Monday, November 9, 2015

धर्म और कहानियाँ

दो अफीमची एक झाड़ के नीचे बैठ गपशप कर रहे थे। पीनक में थे। एक अफीमची ने कहा, मेरे दादा का घर इतना बड़ा था कि एक बार एक बच्चा गिर पड़ा ऊपर की मंजिल से तो नीचे आते आते  तक जवान हो गया। दूसरे अफीमची ने कहा, यह कुछ भी नहीं, मेरे दादा का मकान इतना बड़ा था कि एक बार एक बंदर गिर पड़ा तो नीचे आत आते तक आदमी हो गया! पहला अफीमची बोला कि इतनी न हांको! चलो मैं भी थोड़ी बदले लेता हूं। बच्चा नहीं था, बस मूंछ की रेख निकल ही रही थी। गिरा था और जवान हो गया था। अब तुम भी अपनी कहानी में सुधार कर लो।

दूसरे अफीमची ने कहा: अगर तुम इतना करने को राजी हो, तो मैं भी कर सकता हूं। मुहर्रम के दिन थे। वह आदमी असली में बंदर नहीं था, बंदर बना था। नीचे आते आते तक घबड़ाहट में पसीने में रंग बह गया, सो आदमी हो गया था।

अफीमचियों पर हंस लेना आसान है। मगर तुम्हारे पुराण अफीमचियों की पीनक से कुछ और ज्यादा नहीं मालूम होते। और हरेक पुराण, हरेक धर्म अपने दावे बड़े बड़े करता है। ऐसे दावे जो कि अफीमची करें तो क्षमा किए जा सकें, लेकिन पंडित पुरोहित करते हैं। तुम दावे जरा गौर से देखो, जरूर अंधेरे में लिखी गई होंगी ये किताबें और अंधों ने लिखी होंगी। अंधेरे की ही स्याही से लिखी होंगी। इनमें रोशनी कहीं दिखाई नहीं पड़ती।

महावीर को मानने वाले कहते हैं कि महावीर मल मूत्र का विसर्जन नहीं करते थे। भोजन करोगे, पानी पीओगे और मल मूत्र का विसर्जन नहीं करोगे? महावीर को पसीना नहीं आता था। एक तो नंग धड़ंग, बिहार की गरमी, धूप—धाप…और महावीर को पसीना नहीं आता था; तो किसको पसीना आएगा? चमड़ी थी कि प्लास्टिक था? जीवित व्यक्ति की चमड़ी में रोआं—रोआं श्वास लेता है। रोआं रोआं शरीर को शीतल करने का उपाय करता है, इसीलिए पसीना आता है। पसीने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। उसका अपना रासायनिक अर्थ है। अगर जिस आदमी को पसीना न आता हो वह जिंदा नहीं रह सकता, वह मर ही जाएगा। मर ही चुका! मुर्दे को ही पसीना नहीं आता। पसीना आना जरूरी है क्योंकि पसीना शरीर को एक सुनिश्चित तापमान में रखने की प्रक्रिया है।

तुमने देखा, सर्दी हो कि गर्मी, शरीर के भीतर का तापमान समान रहता है वही अट्ठानबे डिग्री के करीब। कितनी ही गरमी पड़ रही हो, तुम्हारे भीतर कोई एक सौ दस डिग्री गरमी नहीं हो जाती। नहीं तो तुम खतम ही हो जाओ। और कितनी ही सर्दी पड़ रही हो, शून्य डिग्री से नीचे उतर गया हो तापमान, तो तुम शून्य डिग्री के नीचे नहीं उतर जाते। नहीं तो गए, फिर लौटने का कोई उपाय नहीं! तुम तो अट्ठानबे डिग्री के करीब ही रहते हो।

शरीर बड़ी अदभुत प्रक्रिया है!

