Saturday, December 12, 2015

ऊर्जा का अतिरेक

लाओत्‍सू कहता है: ‘मैं कुछ नहीं करता हूं और मुझसे शक्तिशाली कोई नहीं है। मैं कभी कुछ नहीं करता हूं और कोई मुझसे शक्तिशाली नहीं है। जो कुछ करने के कारण शक्तिशाली हैं, उन्हें हराया जा सकता है।’ लाओत्सु कहता है, ‘मुझे हराया नहीं जा सकता, क्योंकि मेरी शक्ति कुछ न करने से आती है।’ तो असली बात कुछ न करना है।

बोधिवृक्ष के नीचे बुद्ध क्या कर रहे थे? कुछ नहीं कर रहे थे। वे उस क्षण कुछ भी नहीं कर रहे थे, वे शून्य हो गए थे। और मात्र बैठे बैठे उन्होंने परम को पा लिया। यह बात बेबूझ लगती है। यह बात बहुत हैरानी की लगती है। हम इतना प्रयत्न करते हैं और कुछ नहीं होता है और बुद्ध बोधिवृक्ष के नीचे बैठे बैठे बिना कुछ किए ही परम को उपलब्ध हो गए!

जब तुम कुछ नहीं कर रहे हो तब तुम्हारी ऊर्जा बाहर गति नहीं करती है। तब वह ऊर्जा आकाश शरीर को मिलती है और वहां इकट्ठी होती है। फिर तुम्हारा आकाश शरीर विद्युत शक्ति का भंडार बन जाता है। और वह भंडार जितना बढ़ता है, तुम्हारी शांति भी उतनी ही बढ़ती है। और तुम जितना ज्यादा शात होते हो उतनी ही ऊर्जा का भंडार भी बढ़ता है। और जिस क्षण तुम जान लेते हो कि आकाश शरीर को ऊर्जा कैसे दी जाए और कैसे ऊर्जा को व्यर्थ नष्ट न किया जाए, उसी क्षण गुप्त कुंजी तुम्हारे हाथ लग गई।

और तब तुम आनंदित हो सकते हो। वस्तुत: तभी तुम आनंदित हो सकते हो, उत्सव मना सकते हो। तुम अभी जैसे हो, ऊर्जा से रिक्त, तुम कैसे उत्सवपूर्ण हो सकते हो? तुम कैसे उत्सव मना सकते हो? तुम कैसे फूल की तरह खिल सकते हो? फूल तो अतिरेक से आते हैं, जब वृक्ष ऊर्जा से लबालब होते हैं तो उनमें फूल लगते हैं। फूल तो अतिरिक्त ऊर्जा का वैभव हैं। वृक्ष यदि भूखा हो तो उसमें फूल नहीं आएंगे, क्योंकि पत्तों के लिए भी पर्याप्त पोषण नहीं है, जड़ों के लिए भी पर्याप्त भोजन नहीं है।

उनमें भी एक क्रम है। पहले जड़ों को भोजन मिलेगा, क्योंकि वे बुनियादी हैं। अगर जड़ें ही सूख गईं तो फूल की संभावना कहां रहेगी? तो पहले जड़ों को भोजन दिया जाएगा। फिर शाखाओं को। और अगर सब ठीक ठाक चले और फिर भी ऊर्जा शेष रह जाए, तब पत्तों को पोषण दिया जाएगा। और उसके बाद भी भोजन बचे और वृक्ष समग्रत: संतुष्ट हो, जीने के लिए और भोजन की जरूरत न रहे, तब अचानक उसमें फूल लगते हैं। ऊर्जा का अतिरेक ही फूल बन जाता है। फूल दूसरों के लिए दान हैं। फूल भेंट हैं। फूल वृक्ष की तरफ से तुम्हें भेंट हैं।

और यही घटना मनुष्य में भी घटती है। बुद्ध वह वृक्ष हैं जिसमें फूल लगे। अब उनकी ऊर्जा इतनी अतिशय है कि उन्होंने सबको, पूरे अस्तित्व को उसमें सहभागी होने के लिए आमंत्रित किया है।

तंत्र सूत्र 


ओशो 


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