Thursday, April 14, 2016

छोटे बच्चे की भांति हो जाओ

सभी धर्म कहते हैं कि परमात्मा परमपिता है। वास्तव में जोर इस बात पर होना चाहिए कि मनुष्य एक बच्चे की भांति है। जब हम परमात्मा को परमपिता कहते हैं तो उसका असली अर्थ यही है। लेकिन हम लोग यह भूल गए है परमात्मा परमपिता है, लेकिन हम लोग उसके बच्चे नहीं हैं। इसे भूल जाओ कि वह तुम्हारा पिता है अथवा नहीं, तुम बस एक छोटे बच्चे की भांति हो जाओ सहज, स्वाभाविक सच्चे और प्रामाणिक। मुझसे या किसी दूसरे से भी यह पूछो ही मत कि प्रार्थना कैसे की जाये? क्षण को ही यह तय करने दो, यह क्षण ही निर्णायक होगा और उस क्षण का सत्य ही तुम्हारी प्रार्थना होनी चाहिए।

यही मेरा उत्तर है उस क्षण का सत्य, वह चाहे जो भी हो, जैसा भी हो, बिना शर्त तुम्हारी प्रार्थना बन जाना चाहिए। और एक बार उस क्षण का सत्य तुम्हारी सम्पत्ति बन जाता है, तुम विकसित होना शुरू हो जाओगे और तुम तभी प्रार्थना के अतुलित सौंदर्य को जानोगे। तुम पथ में प्रविष्ट हो चुके हो। लेकिन यदि तुम केवल एक ही प्रार्थना एक ही विधि से दोहराते चले जाओगे तब तुम चूक जाओगे। तुम पथ में कभी प्रविष्ट ही न हो सकोगे, और तुम केवल उससे बाहर ही बने रहोगे।

आनंद योग 

ओशो 
 

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