Monday, February 15, 2016

बुद्ध पुरूषों के साथ कथाएं क्यों जुड़ जाती हैं। कृपा करके समझाइए।

महत्‍वपूर्ण है यह। सभी बुद्धपुरुषों के साथ पुराण कथाएं जुड़ जाती हैं। कारण है।

पहली बात, बुद्धपुरुषों के जीवन से अगर हम कथाओं को अलग कर लें, तो बचता क्या है! कोरा खाका बचता है बुद्ध कब पैदा हुए, किस तारीख को पैदा हुए, किस घर में पैदा हुए। लेकिन इसको जानने से क्या होगा? पहली तारीख को पैदा हुए कि दूसरी तारीख को पैदा हुए कि तीसरी तारीख को पैदा हुए, इससे क्या अंतर पड़ता है! कभी पैदा हुए, इससे क्या अंतर पड़ता है! कब मरे, इससे क्या अंतर पड़ता है! बुद्धपुरुषों का मूल्य तो कुछ ऐसी चीज से है जो न कभी पैदा हुई और न कभी मरी। जो पैदा हुआ और मरा, वह तो देह थी, वह तो रूप था। उसके संबंध में हिसाब रखने से कुछ भी सार नहीं है। वह तो गौण है, असार है।


उस असार पर ध्यान देता है इतिहास। पुराण पकड़ता है सार को। पुराण यह फिकर नहीं करता कि बुद्ध कब पैदा हुए, पुराण यह फिकर करता है कि बुद्धत्व क्या है? पुराण अखबार नहीं है, घटनाओं की चिंता नहीं करता, घटनाओं के पीछे अंदर छिपी आभा को पकड़ता है।


दोनों में बड़ा फर्क है। दोनों पकड़ने के बिलकुल अलग ढंग हैं।


बुद्धत्व क्या है, यह एक बात है, और गौतम बुद्ध कौन हैं, यह बिलकुल दूसरी बात है। गौतम बुद्ध इतिहास के अंग हो जाएंगे। लेकिन इतिहास में तुम क्या पाओगे? एक छोटी सी टिप्पणी कि गौतम बुद्ध नाम का बेटा शुद्धोदन नाम के राजा के घर पैदा हुआ। मां का नाम यह था, इतनी उम्र में घर छोड्कर चला गया। फिर इतनी उम्र में लोग कहते हैं कि ज्ञानी हो गया, फिर इतनी उम्र में प्रचार करने लगा, लोगों को समझाने लगा। फिर अस्सी साल की उम्र में मर गया। यह ऊपरी ढांचा है। यह असली बात नहीं है। यह तो बहुत रेखाचित्र जैसा हुआ, इसमें मांस मज्जा बिलकुल नहीं है। मांस मज्जा तो बड़ी और बात है।


उस रात जब बुद्ध ने अपना महल छोड़ा, तो बुद्ध के भीतर क्या हुआ? महल छोडा, यह बाहर की घटना है, यह इतिहास में आ जाएगी। लेकिन महल छोड़ते वक्त बुद्ध की चेतना में कैसे तूफान उठे, कोई इतिहास उन्हें अंकित नहीं कर सकता। कैसा आंदोलन उठा उठा होगा आंदोलन, सुंदरतम पत्नी को छोड्कर जाते थे, अभी  अभी पैदा हुए बेटे को छोड्कर जाते थे कैसा तूफान उठा? छोड्कर जब गए, आखिरी बार मन हुआ कि जाकर एक बार और देख लें, कम से कम बेटे को देख लें, फिर दुबारा तो देखने मिले न मिले! बेटा मां के आंचल में छिपा हुआ सो रहा था, करवट लिए यशोधरा सोयी है। बुद्ध को मन हुआ कि आंचल उठाकर बेटे का मुंह देख लें। फिर सोचकर रुक गए कि अगर आंचल उठाया, कहीं यशोधरा जग गयी, तो फिर मैं जा सकूंगा या न जा सकूंगा? कहीं यशोधरा रोने लगी, चीखने चिल्लाने लगी, तो मैं जा सकूंगा या न जा सकूंगा? तो बिना आहट किए चुपचाप लौट गए द्वार से। 


