Thursday, November 5, 2015

हम जो होते हैं, वैसा हमें संसार दिखायी पड़ने लगता है

अगर तुम प्रसन्न हो, तो तुमने खयाल किया, तुम्हारी प्रसन्नता के कारण फूल भी हंसते हुए मालूम होते हैं। तुम उदास हो, तो फूल भी उदास मालूम होते हैं। फूलों को तुम्हारी उदासी से क्या लेना-देना! तुम अगर दुखी हो, पीड़ित हो, तो चांद भी रोता मालूम पड़ता है। तुम अगर आनंदित हो, नाच रहे, तुम्हारा प्रिय घर आ गया, मित्र को खोजते थे मिल गया, तो चांद भी नृत्य करता मालूम होता है। चांद वही है। पृथ्वी पर हजारों लोग चांद को देखते हैं; लेकिन एक ही चांद को नहीं देखते। हर आदमी का चांद अलग है। क्योंकि हर आदमी की देखनेवाली आंख अलग है। कोई खुशी से देख रहा है–किसी का प्रियजन घर आ गया। कोई दुख से देख रहा है–किसी का प्रियजन छूट गया। कोई नाच रहा है खुशी में, सौभाग्य में; कोई रो रहा है, आंसू बहा रहा है। आंसुओं की ओट से जब चांद दिखायी पड़ता है, तो आंसुओं में दब जाता है। गीत की ओट से जब दिखायी पड़ता है, तो चांद में भी गीत उठने लगता है।

इसे खयाल लेना, तुम जैसे हो, वैसा तुम्हारा संसार हो जाता है। तुम जैसे नहीं हो, वैसा तुम्हारा संसार हो ही नहीं सकता। क्योंकि तुम ही मौलिक रूप से अपने संसार के निर्माता हो। तुम्हारी आंख, तुम्हारे कान, तुम्हारे हाथ प्रतिपल संसार को निर्मित कर रहे हैं। एक लकड़हारा इस बगीचे में आ जाए, तो वह देखेगा कि कौन-कौन से वृक्ष काटे जाने योग्य हैं। अनजाने ही! उसे फूल न दिखायी पड़ेंगे! उसे वृक्षों की हरियाली न दिखायी पड़ेगी। उसे केवल लकड़ी दिखायी पड़ेगी, जो बाजार में बिक सकती है। एक कवि आ जाए, तो उसे ऐसे रंग दिखायी पड़ेंगे जो तुम्हें दिखायी नहीं पड़ते। तुम्हें सब वृक्ष हरे मालूम पड़ते हैं। कवि को हर हरियाली अलग हरियाली मालूम पड़ती है। हर वृक्ष का हरापन अद्वितीय है। अलग-अलग है। तुम कहते हो फूल खिले हैं, लेकिन प्रगाढ़ता से तुम्हारी चेतना के सामने फूल प्रगट नहीं होते। क्योंकि वहां कोई प्रगाढ़ता नहीं है। कोई चित्रकार आये, कोई संगीतज्ञ आये, तो संगीतज्ञ सुन लेगा कोयल की कुहू-कुहू, इन पक्षियों का कलरव। हम जो होते हैं, वैसा हमें संसार दिखायी पड़ने लगता है। धर्म कहता है, जिसने स्वयं को जान लिया, उसने सब जान लिया। इक साधे सब सधे। और वह एक तुम्हारे भीतर है।

जिन सूत्र 

ओशो 

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