Saturday, January 23, 2016

हर छड़ी के दो छोर

हमें अनुभव में आता है कि प्रेम और घृणा विपरीत हैं, जब कि सचाई बिलकुल उलटी है। मनसविद कहते हैं कि प्रेम और घृणा एक ही ऊर्जा के दो पहलू हैं, वे साथ साथ हैं। फ्रायड ने जो महानतम खोजें इस सदी में की हैं, उसमें एक खोज यह भी थी कि आदमी जिसको प्रेम करता है, उसी को घृणा भी करता है। हम भी अगर थोड़ा सोचें, तो खयाल में बात आ सकती है। आप किसी भी व्यक्ति को सीधा शत्रु नहीं बना सकते। शत्रु बनाने के पहले मित्र बनाना जरूरी होगा। सीधी शत्रुता पैदा ही नहीं हो सकती, शत्रुता के लिए पहले मित्रता चाहिए। तो मित्रता शत्रुता का पहला कदम है, अनिवार्य कदम है, उसके बाद ही शत्रुता हो सकती है।


तो शत्रुता और मित्रता विपरीत नहीं हैं, बल्कि एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जिस जिसको हम प्रेम करते हैं, उस उसको घृणा भी करते हैं; और जिस जिसको हम घृणा करते हैं, उस उसको हम प्रेम भी करते हैं। शत्रुओं से हमारा बड़ा लगाव होता है, उनकी याद आती है। उनके बिना हम अधूरे हो जाएंगे; उनके बिना हमारे जीवन में कुछ खाली हो जाएगा। उसी तरह, जैसे मित्र के मिट जाने पर कुछ खाली हो जाएगा। मित्र भी हमें भरते हैं, शत्रु भी हमें भरते हैं।


बुद्ध ने कहा है कि मैं कोई मित्र नहीं बनाता, क्योंकि मैं कोई शत्रु नहीं बनाना चाहता हूं। पर हम तो सोचते हैं : शत्रु और मित्र विपरीत हैं। जीवन में ऐसी बात नहीं है। हम तो सोचते हैं : रात और दिन विपरीत हैं, अंधेरा और प्रकाश विपरीत हैं। सचाई यह नहीं है। अंधेरा प्रकाश का ही एक रूप है। प्रकाश अंधेरे का ही एक ढंग है। वे दोनों एक ही ऊर्जा के अलग अलग कम हैं।


अगर जगत से अंधकार पूरी तरह मिट जाए तो हमारी साधारण बुद्धि कहेगी कि सब तरफ प्रकाश ही प्रकाश रह जाएगा। विज्ञान इससे राजी नहीं होगा। विज्ञान कहेगा, अंधकार अगर बिलकुल मिट जाए तो प्रकाश बिलकुल मिट जाएगा, या प्रकाश बिलकुल मिट जाए तो अंधकार बिलकुल मिट जाएगा।


अगर जगत से घृणा बिलकुल मिटानी हो तो प्रेम को बिलकुल मिटाना पड़ेगा। जब तक प्रेम है, घृणा जारी रहेगी। जब तक मित्र हैं, तब तक शत्रु पैदा होते रहेंगे। और अगर मृत्यु को बिलकुल पोंछ देना हो, तो जन्म को बिलकुल पोंछ देना होगा। जब तक जन्म है, मृत्यु होती रहेगी।

कठोपनिषद 

ओशो 


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