Saturday, February 13, 2016

गुरुरेव परौ धर्मो गुरुरेव परा गति:।



जिसके चरणों में तुमने अपने अहंकार को चढ़ा दिया, वही तुम्हारा गुरु है। गुरु शब्द भी अच्छा है। गुरु का अर्थ होता है : जिससे अंधकार मिट जाए। गुरु शब्द का अर्थ होता है : जो अहंकार को मिटा दे; जो ज्योति की भांति है। और निश्चित ही ज्योति ही गति है। क्योंकि छोटीसी ज्योति भी तुम्हें मिल जाए तो तुम्हारी सूर्य की तरफ यात्रा शुरू हो गयी। एक किरण पकड़ ली तो सूरज तक पहुंच जाएंगे; फिर कोई सन्देह नहीं। एक नदी की धार में तुम उतर गए तो सागर तक पहुंच जाओगे। पहुंच ही जाओगे!


एकाक्षर प्रदातममू नाभिनन्दति।


अभागा है वह व्यक्ति जो अक्षर देनेवाले को भी अभिनन्दन न करता हो, अहंकार जिसके चरणों में न रखता हो, जिसके सामने झुकता न हो।



तस्य हत तपो ज्ञानं सवत्यामघटाखवत्।।


उसका सब कुछ ऐसे क्षीण हो जाता है जैसे कच्चे घड़े में भरा हुआ जल। बह जाएगा, जल ही नहीं बह जाएगा धीरे धीरे, घड़ा भी बह जाएगा। जल भी जाएगा, घड़ा भी जाएगा। और जिसने अहंकार को चढ़ाया, वह पक्का घड़ा है। वह अग्नि से गुजरा, पक्का। अब उसमें जो भी भरा जाएगा, भरा रहेगा। पक्का घड़ा हो जाए व्यक्ति तो अमृत से भर सकता है। लेकिन उस पकान के लिए, उस परम अवसर की तलाश में तुम्हें कुछ गंवाना पड़ेगा। हालांकि जब गंवाओगे तब लगेगा गंवा रहे हो, गंवाने के बाद तो तुम हैरान होओगे तुमने कुछ भी गंवाया नहीं, कमाया ही कमाया।


इस दुनिया का गणित तुम ठीक से समझ लो। इस दुनिया में कमाओ तो कमाओगे, गंवाओगे तो गंवाओगे। लेकिन इसके पार जो दुनिया है, वहा अगर कमाओगे तो गंवाओगे, अगर गंवाओगे तो कमाओगे। जीसस ने कहा है : धन्य हैं वे जो अन्तिम खड़े हैं, क्योंकि मेरे प्रभु का राज्य उन्हीं का है। धन्य हैं वे जो अन्तिम खड़े हैं। वे जिन्होंने अपने अहंकार को छोड दिया। जो इतने विनम्र हो गए हैं कि अब अन्तिम खड़े हो सकते हैं। मेरे प्रभु का राज्य उन्हीं का है।


लगन मुहूरत सब झूठ 


ओशो 

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