Monday, October 26, 2015

शनैः शनैः!

जल्दी नहीं करनी है। ध्यान करो! होश को जगाओ! व्यर्थ के कूड़े करकट, से अपने को मुक्त करो! सुबह होगी, जल्दी ही होगी मगर तुम जल्दी मत करना, नहीं तो देर हो जाएगी। तुम्हें भी अनुभव है इस बात का जब भी तुम जल्दी करते हो तब देर हो जाती है। तुमने देखा ट्रेन पकड़नी है और तुम जल्दी में हो, तो कोट का बटन ऊपर का नीचे लग जाता है, फिर से खोलो, फिर से लगाओ, और देर हो गयी। इतनी जल्दी है कि सूटकेस में कुछ का कुछ रख लेते हो, फिर खोलो, निकालो, जो रखना था वह बाहर रह गया, जो नहीं रखना था वह भीतर चला गया। इतनी जल्दी है कि सामान लेकर नीचे भागते हो, कुछ सामान धर ही छूट गया। वह स्टेशन पर जाकर पता चलता है कि टिकट तो घर ही भूल आये। जितनी जल्दी करोगे…जल्दी का मतलब होता है तुम बेचैन हो गये और बेचैनी में भूलचूक हो जानी बिलकुल स्वाभाविक है।

जितना धैर्य रखोगे, जितने शांत, उतनी ही जल्दी होगी। और जितनी जल्दी करोगे, उतनी ही जल्दी की संभावना कम है। फिर जीवन अनंत है, क्या जल्दी? आज जागे, कल जागे। कब जागे कोई फर्क नहीं पड़ता, अनंत काल है। 

जिस दिन जागोगे उस दिन ऐसा थोड़े ही लगेगा कि बुद्ध पच्चीस सौ साल पहले जागे और तुम पच्चीस सौ साल बाद जागे। पच्चीस सौ साल की क्या गणना है, इस अंतहीन समय की यात्रा में! पृथ्वी को बने वैज्ञानिक कहते हैं चार अरब वर्ष हो गये। चार अरब वर्षों में पच्चीस सौ साल की क्या गणना है! और पृथ्वी बहुत नया—नया ग्रह है। सूरज को बने कोई हजार अरब वर्ष हो गये। और सूरज कोई बहुत पुराना सूरज नहीं है, उससे भी पुराने सूर्य हैं। ऐसे भी सूर्य हैं जिनकी अब तक गणना नहीं बिठायी जा सकी कि वे कितने पुराने हैं! इस अंतहीन विस्तार में पच्चीस सौ साल का क्या हिसाब पलक मारते बीत गये ऐसा लगेगा। जब तुम जागोगे तब तुम्हें ऐसा लगेगा कि बुद्ध जागे और मैं जागा, बीच में पलक शायद झपकी।

इस विस्तीर्ण जगत में तुम्हारी जल्दबाजी सिर्फ नासमझी है। और तुम अपनी जल्दबाजी में सब खराब कर लोगे; कुछ का कुछ हो जाएगा।

मुल्ला नसरुद्दीन ने एक दिन बाथरूम से जोर से आवाज दी अपनी पत्नी को कि दौड़, जल्दी आ; जिसका डर था वह बात हो गयी। पत्नी आयी तो मुल्ला बिलकुल झुका खड़ा है, कमर झुकी हुई है। किसी तरह सम्हाल कर मुल्ला को ले जाकर बिस्तर पर लिटाया। पूछा कि हुआ क्या?

मुल्ला ने कहा कि डॉक्टर ने कहा था कभी न कभी यह होने वाला है, लकवा लग जाएगा, लकवा लग गया।
डॉक्टर को फोन किया। डॉक्टर भागा हुआ आया। जांच पड़ताल की। सब ठीक मालूम पड़े। नाड़ी देखी! सब ठीक है। ब्लड—प्रेशर ठीक है। फिर जरा गौर से देखा, फिर हंसने लगा। उसने कहा कि बड़े मियां, कोई और मामला नहीं है, तुमने कोट की बटन पेंट की बटन से लगा ली है इसलिए तुम उठ नहीं पा रहे, घबड़ाओ मत।


जल्दी न करना; कोई जल्दी नहीं है आहिस्ता चलो, हौले हौले चलो, शनैः शनैः।

गुरु प्रताप साध की संगती 

ओशो 

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