Sunday, January 24, 2016

अज्ञानी के बीच ज्ञानी

आंखें जब अंधेरे की आदी हो जाएं तो प्रकाश अंधकार जैसा मालूम होगा। अंधेरे में ही तुम जीए हो; तो आज अचानक सूरज द्वार पर आ जाए तो उसकी चकाचौंध में तुम्हारी आंखें बंद ही हो जाएंगी। प्रकाश को समझने के लिए प्रकाश की यात्रा, प्रकाश का स्वाद, प्रकाश का जीवन में प्रशिक्षण चाहिए।

परमात्मा को खोजने बहुत लोग निकलते हैं, लेकिन परमात्मा अगर तुम्हें राह पर मिल जाए–और बहुत बार मिलता है–तो तुम उसे पहचान न पाओगे। तुम उसे पहचानोगे कैसे? तुमने अब तक जो जाना है उससे तो वह बिलकुल भिन्न है। तुम्हारा अब तक जो भी ज्ञान है उस ज्ञान से तो उस परमात्मा को तुम बिलकुल भी न पहचान पाओगे।

दो ही उपाय हैं। अगर तुमने अपना ज्ञान पकड़ा तो परमात्मा सामने भी होगा तो दिखाई न पड़ेगा। दूसरा उपाय है, अगर तुमने अपना ज्ञान छोड़ दिया तो परमात्मा सामने न भी हो तो भी सब तरफ वही दिखाई पड़ेगा। तुम्हारी ज्ञान की पकड़ तुम्हें अंधा बनाए हुए है।


इसलिए जब भी कभी किसी व्यक्तित्व में परमात्मा की ज्योति उतरती है तो हम उसे पहचान नहीं पाते। अन्यथा जीसस को सूली पर चढ़ाने की जरूरत क्या थी? और जिन्होंने जीसस को सूली पर चढ़ाया उनको भी भ्रांति है कि वे परमात्मा के खोजी और प्रेमी हैं। न केवल यही, बल्कि उन्हें लगता है कि जीसस परमात्मा का दुश्मन है।


जीसस को वे न पहचान पाए, परमात्मा को तो कैसे पहचानेंगे! जीसस तो एक किरण हैं उसकी, वह भी पहचानी न जा सकी, तो जब समग्र सूर्य तुम्हारे सामने होगा तब तो तुम बिलकुल अंधे हो जाओगे। तुम्हें सिवाय अंधकार के और कुछ भी दिखाई न पड़ेगा।


इसलिए ज्ञानी अक्सर अज्ञानियों के बीच महा अज्ञानी मालूम पड़ता है। ऐसा ही समझो कि तुम सब अंधे होओ और एक आंख वाला व्यक्ति भूल-चूक से पैदा हो जाए। तो सारे अंधे मिल कर या तो उसकी आंखें फोड़ देंगे, क्योंकि वे बरदाश्त न कर सकेंगे। और अंधों का तर्क यह होगा कि कभी तुमने सुना है कि आंख वाला आदमी होता है! जरूर प्रकृति की कहीं कोई भूल हो गई है। अंधा ही होता है आदमी; आंखों में कहीं कुछ भूल है।

ताओ उपनिषद 

ओशो 


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