Monday, April 24, 2017

भगवान महावीर और महात्मा गांधी की अहिंसा में फर्क क्या है?





यही, जो मैं समझा रहा था। गांधी की अहिंसा नैतिक है। और नैतिक भी कभी-कभी; अधिक तो राजनैतिक है। नैतिक भी बहुत ऊंचाइयों पर; अन्यथा तो राजनैतिक है।

महावीर की अहिंसा धार्मिक है। महावीर के भीतर कुछ घटा है। उससे उनके आचरण में अहिंसा है। गांधी आचरण में कुछ घटा रहे हैं, इस आशा में ताकि भीतर कुछ घट जाए।

गांधी वैसे ईमानदार आदमी थे। और जो भी कर रहे थे वह भला गलत हो, लेकिन उन्होंने किया बड़ी निष्ठा से। उनकी निष्ठा में कोई संदेह नहीं है।

ऐसे ही जैसे कोई आदमी निष्ठापूर्वक रेत में से तेल निकालने की कोशिश कर रहा हो। उसकी निष्ठा में मैं शक नहीं करता। वह बड़े भाव से कर रहा है। बड़ा आयोजन किया है। जीवन लगा दिया है। लेकिन फिर भी मैं क्या कर सकता हूं! मैं यही कहूंगा कि रेत से तेल नहीं निकलता। तुम्हारी निष्ठा ठीक है, लेकिन निष्ठा क्या करेगी? यह तेल निकलेगा नहीं।

नैतिक, निष्ठावान, ईमानदार आदमी हैं। लुई फिशर ने गांधी के संबंध में एक लेख लिखा। और उसमें लिखा कि गांधी एक धार्मिक पुरुष हैं, जिन्होंने पूरे जीवन राजनैतिक होने की चेष्टा की है। गांधी ने तत्क्षण जवाब दिया कि यह बात उलटी है। मैं एक राजनैतिक व्यक्ति हूं, जिसने जीवन भर धार्मिक होने की चेष्टा की है।

उनकी ईमानदारी सौ टका है। इसमें कोई शक-शुबहा नहीं है कि वे कभी भी अपने संबंध में झूठ नहीं बोले हैं। लेकिन इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। वे राजनैतिक व्यक्ति हैं और उन्होंने जीवन भर धार्मिक होने की चेष्टा की है। इसमें मैं इतना और जोड़ देना चाहता हूं कि वह चेष्टा असफल हुई है। वे धार्मिक हो नहीं पाए। वे राजनीतिज्ञ ही विदा हो गए हैं।

फर्क नाजुक है। तो कई बार तो ऐसा लगता है, महावीर की अहिंसा तुम्हें दिखाई ही न पड़ेगी, गांधी की दिखाई पड़ेगी। क्योंकि गांधी की अहिंसा का बड़ा विस्तार है: आंदोलन हैं, क्रांति है, सारे विश्व पर इतिहास पर छाप है। महावीर की कौन सी छाप है? होगा, कोई चींटी न मरी होगी, वे सम्हल कर चले होंगे। चींटी कोई इतिहास लिखती है! कि उन्होंने पानी छान कर पीया होगा, कुछ कीटाणु न मरे होंगे। उन कीटाणुओं ने कोई शोरगुल मचाया? महावीर ने उस्तरे से अपने बाल न बनाए, क्योंकि कहीं कोई जूं पड़ गया हो और उस्तरे में दब कर मर जाए। उन्होंने बाल उखाड़े। वे केश-लुंच करते थे। साल भर में बाल उखाड़ डालते थे। लेकिन क्या अगर कोई जूं बच गया होगा बालों में इस भांति, वह कोई आत्मकथा लिखेगा कि इस महावीर ने हम पर बड़ी अहिंसा की?

