Tuesday, March 8, 2016

आप पुनर्जन्‍म की बात करते है। मुझे तो इसका अनुभव नहीं है और जिसका मुझे अनुभव नहीं होता है, ऐसी किसी वस्‍तु में मैं विश्‍वास नहीं करना चाहता। मुझे क्‍या करना चाहिए?

पुनर्जन्‍म में विश्‍वास करने के लिए तुम्‍हें कौन कह रहा है? और तुम इसके बारे में कुछ करने के लिए चिंतित क्‍यों हो? लगता है तुम्‍हारे भीतर कहीं पडा हुआ विश्‍वास है। यदि तुम पुनर्जन्‍म में विश्‍वास नहीं करते हो तो वही पूर्ण विराम है। कुछ करने की चिंता क्‍यों करते हो? 


पुनर्जन्‍म में विश्‍वास मत करो, बस यह जन्‍म जीओं, और तुम्‍हें अनुभव होगा कि पुनर्जन्‍म कोई सिद्धांत नहीं; यह एक सच्‍चाई है। क्‍या तुम इस जन्‍म में विश्‍वास करते हो। या नहीं करते? पुनर्जन्‍म या तो अतीत में है अथवा भविष्‍य में, किंतु तुम यहां हो, जीवित, तुममें जीवन का स्‍पंदन हो रहा है।


मैं जानता हूं कि पूनर्जन्‍म सत्‍य है। किंतु मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम इसमें इसलिए विश्‍वास करो क्‍योंकि मैं ऐसा कह रहा हूं। किसी दूसरे के अनुभव पर कभी विश्‍वास न करो। यह एक बाधा है। मैं तुम से केवल यही कह सकता हूं कि बस, इसी जन्‍म को ही जीते रहो। उससे द्वार खुलेगा और तुम पीछे की और देखने में समर्थ हो सकोगे, तुम इसमें इसमे विश्‍वास करो या न करो। फिर ये तुम्‍हारे उपर निर्भर है। तब तुम इस पर विश्‍वास कर सकते हो। या नहीं कर सकते। इसे एक अनुभव बन जाने दो।

 
सभी धर्म विश्‍वास पद्धतियों पर ही आधारित होते है। में तुम्‍हें खोज करने की, संदेह करने की पूर्ण स्‍वतंत्रता देता हूं क्‍योंकि तुम्‍हारे अनुभव-अनुभव लेने का यही एकमात्र तरीका है। स्‍वयं अनुभव लो। विश्‍वास करने का कोई महत्‍व नहीं है।


तुम मुझे प्रेम करते हो। स्‍वाभाविक ही, यदि मैं कहता हूं कि पुनर्जन्‍म होता है। वह एक सत्‍य है। तुम्‍हारे प्रेम के कारण तुम मुझ पर विश्‍वास करोगे। तुम कैसे कल्‍पना कर सकते हो कि मैं तुमसे कुछ झूठ बोलूगा। तुम मुझ पर भरोसा करते हो….ओर इसी भरोसे का लाखों वर्षों से शोषण हो रहा है। प्रत्‍येक धर्म द्वारा इस प्रेम का शोषण हो रहा है। मैं किसी तरह से शोषण तो नहीं करने जा रहा हूं, जो कुछ भी मुझे ज्ञात है इसके बारे में मैं अपना ह्रदय तुम्‍हारे सामने खोल सकता हूं, किंतु याद रखो, विश्‍वास के जाल में न गिरना। प्रेम अच्‍छा है, भरोसा अच्‍छा है किंतु विश्‍वास जहर है।



मैं चाहता हूं कि तुम जानने वाले बनो। यदि तुम मुझे प्रेम करते हो और मुझ पर भरोसा करते हो, तब तो जांच-पड़ताल करते रहो, खोज-ढूंढ करते रहो। जब तक तुम्‍हें निष्‍कर्ष नहीं मिल जाता। कभी विश्‍वास न करना। मैं यह इतना निश्चय पूर्वक कह सकता हूं क्‍योंकि में जानता हूं कि यदि तुम जांच पड़ताल करोगे तो तुम्‍हें यह मिल जाएगा। यह वही है। मेरे एक भी शब्‍द पर विश्‍वास न किया जाए। किंतु अनुभव किया जाए। मैं तुम्‍हें इसका अनुभव लेने की विधि दे रहा हूं, अधिक ध्‍यानस्‍थ हो जाओ। पुनर्जन्म और परमात्‍मा, स्‍वर्ग-नरक से कोई अंतर नहीं पड़ता। जिससे अंतर पड़ता है, वह तुम्‍हारा सजग हो जाना है। ध्‍यान से तुम जाग्रत हो जाते हो। तुम्‍हें आंखे मिल जाती है। तब तो तुम जो कुछ भी देखते हो, तुम अस्‍वीकार नहीं कर सकते।



