Sunday, March 13, 2016

सत्य

सत्य एक अनुभव है, वस्तु नहीं। इसलिए कोई दूसरा तो उसे दे नहीं सकता। वस्तुएं दी जा सकती हैं, अनुभव दिए नहीं जा सकते। वस्तुएं पात्रता की चिंता नहीं करतीं। कोहिनूर किसके पास है, कोहिनूर को इसकी जरा भी चिंता नहीं। एक भिखमंगे के पास हो तो ठीक; महारानी विक्टोरिया के पास हो तो ठीक। कोहिनूर व्यक्तियों की चिंता नहीं करता। कोहिनूर एक जड़ पदार्थ है।

सत्य कोई जड़ता नहीं है। सत्य तो तुम्हारी संवेदनशीलता पर निर्भर है। सत्य हर किसी के पास नहीं हो सकता। एक हाथ से दूसरे हाथ में लिए जाने का कोई उपाय नहीं है। सत्य तो वहीं होगा जहां सत्य को झेलने की पात्रता होगी। इसलिए वास्तविक खोजी अपने को तैयार करता है। वह इसकी चिंता नहीं करता कि सत्य कहां है। वह इसकी चिंता करता है क्या मैं योग्य हूं? वह इसकी बिलकुल चिंता नहीं करता कि कौन मुझे सत्य देगा। वह इसकी ही चिंता करता है कि सत्य मेरे द्वार आयेगा तो मेरा द्वार खुला होगा या नहीं। सत्य मेरे द्वार पर दस्तक देगा तो मेरे कान सुन सकेंगे या नहीं।


सत्य पर आक्रमण नहीं किया जा सकता। सत्य को तो केवल ग्रहण किया जा सकता है। सत्य के लिए तुम्हारा पुरुष जैसा होना जरूरी नहीं; स्त्री जैसा होना जरूरी है। सत्य तुम में प्रवेश करेगा, लेकिन तुममें गर्भ की योग्यता चाहिए।

 दीया तले अँधेरा 

ओशो

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