महावीर की अहिंसा का कोई इतिहास थोड़े ही है! भीतर की घटना है। जिनके भीतर घटेगी वे ही पहचान सकते हैं। गांधी की अहिंसा तो हजारों साल तक याद रहेगी। उसके प्रमाण हैं। महावीर की अहिंसा का क्या प्रमाण है? इतना ही हम कह सकते हैं कि उन्होंने हिंसा नहीं की। अहिंसा की, ऐसा हम क्या कह सकते हैं?

इसको थोड़ा समझ लें। महावीर के जीवन को अगर हम गौर से देखें तो इतना ही कह सकते हैं कि उन्होंने हिंसा नहीं की। गांधी ने अहिंसा की। गांधी के कृत्य में अहिंसा है। महावीर के होने में अहिंसा है। और होना भीतर है, कृत्य बाहर है।

इसलिए गांधी की अहिंसा बहुत दफे डगमगा जाती है। क्योंकि वह नीति है, या राजनीति है। जीवन भर...जब जर्मनी ने फ्रांस और इंग्लैंड पर हमला किया दूसरे महायुद्ध में, तो गांधी ने पत्र लिखे इंग्लैंड और फ्रांस के नेताओं के नाम कि तुम समर्पण कर दो, हथियार डाल दो। लड़ो मत। देखें, कैसे तुम जीते जाओगे! हिटलर को निमंत्रण कर दो। उससे कहो, आ जाओ। वह रहना चाहे तो रहे तुम्हारी बस्तियों में। गांव खाली कर दो, मकान दे दो। 

अहिंसक आदमी की सलाह! इंग्लैंड के नेता सिर्फ हंसे। क्योंकि इस बकवास में कौन भरोसा करे! और उन्होंने ठीक ही किया कि वे हंसे। क्योंकि जब भारत और पाकिस्तान का झगड़ा शुरू हुआ और कश्मीर में उपद्रव हुआ, तो गांधी ने सेनाओं को आशीर्वाद दिया कि जाओ। तब वे भूल गए कि उन्होंने इंग्लैंड को क्या सलाह दी थी हिटलर के समय। तब वे राजी आशीर्वाद देने को सेनाओं को। आकाश में उड़ते भारतीय वायुसेना के विमानों को देख कर वे प्रसन्न हुए। वे बमों से भरे हुए जा रहे हैं। किसी ने पूछा कि क्या आपका आशीर्वाद है इन विमानों के लिए? उन्होंने कहा, पूरा आशीर्वाद है। अगर पाकिस्तान सीधे-सीधे नहीं मानता तो युद्ध के सिवाय और कोई उपाय नहीं है। हिटलर हमला करे इंग्लैंड पर तो हथियार छोड़ दो। पाकिस्तान हमला करे कश्मीर पर तो हथियारों को आशीर्वाद दो! राजनीति है। यह कोई महावीर की अहिंसा नहीं है। यह कुशल राजनीतिज्ञ की बात है। जब जैसी जरूरत पड़े तब वह अपनी नीति बदल लेगा। जब जैसी जरूरत हो, जिस चीज से लाभ हो। 

सबै सयाने एक मत 

ओशो 

इस बात से लाभ था भारत को। क्योंकि अंग्रेजों से भगतसिंह की तरह लड़ना तो पागलपन था। भगतसिंह होंगे बड़े शहीद, लेकिन दिमाग खराब। क्योंकि उस तरह कहीं कुछ हो सकता था! हल कुछ भी न था। ऐसे कोई बंदूक चला देने से और बम फेंक देने से धारासभा में कुछ मुल्क आजाद नहीं हो सकता था। आदमी हिम्मतवर थे। अपने को मिटाने को तैयार थे, बस! इससे कोई आजादी नहीं आ सकती थी। गांधी कुशल राजनीतिज्ञ थे। भगतसिंह नासमझ छोकरा; गांधी कुशल बुद्धिमान राजनीतिज्ञ। भगतसिंह ने अपने को मिटा लिया, गांधी ने पूरे मुल्क को बचाया। मगर उसमें कुशलता है राजनीति की। सारा खेल राजनीति का है।


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