Monday, December 28, 2015

परिणाम तुम्हारे हाथ नहीं है

कृष्‍ण का यही अर्थ है जब वे अर्जुन को कहते है कि भविष्‍य परमात्‍मा के हाथ में छोड़ दे। तेरे कर्मों का फल परमात्‍मा के हाथ में है, तू तो बस कर्म कर। यही सहज कृत्‍य लीला बन जाता है। यही समझने में अर्जुन को कठिनाई होती है, क्‍योंकि वह सकता है कि यदि यह सब लीला ही है। तो हत्‍या क्‍यों करें? युद्ध क्‍यों करें? यह समझ सकता है कि कार्य क्‍या है, पर वह यह नहीं समझ सकता कि लीला क्‍या है। और कृष्‍ण का पूरा जीवन ही एक लीला है।

तुम इतना गैर-गंभीर व्‍यक्‍ति कहीं नहीं ढूंढ सकते। उनका पूरा जीवन ही एक लीला है, एक खेल है, एक अभिनय है। वे सब चीजों का आनंद ले रहे है। लेकिन उनके प्रति गंभीर नहीं है। वे सघनता से सब चीजों का आनंद ले रहे है। पर परिणाम के विषय में बिलकुल भी चिंतित भी चिंतित नहीं है। जो होगा वह असंगत है।

अर्जुन के लिए कृष्‍ण को समझना कठिन है। क्‍योंकि वह हिसाब लगाता है, वह परिणाम की भाषा में सोचता है। वह गीता के आरंभ में कहता है, ‘यह सब असार लगता है। दोनों और मेरे मित्र तथा संबंधी लड़ रहे है। कोई भी जीते, नुकसान ही होगा क्‍योंकि मेरा परिवार मेरे संबंधी, मेरे मित्र ही नष्‍ट होंगे। यदि मैं जीत भी जाऊं तो भी कोई अर्थ नहीं होगा। क्‍योंकि अपनी विजय मैं किसे दिखलाऊंगा? विजय का अर्थ ही तभी होता है, जब मित्र,संबंधी, परिजन उसका आनंद लें। लेकिन कोई भी न होगा,केवल लाशों के ऊपर विजय होगी। कौन उसकी प्रशंसा करेगा। कौन कहेगा कि अर्जुन, तुमने बड़ा काम किया है। तो चाहे मैं जीतूं चाहे मैं हारूं, सब असार लगता है। सारी बात ही बेकार है।’

वह पलायन करना चाहता है। वह बहुत गंभीर है। और जो भी हिसाब-किताब लगता है वह उतना ही गंभीर होगा। गीता की पृष्‍ठभूमि अद्भुत है: युद्ध सबसे गंभीर घटना है। तुम उसके प्रति खेलपूर्ण नहीं हो सकते। क्‍योंकि जीवन मरण का प्रश्न है। लाखों जानों का प्रश्न है। तुम खेलपूर्ण नहीं हो सकते। और कृष्‍ण आग्रह करते है कि वहां भी तुम्‍हें खेलपूर्ण होना है। तुम यह मत सोचो कि अंत में क्‍या होगा, बस अभी और यही जाओ। तुम बस योद्धा का अपना खेल पूरा करो। फलकी चिंता मत करो। क्‍योंकि परिणाम तो परमात्‍मा के हाथों में है। और इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि परिणाम परमात्‍मा के हाथों में है या नहीं। असली बात यह है कि परिणाम तुम्‍हारे हाथ में नहीं है। असली बात यह है कि परिणाम तुम्‍हारे हाथ में नहीं है। तुम्‍हें उसे नहीं ढोना है। यदि तुम उसे ढोते हो तो तुम्‍हारा जीवन ध्‍यानपूर्ण नहीं हो सकता। 


विज्ञान भैरव तंत्र 

ओशो 

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