Tuesday, January 19, 2016

सत्य पर पर्दे नहीं हैं, हमारी आंख पर पर्दे हैं

परमात्मा संसार को बनाने वाला नहीं है। आज कोई मुझसे पूछता था, किसने बनाया? हम पहाड़ के पास थे वहां घाटियों के और कोई पूछता था, ये घाटियां और ये दरख्त, ये किसने बनाए? यह हम तब तक पूछेंगे कि किसने बनाए, जब तक हम जानते नहीं। और जब हम जानेंगे, तब हम यह न पूछेंगे कि किसने बनाए; हम जानेंगे, यह स्वयं बनाने वाला है। क्रिएटर कोई भी नहीं है, स्रष्टा कोई भी नहीं है। सृष्टि ही स्रष्टा है। जब दर्शन होता है, जब दिखायी पड़ता है, तो यह क्रिएशन ही क्रिएटर हो जाता है। यह जो चारों तरफ विराट जगत है, यही परमात्मा हो जाता है। संसार के विरोध में परमात्मा नहीं मिलता, संसार का बोध विसर्जित होता है और परमात्मा उपलब्ध होता है।


उस समाधि की अवस्था में सत्य का बोध होगा, आवृत सत्य का, जो ढंका है। और ढंका किससे है? किसी और से नहीं, हमारी ही मूर्च्छा से ढंका है। सत्य पर पर्दे नहीं हैं, हमारी आंख पर पर्दे हैं। इसलिए जो अपनी आंख के पर्दों को गिरा देगा, वह सत्य को जान लेता है। और आंख के पर्दे कैसे गिराए जाएं, उसकी मैंने चर्चा की है। तीन शुद्धियां और तीन शून्यताएं आंख के पर्दों को गिरा देंगी। जब आंख बिना पर्दे की होती है, उसको हम समाधि कहते हैं। वह शुद्ध दृष्टि जो बिना पर्दे की होती है, उसको हम समाधि कहते हैं।


समाधि चरम लक्ष्य है धर्मों का–समस्त धर्मों का, समस्त योगों का। यह हमने विचार किया। इस पर चिंतन करेंगे, इस पर मनन करेंगे, इस पर निदिध्यासन करेंगे। इसे सोचेंगे, इसे विचारेंगे, इसे प्राणों में उतारेंगे। जो माली की तरह बीज को बोएगा, वह फिर एक दिन खुश होकर देखेगा कि उसमें फूल खिल गए हैं। और जो श्रम करेगा और खदानों को तोड़ेगा, वह एक दिन पाएगा, हीरे-जवाहरात उपलब्ध हो गए हैं। और जो पानी में डूबेगा और गहराइयों तक जाएगा, वह एक दिन पाएगा कि वह मोतियों को ले आया है।


जिनकी भी आकांक्षा हो और जिनके भी पुरुषार्थ को लगता हो कि कोई चुनौती है, उनके प्राण कंपित होंगे, आंदोलित होंगे और वे अग्रसर होंगे। किसी पहाड़ पर चढ़ना उतनी बड़ी चुनौती नहीं है, स्वयं को जान लेना सबसे बड़ी चुनौती है। और जो ठीक अर्थों में पुरुष हैं, जो ठीक अर्थों में जिनके भीतर कोई भी शक्ति और ऊर्जा है, उनका यह अपमान है कि बिना स्वयं को जाने वे समाप्त हो जाएं।


प्रत्येक के भीतर यह संकल्प भर जाना चाहिए कि मैं सत्य को जानकर रहूंगा, स्वयं को जान कर रहूंगा, समाधि को जानकर रहूंगा। इस संकल्प को साधकर और इन भूमिकाओं को प्रयोग करके आप भी सफल हो सकते हैं, कोई भी सफल हो सकता है।
 
ध्यान सूत्र 
 
ओशो 

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