जब बहुत गरमी पड़ती है तो रोएं रोएं से पसीना बहता है। पसीना क्यों बह रहा है? पसीना इसलिए बह रहा है कि शरीर की गरमी को पसीना पी लेगा और भाप बन कर उड़ जाएगा। शरीर की गरमी पसीने को भाप बना देगी। शरीर की गरमी पसीने को भाप बनाने के काम आ जाएगी और भीतर इकट्ठी नहीं होगी। इसलिए जब तुम सर्दी में ठिठुरने लगते हो तो कंपने लगते हो, दांत कटकटाने लगते हो। क्यों? यह शरीर की तरकीब है कंपन पैदा करने की, गति पैदा करने की ताकि गति के द्वारा सर्दी तुम्हें बिलकुल सर्द न कर जाए। गति बनी रहे, हलन चलन होता रहे तो तुम्हारे भीतर गरमी बनी रहेगी।
महावीर को पसीना नहीं निकलता! महावीर को ही नहीं, किसी तीर्थंकर को नहीं, चौबीस तीर्थंकर जैनों के, पसीना नहीं निकलता! वह खास परिभाषा है। अगर कोई दावा करे कि मैं तीर्थंकर हूं तो पहली बात सिद्ध करनी पड़ेगी कि पसीना निकलता है कि नहीं? पसीना निकलता है तो बात खतम हो गई। उत्तीर्ण नहीं हो सकते फिर तीर्थंकर की परीक्षा में!

ईसाई कहते हैं कि जीसस क्वांरी बेटी से पैदा हुए। अफीमचियों की तरह पीनक में बातें कर रहे हो! कि जीसस पानी पर चलते हैं; कि जीसस मुर्दे को जिला लेते हैं; कि जीसस अंधों को छू देते हैं, उनको आंखें आ जाती हैं। यही जीसस जब सूली पर लटकाए जाते हैं और इन्हें प्यास लगती है तो पानी मांगते हैं। कोई चमत्कार काम नहीं आता। इन्हीं जीसस ने पूरे समुद्र को चमत्कार करके पानी से शराब बना दिया था।

मुहम्मद जहां भी जाते हैं उनके ऊपर एक बदली छाया करती हुई चलती है। खूब छाते की तरकीब निकाली! कहां छाता लिए फिरें मुहम्मद, तो एक बदली अटकी रहती है सिर पर उनके पर, वे जहां चलें।…और रेगिस्तान में भयंकर गरमी, जरूरत भी है छाते की। अगर क्या छाता खोजा! हवा किसी तरफ जा रही हो, मुहम्मद किसी तरफ जा रहे हों, तो भी बदली मुहम्मद के साथ जाती है, हवा के साथ नहीं जाती। अब बदलियां कहीं ऐसे मुहम्मदों का पीछा करती हैं? यह दूसरी बात है कि मुहम्मद की देख देख कर चलते हों कि बदली कहां को जा रही है। यह दूसरी बात है कि जिस तरफ जाएं, बदली उस तरफ चले।

मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन अपने गधे पर बैठा हुआ तेजी से चला जा रहा था। बाजार में लोगों ने पूछा, नसरुद्दीन, कहां जा रहे हो बड़ी तेजी से? उसने कहा, मेरे गधे से पूछो। क्योंकि वह मेरी तो सुनता नहीं और कभी कभी बीच बाजार में फजीहत करवा देता है, कि मुझे ले जाना है बाएं और उसको जाना नहीं। अब गधे तो गधे! और चार आदमी देख कर भीड़ भाड़ में उनकी अकड़ बढ़ जाती है। गधे भी बड़े राजनीतिज्ञ होते हैं! देखे बहुत से वोटर, अकड़ गए! कि तुमने समझा क्या है मुझको!

मुल्ला ने कहा कि अकेले में तो मैं इसको जहां चाहता हूं वहां चला जाता है; मगर बीच बाजार में अगर मैंने इसको रोका, छेड़ा कि बस लोटने पोटने लगता है, उपद्रव मचा देता है। चार आदमियों के सामने भद्द हो जाती है। तो मैंने भी एक तरकीब निकाल ली है। गधा है, यह क्या समझता है! आखिर मैं भी होशियार हूं आदमी हूं! अब मैं बाजार में इसको चलाने की कोशिश ही नहीं करता; जहां जाता है शान से उसी तरफ जाता हूं। गांव के बाहर निकाल कर फिर जहां ले जाना है। ले जाऊंगा, मगर गांव के भीतर, जहां यह जाता है…। इससे इज्जत भी बनी रहती है, गांव के लोग समझते हैं कि क्या प्यारा गधा है!

