Monday, February 15, 2016

काम रूपांतरण का पहला चरण

बूढ़े लोग ध्‍यान की चेष्‍टा करते है दुनिया में, जो बिलकुल ही गलत है। ध्‍यान की सारी चेष्‍टा बच्‍चों पर की जानी चाहिए। लेकिन मरने के करीब पहुंच कर आदमी ध्‍यान में उत्‍सुक होता है। वह पूछता है ध्‍यान क्‍या, योग क्‍या,हम कैसे शांत हो जायें। जब जीवन की सारी ऊर्जा खो गयी, जब जीवन के सब रास्‍ते सख्‍त और मजबूत हो गये। जब झुकना और बदलना मुश्‍किल हो गया, तब वह पूछता है कि अब मैं कैसे बदल जाऊँ। एक पैर आदमी कब्र में डाल लेता है, और दूसरा पैर बहार रख कर पूछता है। ध्‍यान का कोई रास्‍ता है?


अजीब सी बात है। बिलकुल पागलपन की बात है। यह पृथ्‍वी कभी भी शांत और ध्‍यानस्‍थ नहीं हो सकती। जब तक ध्‍यान का संबंध पहले दिन के पैदा हुए बच्‍चे से हम न जोड़ेंगे अंतिम दिन के वृद्ध से नहीं जोड़ा जा सकता। व्‍यर्थ ही हमें बहुत श्रम उठाना पड़ता है बाद के दिनों में शांत होने के लिए, जो कि पहले एकदम हो सकता था।
छोटे बच्‍चे को ध्‍यान की दीक्षा काम के रूपांतरण का पहला चरण है: शांत होने की दीक्षा, निर्विचार होने की दीक्षा मौन होने की दीक्षा।


बच्‍चे ऐसे भी मौन है, बच्‍चे ऐसे ही शांत है, अगर उन्‍हें थोड़ी सी दिशा दी जाये और उन्‍हें मौन और शांत होने के लिए घड़ी भर की भी शिक्षा दी जाये तो जब वे 14 वर्ष के होने के करीब आयेंगे। जब काम जगेगा, जब तक उनका एक द्वार खुल चुका होगा। शक्‍ति इकट्ठी होगी और जो द्वार से बहनी शुरू हो जायेगी। वह अनुभव उनकी ऊर्जा को गलत मार्गों से रोकेगा और ठीक मार्गों पर ले आयेगा।

लेकिन हम छोटे-छोटे बच्‍चों को ध्‍यान तो नहीं सिखाते, काम का विरोध सिखाते है। पाप है गंदगी है। कुरूपता है, बुराई है, नरक है; यह सब हम बता रहे है। और इस सबके बताने से कुछ भी फर्क नहीं पड़ता कुछ भी फर्क नहीं पड़ता। बल्‍कि हमारे बताने से वे और भी आकर्षित होते है और तलाश करते है कि क्‍या है यह गंदगी, क्‍या है नरक, जिसके लिए बड़े इतने भयभीत और बेचैन होते है।


और फिर थोड़े ही दिनों में उन्‍हें यह भी पता चल जाता है कि बड़े जिस बात से हमें रोकने की कोशिश कर रहे है। खुद दिन रात उसी में लीन रहते है। और जिस दिन उन्‍हें यह पता चल जाता है, मां बाप के प्रति सारी श्रद्धा समाप्‍त हो जाती है।


मां-बाप के प्रति श्रद्धा समाप्‍त करने में शिक्षा का हाथ नहीं है। मां-बाप के प्रति श्रद्धा समाप्‍त करने में मां बाप का अपना हाथ है।


आप जिन बातों के लिए बच्‍चों को गंदा कहते है। बच्‍चे बहुत जल्‍दी पता लगा लेते है कि उन सारी गंदगियों में आप भली भांति लवलीन हे। आपकी दिन की जिंदगी दूसरी और रात की दूसरी। आप कहते है कुछ और करते है कुछ। 


छोटे बच्‍चे बहुत एक्‍यूट आब्‍जर्वर होते है। वे बहुत गौर से निरीक्षण करते रहते है। कि क्‍या हो रहा है। घर में वे देखते है कि मां जिस बात को गंदा कहती है, बाप जिस बात को गंदा कहता है। वही गंदी बात दिन रात घर में चल रही है। इसकी उन्‍हें बहुत जल्‍दी बोध हो जाता है। उनकी सारी श्रद्धा का भाव विलीन हो जाता है। कि धोखेबाज है ये मां-बाप। पाखंडी है। हिपोक्रेट है। ये बातें कुछ और कहते है, करते कुछ और है।


और जिन बच्‍चों का मां-बाप पर से विश्र्वास उठ गया। वे बच्‍चे परमात्‍मा पर कभी विश्वास नहीं कर सकेंगे। इसको याद रखना। क्‍योंकि बच्‍चों के लिए परमात्‍मा का पहला दर्शन मां-बाप में होता है। अगर वहीं खंडित हो गया तो। ये बच्‍चे भविष्‍य में नास्‍तिक हो जाने वाले है। बच्‍चों को पहले परमात्‍मा की प्रतीति अपने मां-बाप की पवित्रता से होती है। पहली दफा बच्‍चे मां-बाप को ही जानते है। निकटतम और उनसे ही उन्‍हें पहली दफा श्रद्धा और रिवरेंस का भाव पैदा होता है। अगर वही खंडित हो गया तो इन बच्‍चों को मरते दम तक वापस परमात्‍मा के रास्‍ते पर लाना मुश्‍किल हो जायेगा। क्‍योंकि पहला परमात्‍मा ही धोखा दे गया। जो मां थी, जो बाप था, वहीं धोखे बाज सिद्ध हुआ।


आज सारी दुनिया में जो लड़के यह कह रहे है कि कोई परमात्‍मा नहीं है, कोई आत्‍मा नहीं है। कोई मोक्ष नहीं है। धर्म सब बकवास है। उसका कारण यह नहीं है कि लड़कों ने पता लगा लिया है कि आत्‍मा नहीं है। परमात्‍मा नहीं है। उसका कारण यह है कि लड़कों ने मां-बाप का पता लगा लिया है। कि वे धोखेबाज है। और यह सार धोखा सेक्‍स के आस पास केंद्रित है। और यह सारा धोखा केंद्र पर खड़ा है।


बच्‍चों को यह सिखाने की जरूरत नहीं है कि सेक्‍स पाप है, बल्‍कि ईमानदारी से यह सिखाने की जरूरत है कि सेक्‍स जिंदगी का एक हिस्‍सा है और तुम सेक्‍स से ही पैदा हुए हो, और वह हमारी जिंदगी में है, ताकि बच्‍चे सरलता से मां बाप को समझ सकें और जब जीवन को वह जानेंगे तो आदर से भर सकें कि मां-बाप सच्‍चे और ईमानदार है। उनको जीवन में आस्‍तिक बनाने में इससे बड़ा संबल और कुछ भी नहीं है। वे अपने मां बाप को सच्‍चे और ईमानदार अनुभव कर सकते है।


लेकिन आज सब बच्‍चे जानते है कि मां-बाप बेईमान और धोखेबाज हे। यह बच्‍चे और मां बाप के बीच एक कलह का एक कारण बनता है। सेक्‍स का दमन पति ओर पत्‍नी को तोड़ दिया है। मां-बाप और बच्‍चों को तोड़ दिया है। नहीं, सेक्‍स का विरोध नहीं, निंदा नहीं, बल्‍कि सेक्‍स की शिक्षा दी जानी चाहिए।


संभोग से समाधी की ओर 

ओशो 

 

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