अब यह बात घटी कि नहीं, यह बात महत्वपूर्ण नहीं है, मगर यह बात घटनी चाहिए। इस फर्क को समझना। इतिहास कहेगा कि हम तो इसे तब लिखेंगे जब यह घटी हो। पुराण कहेगा, यह घटी या नहीं घटी, यह बात तो बिलकुल अर्थहीन है, लेकिन यह घटनी चाहिए। फर्क समझ रहे हो! घटनी चाहिए।


जिस स्त्री को प्रेम किया, जिस स्त्री से बच्चा पैदा हुआ, तुम्हारा बेटा पैदा हुआ, उसके द्वार तक न जाओगे? बुद्ध गए कि नहीं, यह बात जरा भी महत्वपूर्ण नहीं है, मगर जाना चाहिए। मनुष्य का स्वभाव है कि जाएगा। यह मनुष्य के स्वभाव का लक्षण है कि जाएगा बेटे को तो देख लें!


फिर दुविधा खड़ी हुई होगी हुई या नहीं, खयाल रखना, महत्वपूर्ण नहीं है हों सकता है बुद्ध चुपचाप भाग गए हों, गए ही न हों वहा। नहीं, लेकिन मुझे भी लगता है पुराण महत्वपूर्ण है, बुद्ध को ले गया पुराण वहां। यह सभी मनुष्य के भीतर घटेगा।


तुम थोड़ा सोचो, एक रात, आधी रात तुम घर छोड्कर जाने लगे, अपनी पत्नी को एक बार न देख लेना चाहोगे जिसे इतना चाहा, जिसे सारी चाहत दी! अपने बेटे पर एक दफा हाथ न फेर लेना चाहोगे? यह बिलकुल स्वाभाविक है। यह मनोवैज्ञानिक है। ऐतिहासिक है या नहीं, इससे कुछ अर्थ नहीं।


तो जिसने यह बात लिखी, वह मनुष्य के मन को समझकर लिख रहा है। हो सकता है, बुद्ध जिद्दी किस्म के आदमी रहे हों और चले गए हों। लेकिन बात जंचेगी नहीं। अगर ऐसा लिखा जाए कि बुद्ध चुपचाप उठे और चल दिए और लौटकर भी न देखा, तो यह बात मानवीय नहीं है, अमानवीय हो जाती है। आदमी तो लौट लौटकर देखेगा, पछताएगा, सोचेगा हजार बार, लौट लौट आएगा, जाकर भी लौट लौट आएगा।



फिर कथा कहती है चलो यह भी बात समझ में आ जाती है कि शायद हुई भी हो, ऐतिहासिक भी हो सकती है जब बुद्ध अपने रथ पर सवार होकर चलने लगे तो उनके घोड़े की टापें इतने जोर से पड़ती हैं कि सारा नगर जग जाएगा। राजा के घोड़े, राजा का रथ, घोड़े की टापें वे श्रेष्ठतम घोड़े थे उस समय के, उनकी टापें इतने जोर से पड़ेगी कि सारा गांव जाग जाएगा, अड़चन हो जाएगी। पुराण कहता है, देवताओं को लगा कि कहीं लोग जाग गए तो बुद्ध का यह जो महा अभिनिष्कमण है, रुक जाएगा। देवताओं को लगा!


देवता प्रतीक है शुभ का, जैसे शैतान प्रतीक है अशुभ का। कोई देवता कहीं है, ऐसा नहीं है। लेकिन देवता प्रतीक है शुभ का इस अस्तित्व को भी शुभ को बचाने की आकांक्षा होती है, होनी चाहिए, ऐसा पुराण कहता है।
तो देवताओं को लगा कि यह घोड़ों की टाप से तो बुद्ध का जाना न रुक जाए। बुद्ध का जाना रुका, तो अनंत अनंत काल में कभी कोई बुद्ध होता है, वह महा घटना रुक जाएगी। अगर बुद्धू बुद्ध न हुए, तो करोड़ों लोग ‘ जो उनके पीछे चलकर बुद्धत्व की यात्रा करते, वे वंचित रह जाएंगे। तो अस्तित्व में जो शुभ का तत्व है, उसने तत्क्षण इंतजाम किया। उसने बड़े बड़े कमल के फूल बिछा दिए, घोड़ों के पैर कमल के फूलों पर पड़ने लगे, उनकी चोट गांव में किसी को सुनायी न पड़ी।


