Sunday, April 9, 2017

मैं शास्त्रों में सदा से भरोसा करता आया हूं और अब आप हैं कि शास्त्रों से मुक्त होने को कह रहे हैं। मैं बड़ी उलझन में हूं। रास्ता सुझाएं।

मैंने सुना, एक पंडित जी के पास तोता था, वह राम-राम, राम-राम जपता था। बड़ा धार्मिक तोता था! तोते अकसर धार्मिक होते हैं और धार्मिक लोग अकसर तोते होते हैं! वह तोता सदा राम-नाम की चदरिया ओढ़े रहता था! और बैठा रहता, और माला लटकी रहती उसके बगल में और राम-राम, राम-राम, उसकी बड़ी ख्याति थी। पंडित जी के पास एक महिला आती थी। पंडितजिओं के पास महिलाओं के अतिरिक्त कोई और आता भी नहीं। एक बुढ़िया, अब जिसको कहीं और जाने की कोई जगह नहीं। पंडित जी के तोते को देखकर वह बुढ़िया भी एक तोता खरीद लायी। मगर तोता बड़ा नालायक था। वह गालियां बके। वह किसी अफीमची के पास रहा था। सत्संग का असर वह शुद्ध गालियां दे। बुढ़िया उसको बहुत राम-राम करवाए, लेकिन वह कहे : ऐसी की तैसी राम-राम की! बुढ़िया ने कहा : हद हो गई! यह तोता किस तरह का तोता है! पंडित जी से कहा कि मेरा तोता बिल्कुल . . . हालत खराब है।

पंडित जी ने कहा : तू ऐसा कर, तेरे तोते को यहां ले आ। एक दस-पंद्रह दिन मेरे तोते का सत्संग कर ले, सब ठीक हो जाएगा। यह तोता बड़ा ज्ञानी है। यह तो पिछले जन्मों का भक्त समझो। यह पहुंची हुई आत्मा है।

वह तोता बैठा था, अपना ओढ़े, राम-राम, राम-राम जप रहा था। उसके चेहरे पर बड़ा भक्ति-भाव दिखाई पड़ता था। बुढ़िया ले आयी अपने तोते को। दोनों को एक ही पिंजड़े में बंद कर दिया। पांच-सात दिन के बाद पंडित जी एकदम भागे हुए आए। बुढ़िया से कहा : ले जा अपना तोता! मेरे तोते ने राम-राम कहना बंद कर दिया, चदरिया फेंक दी! और मैंने उससे आज सुबह कहा कि कह भाई, राम-राम नहीं कहता?उसने कहा ऐसी की तैसी राम-राम की! तो मैंने उससे पूछाः इतने दिनों तक राम-राम क्यों जपता था? उसने कहा : जिस वजह से जपता था वह बात पूरी हो गयी। एक प्रेयसी की तलाश थी, यह आ गई। इसी के लिए तो राम-राम जप रहा था।

तुम तोतों की तरह शास्त्रों को पढ़ते रहो, इससे कुछ होगा नहीं। आंख उठा-उठाकर देखते रहोगे, दुकान पर ग्राहक आया कि नहीं? कौन गुजर रहा है रास्ते से! घर में क्या हो रहा है? पत्नी किससे बात कर रही है? यह सब चलता रहेगा और गीता पढ़ रहे हैं! कुत्ता आएगा, उसको भगा दोगे, गीता पढ़ रहे हैं! कंठस्थ हो गई है। अकसर ऐसा हो जाता है कि पन्ना कोई और है और पढ़ कोई और पन्ना रहे हैं, मगर कंठस्थ है। उलटी रख दो किताब सीधी रख दो किताब, कोई फर्क नहीं पड़ता, वह अपना पढ़े जा रहे हैं!

जो शास्त्रों में लिखा है वह शास्त्रों से नहीं जाना जा सकता। जो शास्त्रों में लिखा है उसे अगर जानना है तो समाधि में उतरना पड़ेगा। उसी की चेष्टा कर रहा हूं।

तुमसे कहता हूं : शास्त्र छोड़ो, समाधि में उतरो। मेरी बात तुम्हें विरोधाभासी लगती है। मैं कहता हूं : शास्त्र छोड़ो, समाधि में उतरो, क्योंकि समाधि में उतरोगे तो सारे शास्त्र तुम्हें उपलब्ध हो जाएंगे।

ज्योत से ज्योत जले 

ओशो 

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