Saturday, October 14, 2017

"वु वेई''



"वु वेई' का अर्थ होता है, बिना किए करना। यह जगत का सबसे रहस्यपूर्ण सूत्र है। ज्ञानी कुछ करता नहीं, होता है। ज्ञानी बिना किए करता है। और लाओत्से कहता है कि जो कर करके नहीं किया जा सकता, यह बिना किए हो जाता है। भूलकर भी, किसी के ऊपर शुभ लादने की कोशिश मत करना, अन्यथा तुम्हीं जिम्मेदार होओगे उसको अशुभ की तरफ ले जाने के। 

ऐसा रोज होता है। अच्छे घरों में बुरे बच्चे पैदा होते हैं। साधु बाप बेटे को असाधु बना देता है। चेष्टा करता है साधु बनाने की। उसी चेष्टा में बेटा असाधु हो जाता है। और बाप सोचता है, कि शायद मेरी चेष्टा पूरी नहीं थी। शायद मुझे जितनी चेष्टा करनी थी उतनी नहीं कर पाया इसीलिए यह बेटा बिगड़ गया। बात बिलकुल उलटी है। तुम बिलकुल चेष्टा न करते तो तुम्हारी कृपा होती। तुमने चेष्टा की, उससे ही प्रतिरोध पैदा होता है। 

अगर कोई तुम्हें बदलना चाहे, तो न बदलने की जिद पैदा होती है। अगर कोई तुम्हें स्वच्छ बनाना चाहे, तो गंदे होने का आग्रह पैदा होता है। अगर कोई तुम्हें मार्ग पर ले जाना चाहे, तो भटकने में रस आता है। क्यों? क्योंकि अहंकार को स्वतंत्रता चाहिए, और इतनी भी स्वतंत्रता नहीं! 

जो लोग जानते हैं, वह बिना किए बदलते हैं। उनके पास बदलाहट घटती है। ऐसे ही घटती है, जैसे चुंबक के पास लोहकण खिंचे चले आते हैं। कोई चुंबक खींचता थोड़े ही है! लोह-कण खिंचते हैं। कोई चुंबक आयोजन थोड़े ही करता है, जाल थोड़े ही फेंकता है। चुंबक का तो एक क्षेत्र होता है। चुंबक की एक परिधि होती है, प्रभाप की जहां उसकी मौजूदगी होती है, तुम उसकी प्रभाव-परिधि में प्रविष्ट हो गए कि तुम खिंचने लगते हो, कोई खिंचता नहीं। 

ज्ञानी तो एक चुंबकीय क्षेत्र है। उसके पासभर आने की तुम हिम्मत जुटा लेना, शेष होना शुरू हो जाएगा। इसीलिए तो ज्ञानी के पास आने से लोग डरते हैं। हजार उपाय खोजते हैं न आने के। हजार बहाने खोजते हैं न आने के। हजार तरह के तर्क मन में खड़े कर लेते हैं न आने के। हजार तरह अपने को समझा लेते हैं कि जाने की कोई जरूरत नहीं। 

पंडित के पास जाने से कोई भी नहीं डरता, क्योंकि पंडित कुछ कर नहीं सकता। अब यह बड़े मजे की बात है, कि पंडित करना चाहता है और कर नहीं सकता। ज्ञानी करते नहीं, और कर जाते हैं। 

सत्संग बड़ा खतरा है। उससे तुम अछूते न लौटोगे, तुम रंग ही जाओगे। तुम बिना रंगे न लौटोगे; वह असंभव है। लेकिन ज्ञानी कुछ करता है यह मत सोचना। हालांकि तुम्हें लगेगा, बहुत कुछ कर रहा है। तुम पर हो रहा है, इसलिए तुम्हें प्रतीति होती है, कि बहुत कुछ कर रहा है। तुम्हारी प्रतीति तुम्हारे तईं ठीक है, लेकिन ज्ञानी कुछ करता नहीं। 

बुद्ध का अंतिम क्षण जब करीब आया, तो आनंद ने पूछा, कि अब हमारा क्या होगा? अब तक आप थे, सहारा था; अब तक आप थे, भरोसा था; अब तक आप थे आशा थी, कि आप कर रहे हैं, हो जाएगा। अब क्या होगा

बुद्ध ने कहा, मैं था, तब भी मैं कुछ कर नहीं रहा था। तुम्हें भ्रांति थी। और इसलिए परेशान मत होओ। मैं नहीं रहूंगा तब भी जो हो रहा था, वह जारी रहेगा। अगर मैं कुछ कर रहा था तो मरने के बाद बंद हो जाएगा।

लेकिन मैं कुछ कर ही न रहा था। कुछ हो रहा था। उससे मृत्यु का कोई लेना-देना नहीं, वह जारी रहेगा। अगर तुम जानते हो, कि कैसे अपने हृदय को मेरी तरफ खोलो, तो वह सदा-सदा जारी रहेगा।
ज्ञानी पुरुष जैसा दादू कहते हैं, लीन हो जाते हैं, उनकी लौ सारे अस्तित्व पर छा जाती है। उनकी लौ फिर तुम्हें खींचने लगती है। कुछ करती नहीं, अचानक किन्हीं क्षणों में जब तुम संवेदनशील होते हो, ग्राहक क्षण होता है कोई, कोई लौ तुम्हें पकड़ लेती है, उतर आती है। वह हमेशा मौजूद थी। जितने ज्ञानी संसार में हुए हैं, उनकी किरणें मौजूद हैं। तुम जिसके प्रति भी संवेदनशील होते हो, उसी की किरण तुम पर काम करना शुरू कर देती है। कहना ठीक नहीं, कि काम करना शुरू कर देती है, काम शुरू हो जाता है। 

पीव पीव लगी प्यास

ओशो

No comments:

Post a Comment