अब यह हुआ, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता। मगर ऐसा होना चाहिए, यह हमारी आकांक्षा है। पुराण मनुष्य की उदात्त आकांक्षा है।


पुराण यह कह रहा है, यह अस्तित्व हमारे प्रति उपेक्षापूर्ण नहीं हो सकता, जब तुम शुभ करोगे तो अनंत शक्तियां तुम्हारा साथ देंगी। इस बात को प्रतीक में रख दिया। जब तुम बुरा करोगे, तब तुम अकेले, जब तुम भला करोगे, तो सारा अस्तित्व तुम्हारा साथ देगा। होना भी ऐसा ही चाहिए! होना भी ऐसा ही चाहिए।


नहीं तो फिर अस्तित्व का अर्थ हुआ कि वह तटस्थ है, उसे हमारे जीवन से कुछ लेना देना नहीं है  हम चोरी करें, हत्या करें, या हम पुण्य करें, दान करें, हम प्रेम करें कि घृणा करें, हम धन जुटाएं कि ध्यान में उतरें, अस्तित्व को कोई प्रयोजन नहीं है। यह दुनिया बडी फीकी हो जाएगी। इसका अर्थ हुआ, कुछ लेना देना नहीं है अस्तित्व को, हम कुछ भी करते रहें। फिर हमारे करने का मूल्य क्या है? फिर हमने धन इकट्ठा किया कि ध्यान इकट्ठा किया, अगर दोनों में अस्तित्व कोई भेद ही नहीं करता, तो फिर यहां साधु असाधु बराबर।


पुराण कहता है, नहीं, अस्तित्व फिक्र करता है। जब तुम बुरा करते हो, तब तुम अकेले, तब तुम्हें अस्तित्व साथ नहीं देता। बुरे के तुम अकेले जिम्मेवार हो। तो बुरा करते वक्त खयाल रखना। और जब तुम शुभ करते हो तो सारा अस्तित्व साथ देता है। अस्तित्व चाहता है कि शुभ हो। इस महत्वाकांक्षा को, इस अभीप्सा को प्रगट किया है कथा में।


कथा में तो प्रतीक होते हैं, कहानी में तो प्रतीक होते हैं, प्रतीकों में बात छिपी होती है। देवताओं ने कमल के फूल बिछा दिए, घोड़ों की टाप किसी को सुनायी नहीं पड़ी। देवताओं ने ऐसी नींद फैला दी गांव में कि सारी राजधानी गहरी निद्रा में खो गयी। जो द्वार था गांव का, उसके खुलने की आवाज कोसों तक सुनायी पड़ती थी पुराने राजकोटों के द्वार जब द्वार खोला गया तो सारा गांव जैसे क्लोरोफार्म दे दिया गया।


अब ऐसा हुआ हो, यह सवाल नहीं है। यह पूछना ही मत कि ऐसा हुआ कि नहीं हुआ। यह पूछा कि तुमने गलत प्रश्न पूछा। मगर ऐसा होना चाहिए। बुद्ध के महा अभिनिष्कमण की रात्रि, जीवन के शुभतत्व ने सब तरह से साथ दिया।


पुराण का अर्थ होता है, जो दिखायी पड़ता है वही नहीं, जो अनदिखा है उसको उघाड़ना है। जो दिखायी पड़ता है वह तो इतिहास पकड़ लेगा, जो नहीं दिखायी पड़ता उसे पुराण पकड़ता है। पश्चिम में पुराण जैसी कोई बात नहीं है, इसलिए पश्चिम का इतिहास दरिद्र है। पश्चिम के इतिहास में काव्य नहीं है। जब इतिहास में काव्य जुड़ जाता है तो पुराण पैदा होता है। पूरब ने इतिहास नहीं लिखा, पुराण लिखा, पश्चिम ने इतिहास लिखा।


एस धम्मो सनंतनो 

ओशो


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