Sunday, July 2, 2017

शाश्वत सूत्र



मैंने सुना है, एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन भागा हुआ पुलिस स्टेशन पहुंचा। और उसने कहा कि अब देर मत करो, जल्दी चलो मेरे साथ। मेरी पत्नी बस, मरने के करीब है। स्टेशन आफिसर भी उठकर खड़ा हो गया। उसने कहा, हुआ क्या है? उसने कहा कि हम समुद्र के तट पर थे। ज्वार भर रहा है, भरती हो रही है, तूफान तेज है। और मेरी पत्नी रेत में फंस गई है, बचाओ! जरा देर हुई कि मुश्किल हो जायेगा। ऑफिसर ने पूछा कि कितनी दूर तक रेत में चली गई है? कितनी उलझ गई है रेत में? मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, पंजे तक। वह आदमी खड़ा था, वह बैठ गया। उसने कहा, मुझे पहले ही शक था। अगर पंजे तक उलझी है, तो अपने आप निकल आयेगी। इतने परेशान होने की जरूरत नहीं है, और न किसी को ले जाने की जरूरत है। नसरुद्दीन ने कहा, नहीं निकलेगी; देर मत करो, मैं कहता हूं। क्योंकि वह शीर्षासन कर रही है।

अब अगर शीर्षासन करते वक्त पंजे तक उलझ गये, तो फैसला है।

धार्मिक और तथाकथित धार्मिक में यही फर्क है। तथाकथित धार्मिक संसारी से उलटा है, वह शीर्षासन कर रहा है। तुम अगर पंजे तक उलझे हो, वह भी पंजे तक उलझा है। लेकिन ध्यान रखना, तुम शायद बच भी जाओ; उसका बचना मुश्किल है, वह शीर्षासन कर रहा है।

असली धार्मिक कौन है? असली धार्मिक वह है जिसने द्वंद्व छोड़ा। जो न तो मन के पक्ष में है, न मन के विपरीत है। जो न तो मन को भरने में लगा है, न मन को तोड़ने में। जो न तो मन की अपवित्र आकांक्षाओं को पूरा करने में उत्सुक है, और न मन की पवित्र आकांक्षाओं को पूरा करने में उत्सुक है; जो न तो धन के पीछे दौड़ रहा है और न परमात्मा के पीछे। जो दौड़ ही नहीं रहा है। क्योंकि सब दौड़ मन की है।

और मन इतना कुशल है, इतना चालाक है, और उसका गणित इतना जटिल है, कि तुम एक तरफ से हटे नहीं कि वह तत्क्षण तुम्हें दूसरा जाल बता देता है। तुम दौड़ते थे, पागल थे धन के पीछे; जब तुम ऊबने लगते हो, तब तुमसे वह कहता है कि धन से मिलेगा नहीं, त्याग से मिलता है। इसके पहले कि तुम उसके पंजे के बाहर हो जाओ, वह विपरीत पंजा आगे बढ़ा देता है। और तुम्हें भी ठीक लगता है; क्योंकि तुम तर्क से ही जीये हो कि जब इस दिशा में नहीं पाया तो शायद विपरीत दिशा में मिलेगा, तो इसको भी खोज करके देख लें।

लेकिन त्याग, भोग का ही शीर्षासन करता हुआ रूप है। भोगी तो उलझे ही हैं, त्यागी और बुरी तरह उलझे हैं। वही संसार की रेत! लेकिन वे शीर्षासन करते हुए खड़े हैं। इधर तुम स्त्रियों के पीछे भागते थे, पुरुषों के पीछे भागते थे, इसके पहले कि तुम ऊबो, मन तुम्हें नया रस दे देगा। वह कहेगा, रस तो ब्रह्मचर्य में है। आनंद तो ब्रह्मचारी पाता है, व्यभिचारी को कभी आनंद मिला है?
फिर एक नया जाल शुरू हो रहा है। मन तुम्हें छूटने न देगा, विपरीत में रस को जगा देता है; यह उसकी तरकीब है। और जब तक तुम विपरीत में भटकोगे, तब तक तुम पहले अनुभव को पुनः भूल जाओगे। क्योंकि तुम्हारी स्मृति न के बराबर है। तुम्हें स्मरण की तो क्षमता ही नहीं है, वही अगर होती, तो तुम कभी के जाग गये होते।

तुमसे अगर कहा जाये कि तुम घड़ी भर भी होश रखो, तो नहीं रख पाते। घड़ी भर भी तुमसे कहा जाये, स्मरण-पूर्वक खड़े रहो, तुम नहीं खड़े रह पाते हो; हजार बातें तुम्हें आकर्षित कर लेती हैं। तुम छोटे बच्चों की तरह हो जो हर तितली के पीछे दौड़ जाता है, हर कंकड़-पत्थर को बीनने लगता है। हर आवाज उसे उत्सुक कर लेती है। जो सब दिशाओं में बहता रहता है। इसके पहले कि तुम ऊबो, मन तुम्हें नये जाल देगा; सावधानी रखना।

और सावधानी एक ही रखनी है। और वह यह सूत्र मैं कह देता हूं। यह सूत्र शाश्वत है; यह समस्त धर्म का सार है। सूत्र है: कि अगर तुमने भोग से न पाया हो, तो तुम उसके विपरीत से कभी न पा सकोगे। अगर तुमने कामवासना से न पाया हो, तो तुम ब्रह्मचर्य से कभी न पा सकोगे। अगर तुमने धन में न पाया हो, तो तुम निर्धनता से कभी न पा सकोगे। अगर तुमने दौड़-दौड़ कर संसार में नहीं पाया, तो तुम दौड़-दौड़ कर परमात्मा में भी न पा सकोगे।

दिया तले अँधेरा 

ओशो

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