इसी प्यारे गधे को मुल्ला नसरुद्दीन एक दफे बेचने ले गया। थक गया, परेशान हो गया इस गधे से। खूब नहलाया धुलाया। लक्स साबुन लगाई। कंघी की। लेकिन चला। एक आदमी ने देखा एक रईस ने देखा। इतना शानदार, साफ सुथरा गधा, सुगंधित, कभी देखा नहीं था। और मुल्ला नीचे चल रहा था, उस पर बैठा भी नहीं था। उस अमीर ने कहा कि इतना अच्छा गधा, और इस पर बैठते क्यों नहीं? मुल्ला ने कहा कि नहीं, बड़ा प्यारा गधा है! इस को बैठ कर मैं कष्ट नहीं देना चाहता। तभी तो इसकी यह शान है। गधों में यह पहुंचा हुआ गधा है। सिद्धपुरुष समझो। अमीर का दिल आ गया। उसने कहा कि ठीक है, मैं खरीद लेता हूं। जितने रुपए मुल्ला ने मांगे…जितने ज्यादा से ज्यादा मांगने की कल्पना कर सकता था, मांगे…अमीर ने दे दिए। दूसरे दिन अमीर गधे को लेकर मुल्ला के घर आया और कहा कि यह तो धोखा किया तुमने। यह गधा तो बड़ा अजीब है! बैठो तो बैठने ही नहीं देता। दुलत्ती मारता है। जमीन पर लोट जाता है। खाने में भी इसको श्रेष्ठतम भोजन चाहिए, दूसरी कोई चीज खाता नहीं। यह कहां की झंझट दे दी!

मुल्ला ने कहा, इस में और कोई खराबी नहीं है, बस एक बात का खयाल रखना, कभी इस पर बैठने की कोशिश मत करना। और सब बातों में यह सुंदर है, बस इस पर बैठना भर मत।

गधे पर अगर बैठो न तो प्रयोजन क्या रहा?

ये शास्त्रों में तुम्हारी जो कहानियां हैं, इनको तुम जीवन में तो उतार ही नहीं सकते। न तुम पानी पर चल सकते हो, न आकाश में उड़ सकते हो, न पसीना बहने से रोक सकते हो, न बदलियों को अपने सिर पर चला सकते हो, न मरतों को उठा सकते हो, न अंधों को आंख दे सकते हो इन सारी कहानियों का कोई अर्थ ही न रहा। ये फिजूल हैं। ये पीनक में कही गई हैं। और यह सिर्फ दूसरे से अपने को बड़ा सिद्ध करने की कोशिश में चेष्टा चल रही है। अगर तुम्हारा तीर्थंकर ऐसा करता है, तो हमारा अवतार इससे बड़ा करके दिखलाएगा! और जब कहानियां ही लिखनी हैं तो फिर अपना दिल, जो चाहे करो! जैसी कहानी बनाना चाहो, बनाओ!

इन कहानियों को तुम धर्म मत समझ लेना। और इन कहानियों के कारण बड़ा अंधेरा है। धर्म तो चरागेत्तूर है, कहानी किस्से नहीं है; पुराण कथाएं नहीं है। धर्म तो चरागेत्तूर है। यह तो ठंडी रोशनी है। यह तो रोशनी का एक रूपांतरण है। यह तो अग्नि के भीतर हो गई एक क्रांति है। और जब तुम्हारे भीतर यह चरागेत्तूर जलता है…।

यहूदी खोजते हैं कि तूर नाम का पर्वत कहां है। कोई कहता है, यहां, कोई कहता है वहां। मैं कहना चाहता हूं: यह तूर नाम का पर्वत बाहर नहीं है, यह तूर नाम का पर्वत भीतर है। और जिस झाड़ी में मूसा ने आग लगी देखी थी, वह तुम हो। झाड़ी को कहीं और खोजने मत जाना। वे फूल तुम्हारे हैं, वे पत्ते तुम्हारे।



सपना यह संसार 

ओशो 

No comments:

Post a Comment