Sunday, March 6, 2016

आपने आप में शराब में कोई खराबी नहीं है, लेकिन .....

तुमने खयाल किया? शराबी मस्त मौला मालूम होता है। ऐसा लगता है जैसे आनंदित है। बस लगता है, भीतर सारे दुःख का अंबार है। ऊपर से शराब ने थोड़ीसी देर को मूर्छा दे दी है; सुबह होगी, मूर्छा टूट जाएगी। और अपने को और भी दुःख के गढ्ढे में गहरा पाएगा। और भी अंधकार की गर्तो में उतर जाएगा। क्योंकि चिंताएं जब वह शराब पी कर बेहोश पड़ा था तब उसके भीतर बढ़ रही थीं, बड़ी हो रही थीं, फैल रही थीं। जैसे कैंसर फैलता रहता है भीतर, तुम्हें पता न भी हो, वैसे ही चिंताएं फैलती रहती हैं भीतर।
 
और चिंताओं और कैंसर का बड़ा जोर भी है। चिंताएं शायद मानसिक कैंसर का नाम है और कैंसर शायद शारीरिक चिंता का नाम है। आज नहीं कल इसका उद्घाटन होने ही वाला है। क्योंकि जैसे जैसे चिंताएं बढ़ती हैं समाज में वैसे वैसे कैंसर बढ़ता है। कैंसर शारीरिक बीमारी कम मालूम होता है, मानसिक बीमारी ज्यादा मालूम होता है। शायद मन में ही उसका सूत्रपात है। अति चिंता, अति संताप, अति उद्विग्नता, अति तनाव, देह को भी ज़राजीर्ण कर जाता है; तोड़ जाता है। ऐसा तोड़ जाता है कि अभी तक उसका कोई इलाज नहीं, उपाय नहीं, औषधि नहीं।
 
लेकिन तुम रात जब सोए हो तब भी कैंसर बढ़ रहा है, फैल रहा है। ऐसे ही चिंता फैल रही है। तुम शराब पी कर पड़े हो, ऊपर से देखने में चाहे तुम मस्त भी मालूम पड़ो, मगर मस्ती झूठी है, सुबह होते होते उतर जाएगी।

 
शराब पी कर आदमी पीछे गिरने की कोशिश कर रहा है, समय को झुठलाने की कोशिश कर रहा है। यह कोशिश सफल नहीं हो सकती। मैं शराब का विरोधी नहीं हूं, मैं इस कोशिश का विरोधी हूं। यह कोशिश सफल नहीं हो सकती, यह तुम समय गंवा रहे हो। शराब में क्या रखा है? अंगूर की बेटी है। शराब में ऐसा कुछ बहुत बुरा नहीं है, शराब में ऐसा कुछ पाप नहीं है। और कभी कभार घूंट भर पी ली चार मित्रों के बीच तो कुछ नरक नहीं चले जाओगे। जब स्वमूत्र पीने वाले नरक नहीं जा रहे, तो ज़रा अंगूर का रस पी लिया, इसमें कहीं नरक चले जाओगे?


लेकिन शराब के पीछे जो आकांक्षा है, मैं उसका जरूर विरोध करता हूं। वह आकांक्षा गलत है। वह पूरी नहीं हो सकती।


इसी तरह और भी उपाय आदमी खोजता है। धन की दौड़ में, पद की दौड़ में अपने को भुलाने की कोशिश करता है। याद न रहे अपनी, ऐसा अपने को उलझा लेना चाहता है। राजनीति के दांव पेंचों में पड़ जाता है। ऐसे चक्करों में पड़ जाता है कि अपनी याद न आए। यह भी शराब है। और यह ज्यादा खतरनाक शराब है। क्योंकि शराब तो सुबह उतर जाएगी, मगर यह जिंदगीभर चढ़ी रह सकती है।


राम दुवारे जो मरे 


ओशो 

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