Monday, April 4, 2016

शिष्य की आत्मा में जो पवित्र अंकुर लगते हैं....

अस्तित्व का नियम है, जो भी चलता है, वह पाता है। जो भी बोता है, वह काटता है। लेकिन थोड़े धैर्य की जरूरत है, क्योंकि समय लगेगा। कोई भी बीज छलांग लगाकर वृक्ष नहीं हो सकता।


“शिष्य की आत्मा में जो पवित्र अंकुर लगते हैं, और अनदेखे बढ़ते हैं उनकी डालियां प्रत्येक परीक्षा से गुजर कर बड़ी होती हैं। और सरकंडे की तरह वे झुक जाती हैं, लेकिन कभी टूटती नहीं हैं और न वे कभी नष्ट हो सकती हैं। और जब समय आता है, तब उनमें फूल भी आ खिलते हैं।’


कई बार पता ही नहीं चलता बीज का। बीज का पता भी कैसे चलेगा? आज आप ध्यान कर रहे हैं। हो सकता है आज आपको पता भी न चले कि क्या हो रहा है भीतर? शायद कोई खयाल भी न आए कि कोई बीज आपकी अंतरात्मा में प्रविष्ट हो गया। वर्ष, दो वर्ष बाद समय पाकर, अनुभव की धूप पाकर, अवसर की वर्षा पाकर, बीज अंकुरित होने लगेगा। तब भी अंकुर आपको दिखाई न पड़ेगा। अंकुर अदृश्य है, जब तक कि शाखाएं न आ जाएं और जब तक कि पत्ते आपके चारों तरफ छायाएं न फैलाने लगें। आपको शायद तब तक ठीक-ठीक पता न चलेगा, जब तक दूसरों को पता न चलने लगे। जब दूसरे आपकी सुगंध को अनुभव करने लगें और कहने लगें कि कहां से पाई यह सुगंध, क्या हुआ? जब दूसरे थके-मांदे धूप से आएं और आपके पास आकर शीतल हो जाएं, और कहें कि कैसी शीतलता है तुम्हारी! किस वट-वृक्ष की? तुम्हारे नीचे विश्राम करने का मन होता है–कि जब दूसरों के दुखत्ताप तुम्हारे पास आकर अचानक तिरोहित हो जाएं, और तुम्हारी मौजूदगी औषधि बन जाए और जब दूसरे तुमसे कहने लगें कि क्या हुआ है? शायद तब तुम्हें पता चले।


बहुत धीरे-धीरे बढ़ते हैं अंकुर। और हर संघर्ष–जो इन अंकुरों को ऐसा लगता है कि कहीं तोड़ न डाले। हर हवा का झोंका, जिसमें लगता है कि कहीं यह वृक्ष उखड़ न जाए। वह झोंका भी वृक्ष से संघर्ष करके मजबूत कर जाता है। अगर कोई हवा का झोंका वृक्ष को न टकराए, तो वृक्ष कभी भी टूट सकता है। हर झोंका चुनौती देता है वृक्ष को। और वृक्ष चुनौती को झेल लेता है, झोंका निकल जाता है, वृक्ष फिर खड़ा हो जाता है। लोचपूर्ण रहना सरकंडे की तरह।


लाओत्से ने कहा है: अकड़े हुए वृक्ष मत बन जाना, नहीं तो उखाड़ दिए जाओगे।


अकड़ना मत। अपनी इस भीतर की यात्रा में अकड़कर मत जाना, नहीं तो कोई भी तूफान तुम्हें उखाड़कर रख देगा। विनम्र रहना। और जब तूफान आए, तो ऐसे झुक जाना, जैसे घास झुक जाती है। और तूफान तुम्हारा कुछ बिगाड़ न पाएगा, तुम्हें ताजा कर जाएगा, तुम्हें नया प्राण दे जाएगा, तुम्हारी धूल झाड़ जाएगा, तुम्हें सबल कर जाएगा। और जब तूफान चला जाएगा, तब तुम फिर खड़े हो जाओगे आकाश में–और भी स्वस्थ, और भी ताजे, और भी नाचते हुए, और भी मदमस्त। अस्तित्व से मदमस्त होना घास की तरह।

समाधि  के  सप्तद्वार 

ओशो

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