Friday, June 3, 2016

भविष्य है ही नहीं, है तो वर्तमान

मुल्ला नसरुद्दीन एक बार अपने एक पुराने मित्र सरदार विचित्तर सिंह को दावत पर बुलाया। खाना पीना हो रहा था कि एकाएक चावल का एक दाना नसरुद्दीन की मूंछों में फंस गया। नसरुद्दीन के नौकर बल्लेखां को यह दिखाई दे गया, लेकिन मालिक को सीधे सीधे कहना कि आपकी मूंछ में चावल फंसा है, ठीक नहीं था। सो उसने दूर से ही नसरुद्दीन से कहा, हुजूर, शाख पर बुलबुल! सुनते ही नसरुद्दीन ने अपनी अंगुली के एक झटके से मूंछ का दाना नीचे गिरा दिया।

सरदार विचित्तर सिंह तो पूरी घटना बड़ी हैरानी से देखते रहे और उस नौकर की अक्ल पर कुर्बान हो उठे। खाना इत्यादि पूरा होने के बाद मुल्ला ने पूछा, सरदार जी, पान खाएंगे?

सरदार विचित्तर सिंह बोले, नहीं नहीं, छोड़िए! अब काफी देर हो गई, मुझे अब जाना होगा।

मुल्ला ने कहा, कोई देर नहीं होगी। देखिए! यह बल्लेखां ने जूते पहन लिए, अब वह दरवाजे से बाहर हो गया, अब वह सड़क पार कर रहा है। अब वह दुकान से पान बंधवा रहा है। उसने फिर लौट कर सड़क पार कर ली, अब वह घर के भीतर आ गया है और उसने जूते उतार लिए हैं और ये रहे पान!

इसके साथ ही बल्लेखां पान लेकर कमरे में हाजिर हो गया। सरदार विचित्तर सिंह को तो अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। ऐसा होशियार नौकर उन्होंने जिंदगी में नहीं देखा था। सरदारजी ने तय कर लिया कि वे मुल्ला को दिखा कर रहेंगे कि उनका नौकर पिचत्तर सिंह भी कोई कम नहीं है। सरदारजी ने विदा लेते लेते मुल्ला से आग्रह किया कि वे अगले सप्ताह दावत पर उसके घर आएं। मुल्ला ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया।

मुल्ला जिस दिन आने वाला था, उस दिन सुबह से सरदारजी ने अपने नौकर को ठीक वही का वही करने की पूरी सूचना दे दी जो बल्लेखां ने किया था किस तरह सरदारजी चावल का दाना मुल्ला की नजर बचा कर मूंछों में फंसा लेंगे। किस तरह तू कहेगा, हुजूर, शाख पर बुलबुल। और वे किस अंदाज से मूंछ से उस दाने को एक झटके से नीचे गिराएंगे, इत्यादि—इत्यादि…।

शाम को मुल्ला आया। खाना शुरू हुआ। सरदारजी ने चालाकी से चावल का एक दाना अपनी मूंछ में फंसा लिया और पिचत्तर सिंह के कहने का इंतजार करने लगे। लेकिन वह तो बेचारा सब कुछ भूल ही गया। सरदारजी ने आंखों से उसे इशारा किया तो नौकर को एकदम याद आया कि उसे कुछ कहना है, परंतु “शाख पर बुलबुल’ वाक्य उसे याद नहीं आ रहा था। घबड़ाहट में उसने कहा, हुजूर, तुहाड़ी मूंछों पर वह सुबह वाली गल्ल।
सरदारजी बड़े शघमदा हुए, साथ ही नाराज भी बहुत हुए, लेकिन मुल्ला के सामने कुछ बोले नहीं। खाना पूरा होने पर उन्होंने मुल्ला से पान के लिए पूछा। मुल्ला ने कहा, देर बहुत हो चुकी है और घर में गुलजान ने कहा था कि जल्दी लौट आना, तो अब जल्दी से लौट जाना चाहता हूं।

इस पर सरदारजी बोले, कोई देर नहीं लगेगी। वह देखिए पिचत्तर सिंह ने जूते पहन लिए और वह दरवाजे के बाहर हो गया। अब वह पान वाले से पान बंधवा रहा है। और अब वह घर की ओर लौट रहा है, अब वह दरवाजा खोल कर अंदर आ रहा है और उसने जूते उतार लिए हैं और ये रहे पान!

लेकिन पिचत्तर सिंह कमरे में आया ही नहीं। सरदारजी ने झेंप कर चिल्लाते हुए कहा, ओ पिचत्तर सिंह, पान कहां हैं?

पिचत्तर सिंह बोला, हुजूर, जूतियां ढूंढ रहा हूं।

तुम किन ज्योतिषियों के पास जा रहे हो, जरा उनकी शक्ल तो देखो! जरा गौर से उनकी हालत तो देखो! जिनको भविष्य का ज्ञान हो, उनकी यह हालत होगी? काश, तुम उनकी आंखों में झांक कर देखो तो तुम पाओगे कि बेचारे गरीब हैं, दरिद्र हैं, दीन हैं, दुखी हैं। कोई और उपाय न खोज कर दो रोटी कमाने के लिए यह व्यवस्था कर ली है। लेकिन इस दुनिया में मूढ़ इतने हैं, एक ढूंढ़ो हजार मिलते हैं। इसलिए मूढ़ों से सारा धंधा चलता जाता है।

सत्यानंद! ऐसी मूढ़ताओं में न पड़ो। भविष्य है ही नहीं, है तो वर्तमान। वर्तमान से इंच भर न हटो, इसमें पूरी डुबकी मारो और तुम सब पा लोगे जो पाने योग्य है। मोक्ष तुम्हारा है। आनंद तुम्हारा है। समाधि तुम्हारी है। परमात्मा तुम्हारा है।

काहे होत अधीर 

ओशो 


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