जहां तक मेरा संबंध है, पुनर्जन्‍म एक सत्‍य है। क्‍योंकि आस्‍तित्‍व में कुछ भी मरता नहीं। चिकित्‍सक भी कहेंगे कि कुछ भी मरता नहीं है। तुम हिरोशिमा और नागासाकी को नष्‍ट कर सकते हो। विज्ञान ने चिंपाजी राजनीतिज्ञों को इतनी शक्‍ति दे दी है किंतु तुम पानी की एक बूंद भी नष्‍ट नहीं कर सकते।


तुम नष्‍ट नहीं कर सकते हो। चिकित्‍सक लोग इस असंभावना के प्रति सावधान हो गये है। तुम जो कुछ भी करते हो। केवल रूप परिवर्तित हो जाता है। तुम ओस की एक बूंद मिटा नहीं सकते। और वहां हाइड्रोजन व आक्‍सीजन है; वे इसके घटक है। तुम हाइड्रोजन व आक्‍सीजन को नष्‍ट नी कर सकते हो। यदि तुम प्रयत्‍न भी करते हो, तो तुम अणुओं से परमाणु तक आ जाते हो। यदि तुम परमाणु को नष्‍ट करते हो, तो तुम इलेक्ट्रॉन के पास आ जाते हो। हम अभी तक तो नहीं जानते कि हम इलेक्ट्रॉन को भी नष्‍ट कर सकते है। या तो तुम इसे नष्‍ट कर सकते …यह वास्‍तविकता का चरम वस्‍तुपरक घटक है। या यदि तुम इसे नष्‍ट कर सकते हो, तब तो तुम्‍हें कुछ और मिल जायेगा। किंतु इस वस्‍तुपरक जगत में कुछ भी नष्‍ट नहीं हो सकता।



यही जीवन चेतना के, जीवन के जगत के बारे में सत्‍य है। वहां कोई मृत्‍यु नहीं है। मृत्‍यु तो एक आकार से दूसरे आकार में एक परिवर्तन मात्र है। और अंतत: आकार एक प्रकार की कारा है। जब तक तुम आकारहीन नहीं हो जाते, तब तक तुम दुःख, ईर्ष्‍या, क्रोध, धृणा, लोभ, भय से मुक्‍त नहीं हो सकते। क्‍योंकि ये तुम्‍हारे आकार से संबंधित है। जब तुम आकार हीन हो जाते हो तब हानि पहुंचाने के लिए तुम्‍हारे पास कुछ नहीं होता। और अब खोने के लिए कुछ भी नहीं है तुम्‍हारे पास। ऐसा कुछ भी नहीं होता जो तुम्‍हारे पास बढ़ सके। तुम चरम अनुभूति तक पहूंच जाते हो। वहां कुछ भी नहीं है, मात्र एक होना है।



अस्‍तित्‍व प्रत्‍येक स्‍तर पर जीवित होता है। कुछ भी मृत नहीं है। एक पत्‍थर भी…जिसे तुम पूर्ण रूप से मृत समझते हो। वह मृत नहीं है। तुम देख नहीं सकते, किंतु वे सब सजीव होते है। इलैक्ट्रा तुम्‍हारी तरह ही सजीव होते है। संपूर्ण अस्‍तित्‍व जीवन का ही पर्याय होता है। वस्‍तुएं एक आकार से दूसरे आकार में तब तक परिवर्तित होती रहती है जब तक वे पर्याप्‍त रूप से परिपक्‍व नहीं हो जाती। जिससे उन्‍हें पुन: स्‍कूल जाने की आवश्‍यकता नहीं होती। तब वे आकारहीन जीवन की और चलती है; तब वे स्‍वयं महासागर में एकाकार हो जाती है।


फ्रॉम पर्सनैलिटी टू इंडीवीजुअलटी


ओशो  

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