Tuesday, January 19, 2016

नैनं छिदन्ति शस्त्राणि....

सिकंदर जब भारत से वापस लौटता था, तो उसने चाहा कि वह एक फकीर को भारत से ले जाए, ताकि वह यूनान में दिखा सके कि फकीर, भारतीय फकीर कैसा होता है। यूं तो बहुत फकीर जाने को राजी थे, उत्सुक थे। सिकंदर आमंत्रित करे, शाही सम्मान से ले जाए, तो कौन जाना पसंद न करेगा! लेकिन जो-जो उत्सुक थे, सिकंदर ने उन्हें ले जाना ठीक न समझा। क्योंकि जो उत्सुक थे, इससे ही जाहिर था कि वे फकीर नहीं थे। सिकंदर उस फकीर की कोशिश में रहा, जिसे ले जाना अर्थ का हो।

जब वह सीमांत प्रदेशों से वापस लौटता था, तो एक फकीर का पता चला। लोगों ने कहा, ‘एक साधु है नदी के तट पर, अरण्य में, उसे ले जाएं।’ वह गया। उसने पहले अपने सैनिक भेजे और उस फकीर को कहलवाया। सैनिकों ने जाकर कहा कि ‘तुम्हारा धन्यभाग है। सैकड़ों ने निवेदन किया सिकंदर से कि हमें ले चलो, उसने अभी किसी को चुना नहीं है। और महान सिकंदर की कृपा तुम्हारे ऊपर हुई है और उसने चाहा है कि तुम चलो। शाही सम्मान से तुम्हें यूनान ले जाएं।’ उस फकीर ने कहा, ‘फकीर को ले जाने की ताकत किसी में भी नहीं है।’
सैनिक हैरान हुए। विजेता सिकंदर के सैनिक थे, और एक नंगा फकीर ऐसा कहे! उन्होंने कहा, ‘भूलकर ऐसे शब्द दुबारा मत निकालना, अन्यथा जीवन से हाथ धो बैठोगे।’ उस फकीर ने कहा, ‘जिस जीवन को हम छोड़ चुके, उससे अब छुड़ाने वाला कोई भी नहीं है। और जाकर अपने सिकंदर को कहो, उसको जाकर कहो कि तुम्हारी ताकतें सब जीत लें, उसे नहीं जीत सकती हैं, जिसने अपने को जीत लिया हो।’ उसने कहा, ‘जाकर कहो कि तुम्हारी ताकतें सब जीत लें, लेकिन उसे नहीं जीत सकती हैं, जिसने अपने को जीत लिया हो।’


सिकंदर हैरान हुआ। ये बातें अजीब थीं, लेकिन एक अर्थ में अर्थपूर्ण भी थीं, क्योंकि फकीर से मिलना हो गया था। ऐसे आदमी की तलाश भी थी। सिकंदर खुद गया। उसके हाथ में नंगी तलवार थी। और उसने जाकर उस फकीर को कहा कि ‘अगर नहीं गए, तो शरीर से हम सिर को अलग कर देंगे।’ उसने कहा, ‘कर दो। जिस भांति तुम देखोगे कि तुमने शरीर से सिर अलग कर दिया, उसी भांति हम भी देखेंगे कि शरीर से सिर अलग कर दिया गया है।’ उसने कहा, ‘हम भी देखेंगे और हम भी दर्शक होंगे उस घटना के। लेकिन तुम हमें नहीं मार सकोगे, क्योंकि हम तो केवल दर्शक हैं।’ उसने कहा, ‘हम भी देखेंगे कि शरीर से सिर अलग कर दिया गया है। लेकिन इस भूल में मत रहना कि तुमने हमारा कुछ बिगाड़ा। जहां तक कोई कुछ बिगाड़ सकता है, वहां तक हमारा होना नहीं है।’


इसलिए कृष्ण ने कहा कि जिसे अग्नि न जला सके और जिसे बाण छेद न सकें और जिसे तलवार तोड़ न सके, वैसी कोई सत्ता, वैसी कोई अंतरात्मा हमारे भीतर है। जिसे अग्नि न जला सके और जिसे बाण न बेध सकें, वैसी कोई अविच्छेद सत्ता हमारे भीतर है।



उस सत्ता का बोध और शरीर से तादात्म्य का टूट जाना; यह भाव टूट जाना कि मैं देह हूं, शरीर की शून्यता है। इसे तोड़ने के लिए कुछ करना होगा। इसे तोड़ने के लिए कुछ साधना होगा। और शरीर जितना शुद्ध होगा, उतनी आसानी से शरीर से संबंध विच्छिन्न हो सकता है। शरीर जितनी शुद्ध स्थिति में होगा, उतनी शीघ्रता से यह जाना जा सकता है कि मैं शरीर नहीं हूं। इसलिए वह शरीर-शुद्धि भूमिका थी, शरीर-शून्यता उसका चरम फल है।


कैसे हम साधेंगे कि मैं शरीर नहीं हूं? यह अनुभव हो जाए। एक बात, उठते-बैठते, सोते-जागते अगर हम थोड़ा स्मरणपूर्वक देखें, अगर थोड़ी राइट माइंडफुलनेस हो, अगर थोड़ी स्मृति हो शरीर की क्रियाओं के प्रति, तो पहला चरण शून्यता लाने का क्रमशः विकसित होता है।

ध्यान सूत्र 

ओशो 

No comments:

Post a Comment