Friday, June 24, 2016

नमन

नमन का अर्थ इतना ही नहीं होती कि किसी के चरणों में सिर झुका देना। नमन का अर्थ होता है: किसी के चरणों में अपने को चढ़ा देना। यह सिर झुकाने की बात नहीं है; यह अहंकार विसर्जित कर देने की बात है।

नमो नमो सब संत! और जिस दिन समझ में आ जाती है बात उस दिन बड़ी हैरानी होती है कि सभी संत यही कहते थे। कितने भेद भाव माने थे, कितना विवाद थे, कितने वितंडा, कितने शास्त्रार्थ! पंडित जूझ रहे हैं, मल्लयुद्ध में लगे हुए हैं। हिंदू मुसलमान से बूझ रहा है, मुसलमान ईसाई से बूझ रहा है, ईसाई जैन से बूझ रहा है, जैन बौद्ध से जूझ रहा है; सब गुत्थरम गुत्था एक दूसरे से जूझ रहे हैं बिना इस सीधीसी बात को जाने कि जो महावीर ने कहा है उसमें और जो मुहम्मद ने कहा है उसमें, रत्ती भर भेद नहीं है। भेद हो नहीं सकता। सत्य एक है। उस सत्य को जान लेने वाले को ही हम संत कहते हैं। जो उस सत्य से एक हो गया, उसी को संत कहते हैं।


तो जिस दिन तुम्हें समझ में आ जाएगी बात तो तुम बाहर के गुरु में भगवान को देख सकोगे, भीतर के भगवान में गुरु को देख सकोगे और सारे संतों में, बेशर्त! फिर यह भेद न करोगे कौन अपना कौन पराया। सारे संतों में भी उसी एक अनुगूंज को सुन सकोगे।

कितनी ही हों वीणाएं, संगीत एक है। और कितने ही हों दीप, प्रकाश एक है। और कितने ही हों फूल, सौंदर्य एक है। गुलाब में भी वही और जूही में भी वही, चंपा में भी वही और चमेली में भी वही। सौंदर्य एक है, अभिव्यक्तियां भिन्न हैं।


निश्चित ही कुरान की आयतें अपना ही ढंग रखती हैं, अपनी शैली है उनकी, अपना सौंदर्य है उनका। समझो कि जूही के फूल और उपनिषद के वचन, उनका सौंदर्य अपना है, अनूठा है। समझो कि कि चंपा के फूल। और बाइबिल के उद्धाहरण, समझो कि गुलाब के फूल। पर सब फूल हैं और सबमें जो फूला है वह एक है। वही सौंदर्य कहीं सफेद है और कहीं लाल है और कही सोना हो गया है।


नमो नमो हरि गुरु नमो, नमो सब संत।
जन दरिया बंदन करै, नमो नमो भगवंत।।

अमी झरत बिसगत कंवल

ओशो 

No comments:

Post a Comment