Saturday, January 23, 2016

समय से भेंट

हम सोचते हैं कि समय चलता है। वस्तुतः हम चल रहे हैं। हम मात्र चलते चले जाते हैं। समय बिलकुल ही नहीं चलता। समय वर्तमान है। समय सदैव यहीं और अभी है वह तो हमेशा ही यही और अभी था। वह सदैव ही यही और अभी होगा। हम चलते चले जाते हैं हम अतीत से भविष्य में यात्रा करते हैं और हमारे लिए समय मात्र एक सेतु की तरह है–अतीत से भविष्य में जान के लिए, एक इच्छा से दूसरी इच्छा में जाने के लिए। समय मात्र एक पथ है हमारे लिए। समय केवल मार्ग है एक इच्छा से दूसरी में जाने के लिए। यदि इच्छाएं समाप्त हो जाएं, तो आपकी गति रुक जाएगी और यदि आपकी गति रुक जाती है, तो आप समय से भेंट करेंगे, अभी और यही, और वह भेंट ही द्वार है। वह मुलाकात ही द्वार है, वह मिलन ही आवाहन है।

आत्मपूजा उपनिषद 

ओशो 


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