Sunday, October 11, 2015

जीवन में व्रत का क्या मूल्य है? भाग २

कसम का अर्थ है, भीतर तो बोध नहीं है, भीतर से तो तुम धूम्रपान छोड़ना चाहते नहीं। अगर भीतर से छोड़ना चाहते तो किसी के गवाही की क्या जरूरत थी, छोड़ दिया होता, बात खतम हो गयी। तुम्हें समझ में आ गयी बात कि धूम्रपान व्यर्थ है, बात समाप्त हो गयी। उसी क्षण समाप्त हो गयी, बचा क्या छोड़ने को? धूम्रपान में छोड़ने जैसा है क्या? पहले तो पीने की मूढ़ता की, अब छोड़ने की मूढ़ता कर रहे हो। पहले पीकर सोचते थे कुछ बड़ा काम कर रहे हो।

अक्सर ऐसा होता है। सिगरेट पीते वक्त लोग बड़े अकड़कर बैठ जाते हैं, जैसे कोई बड़ा काम कर रहे हैं। छोटे बच्चे भी जल्दी बड़े होना चाहते हैं कि बड़े हो जाएं तो सिगरेट पीए। छोटे बच्चे भी बैठकर सिगरेट पीना चाहते हैं, क्योंकि सिगरेट पीने के साथ बड़प्पन का भाव जुड़ा है। ऐसा लगता है, कुछ खास हो गए। 

मैं एक गांव में रहता था। सुबह घूमने गया था, तो देखा एक छोटा सा बच्चा एक दो आने की मूंछ लगाए सिगरेट पी रहा है, एक झाडू के नीचे। मुझे देखकर वह छिपने लगा। मैं उसके पीछे भागा तो वह अपने घर में घुस गया। मैं उसके पीछे उसके घर में गया। वह एक पोस्टमास्टर का लड़का था। वह घबड़ा गया। उसने जल्दी से अपनी मूंछ छिपा ली, सिगरेट फेंक दी, उसका बाप आया कि क्यों आप मेरे लड़के के पीछे लगे हैं! उसको क्यों डरा दिए? मैंने कहा, डरा मैंने नहीं दिया, मैं पूछने आया हूं उससे कुछ। आपका लड़का गजब का है, जरा उसे बाहर लाएं।

वह लड़का बाहर डरता हुआ आया। मैंने पूछा कि तू यह क्या कर रहा था? बस मुझे तेरे से सिर्फ पूछना है, तुझे यह नहीं कहना है कि तू गलत कर रहा है, तू कर क्या रहा था? यह मूंछ लगाकर सिगरेट पीना? तब मैंने गौर से उसके बाप का चेहरा देखा, वैसी मूंछ बाप की है। बाप भी थोड़ा शर्माया। उसने कहा, यह करता है। यह कभी कभी करता है। यह एक दो आने की मूंछ खरीद लाया है और इसने बिलकुल काटकर मेरे जैसी बना ली है। और सिगरेट मेरी पी जाता है!
 
मगर जब बाप की अकड़ देखता होगा तो उसको भी होता होगा कि अकड़ जाएं। छोटे छोटे बच्चे सिगरेट पीकर सिर्फ ऐसा काम कर रहे हैं जिसमें प्रतिष्ठा है। सिगरेट में कुछ प्रतिष्ठा है। तो जब तुम पीते हो तब अकड़कर पीते थे, अब तुमने छोड़ दिया! एक तो काम ही मूढ़तापूर्ण था। मैं पाप नहीं कह रहा हूं, ध्यान रखना, मूढ़तापूर्ण। मैं सिगरेट पीने वाले को पापी नहीं कहता, क्योंकि पापी कहना तो बड़ा सम्मान हो गया कि बडा काम कर रहे हैं, चलो पाप ही सही, मगर कुछ कर तो रहे हैं!

 कुछ ऐसा काम कर रहे हैं कि परमात्मा को भी इनका हिसाब रखना पड़ेगा। पाप का मतलब होता है, उस ऊपर की खातेबही में तुम्हारा नाम लिखा जाएगा कि फलां सज्जन सिगरेट पीते हैं, दिन में इतनी पीते हैं! कुछ विशेष कर रहे हैं। पाप तो विशिष्ट हो गया। मैं सिर्फ कहता हूं मूढ़ता। परमात्मा की खातेबही में कहीं भी नहीं लिखा होगा कि तुमने कितनी सिगरेट पी हैं, कि नहीं पी हैं। कि कौन से मार्के की सिगरेट पीते थे! अगर परमात्मा ऐसा करता हो तो तुमसे भी गया बीता है। ये भी कोई हिसाब रखने की बातें हैं! तुम मूढ़ता करो और परमात्मा हिसाब रखे!
 
नहीं, मैं सिर्फ कहता हूं मूढ़ता। एक तरह की मूर्च्छा। जिसको बुद्ध ने प्रमाद कहा है। एक तरह का प्रमाद। प्रमाद शब्द में मूर्च्छा और अहंकार, दोनों का भाव है। इसलिए तो हम अहंकारी को भी कहते हैं, बड़ा प्रमादी। मूर्च्‍छित को भी कहते हैं प्रमादी। प्रमाद शब्द बड़ा बहुमूल्य है, उसमें मूर्च्छा और अहंकार, दोनों का जोड़ है। मूर्च्छित अहंकार, या अहंकारी मूर्च्छा।


ओशो 
 
एस धम्मो सनंतनो 




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