के अंधविश्वास से, तो ही जनता के जीवन का कुछ कल्याण हो सकता है। और यह बड़ी अड़चन की बात है। जनता ही नहीं टूटने देना चाहती अपने अंधविश्वासों को। जनता ही अपना हित और कल्याण नहीं होने देना चाहती। तो जनता को, जो कुछ भी नहीं करते, वे अच्छे लगते हैं। इंदिरा पर नाराजगी का कारण यही था, उसने कुछ करने की कोशिश की। मोरारजी से जनता खुश रहेगी। उन्होंने कुछ किया ही नहीं, नाखुश होने का कोई कारण ही नहीं। वे कुछ करेंगे भी नहीं, समय गुजारेंगे। और अभी अभी उन्होंने जनता से कहा है कि ‘हमारी लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करो। ‘ इतना काफी नहीं महाराज? और सताओगे रू अभी और लंबी उम्र चाहिए?

इस देश को कुछ बातें समझनी होंगी। एक तो इस देश को यह बात समझनी होगी कि तुम्हारी परेशानियों, तुम्हारी गरीबी, तुम्हारी मुसीबतों, तुम्हारी दीनता के बहुत कुछ कारण तुम्हारे अंधविश्वासों में हैं। और जब तक तुम्हारे अंधविश्वास न तोड़े जायें, तब तक तुम्हारी दीनता भी नहीं मिटेगी, तुम्हारी गरीबी भी नहीं मिटेगी, तुम्हारी परेशानी भी नहीं मिटेगी। और जो भी तुम्हारे अंधविश्वास तोड़ेगा, तुम उससे नाराज हो जाओगे। इससे लोग मुझसे बराज हैं।

मुझे राजनीति से कुछ लेना देना नहीं है, क्योंकि मैं मौलिक काम में लगा हूं। मैं जड़ काटने की कोशिश कर रहा हूं। मेरी पूरी फिक्र यह है कि तुम्हारे अंधविश्वास टूट जायें। तुम्हारे अंधविश्वास टूट जायें तो सब ठीक हो जायेगा। तुम्हारे पास थोड़ीसी समझ आ जाये। तुम बीसवीं सदी के हिस्से बन जाओ।

भारत अभी भी समसामयिक नहीं है, कम से कम डेढ़ हजार साल पीछे घिसट रहा है। ये डेढ़ हजार साल पूरे होने जरूरी हैं। भारत को खींच कर आधुनिक बनाना जरूरी है। यह काम राजनीतिज्ञ नहीं कर सकते, यह काम दिल्ली में नहीं हो सकता। यह काम तो उन्हें करना होगा जिनका राजनीति से कुछ लेना देना नहीं है।

मेरा कोई लेना देना नहीं है राजनीति से। मेरी कोई उत्सुकता नहीं है राजनीति में। लेकिन जरूर मेरी उत्सुकता है कि इस देश का भी सौभाग्य खुले, यह देश भी खुशहाल हो, यह देश भी समृद्ध हो। क्योंकि समृद्ध हो यह देश तो फिर राम की धुन गंजे। समृद्ध हो यह देश तो फिर लोग गीत गायें, प्रभु की प्रार्थना करें। समृद्ध हो यह देश तो मंदिर की घटिया फिर बजे, पूजा के थाल फिर सजे। समृद्ध हो यह देश तो फिर बासुरी बजे कृष्ण की, फिर रास रचे!

यह दीन दरिद्र देश, अभी तुम इसमें कृष्ण को भी ले आओगे तो राधा कहां पाओगे नाचनेवाली? अभी तुम कृष्ण को भी ले आओगे, तो कृष्ण बड़ी मुश्किल में पड़ जायेंगे, माखन कहां चुरायेंगे? माखन है कहां? दूध दही की मटकियां कैसे तोड़ेंगे? दूध दही की कहां, पानी तक की मटकियां मुश्किल हैं।

नलों पर इतनी भीड़ है! और अगर एक आध गोपी की मटकी फोड़ दी, जो नल से पानी भरकर लौट रही थी, तो पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा देगी कृष्ण की। तीन बजे रात से पानी भरने खड़ी थी, नौ बजते बजते पानी भर पायी और इन सज्जन ने ककड़ी मार दी।

धर्म का जन्म होता है जब देश समृद्ध होता है। धर्म समृद्धि की सुवास है।

तो मैं जरूर चाहता हूं : यह देश सौभाग्यशाली हो। लेकिन सबसे बड़ी अड़चन इसी देश की मान्यताएं हैं। इसलिए मैं तुमसे लड़ रहा हूं तुम्हारे लिए। तुम्हीं मुझसे नाराज होओगे। तुम्हीं मुझ पर कुपित हो जाओगे। क्योंकि मैं तुम्हारी जमीन पैर के नीचे से खीका।

मगर जमीन खींचनी ही होगी। तुम्हें नयी जमीन चाहिए। तुम्हें नयी भाव भूमि चाहिए। तुम्हें चित्त का एक नया संस्कार चाहिए। तुम्हें एक नया आकाश उपलब्ध होना चाहिए। तुम कब्र में बंद हो गये हो। दिल्ली के लोग तुम्हारी कब्र पर फूल चढ़ा रहे हैं।

मरौ है जोगी मरौ 

ओशो 

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