Sunday, November 22, 2015

तुम्हें शांति प्राप्त हो

सागर में तूफान आता है। फिर तूफान शांत हो जाता है। तो हम कहते हैं, तूफान शांत हो गया। लेकिन इसका क्या मतलब है? क्या शांत तूफान वहां मौजूद है? शांत तूफान का अर्थ ही होता है कि तूफान न रहा। कोई आदमी बीमार पड़ता है। फिर ठीक हो जाता है। हम कहते हैं, बीमारी ठीक हो गई। इसका क्या मतलब है? बीमारी ठीक हो कर वहां मौजूद है? बीमारी ठीक हो गई, इसका अर्थ ही यह है कि बीमारी नहीं हो गई, बीमारी अब नहीं है। बीमारी थी, अब नहीं है।

आप जो भी अभी हैं, बीमारी का जोड़ हैं। तुम कभी शांत न हो सकोगे, जब तक कि यह ‘तुम’ शांत ही न हो जाए, जब तक कि यह ‘तुम’ खो ही न जाए।

तुम्हें शांति प्राप्त हो, इसका एक ही अर्थ है कि तुम उस जगह पहुंच जाओ, जहां तुम न रहो। जब तक तुम हो, तुम अशांति का स्वर खींचते ही चलोगे। इसलिए धर्म महामृत्यु है। उसमें तुम पूरी तरह मर जाते हो, तुम बचते नहीं। जो बचता है, वह तुम्हारा अंतरतम है, तुम्हारा केंद्र है। लेकिन उससे तुम्हारा अभी कोई परिचय नहीं है। वह शांत है, वह अभी भी शांत है। अगर तुम चुप हो जाओ अभी भी, तुम न रहो, तो अभी भी तुम उस शांति को सुन सकोगे। तुम हो कोलाहल, भीड़, उपद्रव, विक्षिप्तता। तुम्हारे कारण वह जो भीतर का शांत अनाहत नाद है, वह जो नादरहित वाणी है, वह जो शून्यस्वर है, वह सुनाई नहीं पड़ता।

एक क्षण को भी तुम न रहो, तो उसका दर्शन हो जाए। और एक बार उसका दर्शन हो जाए, तो तुम फिर वापस न लौट सकोगे। क्योंकि तब तुम जान ही लोगे कि इस बीमारी को वापस बुलाने का कोई प्रयोजन नहीं।

लेकिन अभी हम कोशिश करते हैं। अभी हम कोशिश करते हैं कि मैं शांत हो जाऊं, बिना इसकी फिक्र किए कि मैं ही तो अशांति है। अभी हम कोशिश करते हैं कि मैं कैसे मुक्त हो जाऊं, बिना इसकी फिक्र किए कि मैं ही तो अमुक्ति हूं।

इसलिए मैं तुमसे कहता हूं तुम्हारी मुक्ति नहीं, तुमसे मुक्ति। तुम्हारी कोई मुक्ति न होगी, तुमसे ही मुक्ति होगी। और जिस दिन तुम अपने को छोड़ पाओगे, जैसे सांप अपनी केंचुल छोड़ देता है, उस दिन अचानक तुम पाओगे कि तुम कभी अमुक्त नहीं थे। लेकिन तुमने वस्त्रों को बहुत जोर से पकड़ रखा था, तुमने खाल जोर से पकड़ रखी थी, तुमने देह जोर से पकड़ रखी थी, तुमने आवरण इतने जोर से पकड़ रखा था कि तुम भूल ही गए थे कि यह आवरण हाथ से छोड़ा भी जा सकता है।

ध्यान की समस्त प्रक्रियाएं, क्षण भर को ही सही, तुमसे इस आवरण को छुड़ा लेने के उपाय हैं। एक बार तुम्हें झलक आ जाए, फिर ध्यान की कोई जरूरत नहीं। फिर तो वह झलक ही तुम्हें खींचने लगेगी। फिर तो वह झलक ही चुंबक बन जाएगी। फिर तो वह झलक तुम्हें पुकारने लगेगी और ले चलेगी उस राह पर, जहां यह सूत्र पूरा हो सकता है, ‘तुम्हें शांति प्राप्त हो।’


साधनासूत्र 

ओशो

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