Thursday, July 7, 2016

जीवन के मंदिर में शिखर

मंदिर बनाते हो, स्वर्ण के शिखर चढ़ाते हो मगर नींव में तो अनगढ़ पत्थर ही भरने पड़ते हैं, नींव में तो सोना नहीं भरना पड़ता। जरूर जीवन के मंदिर में शिखर तो अध्यात्म का होना चाहिए लेकिन बुनियाद तो भौतिकता की होनी चाहिए। 

 मेरे हिसाब में भौतिकवादी और अध्यात्मवादी में शत्रुता नहीं होनी चाहिए, मित्रता होनी चाहिए। हां, भौतिकवाद पर ही रुक मत जाना। अन्यथा ऐसा हुआ कि नींव तो भर लोग और मंदिर कभी बनाया नहीं। भौतिकवाद नहीं। भौतिकवादी पर रुक मत जाना। भौतिकवाद की बुनियाद बना लो फिर उस पर अध्यात्म का मंदिर खड़ा करो। 

भौतिकवाद तो ऐसे है जैसे वीणा बनी है लकड़ी की, तारों से और अध्यात्मवाद ऐसे हैं जैसे वीणा पर उठाया गया संगीत। वीणा और संगीत में विरोध तो नहीं है। वीणा भौतिक है, संगीत अभौतिक है। वीणा को पकड़ सकते हो, छू सकते हो, संगीत को न पकड़ सकते न छू सकते हो, उस पर मुट्ठी नहीं बांध सकते। अध्यात्म जीवन की बुनियाद बनाना चाहा, बिना वीणा से संगीत को लाना चाहा। हम चूकते चले गए।


अमी झरत बिसगत कँवल 

ओशो 

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