Friday, October 9, 2015

दूसरे को जिम्मेवार मत समझो

मैं एक कालेज में प्रोफेसर था। नया नया वहां पहुंचा। कालेज बहुत दूर था गांव से। और, सभी प्रोफेसर अपना खाना साथ लेकर ही आते थे और दोपहर को एक टेबल पर इकट्ठे होते थे। संयोग की ही बात थी कि मैं जिनके पास बैठा था, उन्होंने अपना टिफिन खोला, झांककर देखा और कहा : ‘फिर वही आलू की सब्जी और रोटी!’ मुझे लगा कि उन्हें शायद आलू की सब्जी और रोटी पसंद नहीं है। लेकिन, मैं नया था तो मैं कुछ बोला नहीं। दूसरे दिन फिर वही हुआ। उन्होंने फिर डब्बा खोला और फिर कहा कि ‘फिर वही आलू की सब्जी और रोटी!’ तो मैंने उनसे कहा कि अगर आलू की सब्जी और रोटी पसंद नहीं तो अपनी पली को कहें कि कुछ और बनाये। उन्होंने कहा : ‘पत्नी! पत्नी कहां है। मैं खुद ही बनाता हूं।’

यही तुम्हारा जीवन है। कोई है नहीं। हंसो तो तुम हंस रहे हो, रोओ तो तुम रो रहे हो; जिम्मेवार कोई भी नहीं। यह हो सकता है कि बहुत दिन रोने से तुम्हारी रोने की आदत बन गयी हो और तुम हंसना भूल गये हो। यह भी हो सकता है कि तुम इतने रोये हो कि तुमसे अब कुछ और करते बनता नहीं अभ्यास हो गया। यह भी हो सकता है कि तुम भूल ही गये, इतने जन्मों से रो रहे हो कि तुम्हें याद ही नहीं कि कभी यह मैने चुना था रोना। लेकिन तुम्हारे भूलने से सत्य असत्य नहीं होता है। तुमने ही चुना है। तुम ही मालिक हो। और, इसलिए जिस क्षण तुम तय करोगे, उसी क्षण रोना रुक जाएगा।

इस बोध से भरने का नाम ही कि ‘मैं ही मालिक हूं, ‘मैं ही सृष्टा हूं,, ‘जो भी मैं कर रहा हूं उसके लिए मै ही जिम्मेवार हूं, जीवन में क्रांति हो जाती है। जब तक तुम दूसरे को जिम्मेवार समझोगे, तब तक क्रांति असंभव है; क्योंकि तब तक तुम निर्भर रहोगे। तुम सोचते हो कि दूसरे तुम्हें दुखी कर रहे हैं, तो फिर तुम कैसे सुखी हो सकोगे? असंभव है; क्योंकि दूसरों को बदलना तुम्हारे हाथ में नहीं। तुम्हारे हाथ में तो केवल स्वयं को बदलना
अगर तुम सोचते हो कि भाग्य के कारण तुम दुखी हो रहे हो तो फिर तुम्हारे हाथ के बाहर हो गयी बात। भाग्य को तुम कैसे बदलोगे? भाग्य तुमसे ऊपर है। और, तुम अगर सोचते हो कि तुम्हारी विधि में ही विधाता ने लिख दिया है जो हो रहा है, तो तुम एक परतंत्र यंत्र हो जाओगे; तो तुम आत्मवान न रहोगे।


शिव सूत्र 

ओशो



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