Friday, February 19, 2016

कर्मोन्द्रियाणि संयम्य य आस्ति मनसास्मरन् । ड़न्द्रियार्थांन्यिमूढात्मा मिथ्याचार: स उच्यते

कृष्ण कह रहे हैं कि जो मूढ़ व्यक्ति,  खयाल रखना: जो नासमझ, जो अज्ञानी इंद्रियों को हठपूर्वक रोककर मन में काम के चिंतन को चलाए चला जाता है, वह दंभ में, पाखंड में, अहंकार में पतित होता है। मूढ़ कहेंगे! कह रहे हैं, ऐसा व्यक्ति मूढ़ है, जो इंद्रियों को दमन करता है, सप्रेस करता है!

काश! फ्रायड को यह वचन गीता का पढ़ने मिल जाता, तो फ्रायड के मन में धर्म का जो विरोध था, वह न रहता। लेकिन फ्रायड को केवल ईसाई दमनवादी संतों के वचन पढ़ने को मिले। उसे केवल उन्हीं धार्मिक लोगों की खबर मिली, जिन्होंने जननेंद्रियां काट दीं, ताकि कामवासना से मुक्ति हो जाए। फ्रायड को उन सूरदासों की खबर मिली, जिन्होंने आंखें फोड़ दीं, ताकि कोई सौंदर्य आकर्षित न कर सके। उन विक्षिप्त, न्यूरोटिक लोगों की खबर मिली, जिन्होंने अपने शरीर को कोड़े मारे, लहू बहाया, ताकि शरीर कोई मांग न करे। जो रात रात सोए नहीं, कि कहीं कोई सपना मन को वासना में न डाल दे। जो भूखे रहे, कि कहीं शरीर में शक्ति आए, तो कहीं इंद्रियां बगावत न कर दें।


स्वभावत:, अगर फ्रायड को लगा कि इस तरह का सब धर्म न्यूरोटिक है, पागल है और मनुष्य जाति को विक्षिप्त करने वाला है, तो आश्चर्य नहीं। लेकिन कृष्ण का एक वचन भी फ्रायड के मन की सारी ग्रंथियों को खोल देता।
 
कृष्ण कह रहे हैं, मूढ़ है वह व्यक्ति, फ्रायड से पांच हजार साल पहले; जो अपनी इंद्रियों को दबाता है। क्योंकि इंद्रियों को दबाने से मन नहीं दबता, बल्कि इंद्रियों को दबाने से मन और प्रबल होता है। इसलिए मूढ़ है वह व्यक्ति। क्योंकि इंद्रियों का कोई कसूर ही नहीं, इंद्रियों का कोई सवाल ही नहीं है। असली सवाल भीतर छिपे मन का है। वह मन मांग कर रहा है, इंद्रियां तो केवल उस मन के पीछे चलती हैं। वे तो मन की नौकर चाकर, मन की सेविकाएं, इससे ज्यादा नहीं हैं।

कृष्ण कह रहे हैं कि बाहर से दबा लोगे इंद्रियों को  इंद्रियों का तो कोई कसूर नहीं, इंद्रियों का कोई हाथ नहीं। इररेलेवेंट हैं इंद्रियां, असंगत हैं, उनसे कोई वास्ता ही नहीं है। सवाल है मन का। रोक लोगे इंद्रियों को, न करो भोजन आज, कर लो उपवास। मन, मन दिनभर भोजन किए चला जाएगा। ऐसे मन दो ही बार भोजन कर, लेता है दिन में, उपवास के दिन दिनभर करता रहता है। यह जो मन है, मूढ़ है वह व्यक्ति, जो इस मन को समझे बिना, इस मन को बदले बिना, केवल इंद्रियों के दबाने में लग जाता है। और उसका परिणाम क्या होगा? उसका परिणाम होगा कि वह दंभी हो जाएगा। वह दिखावा करेगा कि देखो, मैंने संयम साध लिया; देखो, मैंने संयम पा लिया; देखो, मैं तप को उपलब्ध हुआ; देखो, ऐसा हुआ, ऐसा हुआ। वह बाहर से सब दिखावा करेगा और भीतर, भीतर बिलकुल उलटा और विपरीत चलेगा।


गीता दर्शन 

ओशो 

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