Thursday, November 16, 2017

प्रार्थना

मैंने सुना है, दो आदमी एक जेलखाने में बंद थे। एक था मारवाड़ी चंदूलाल... आ गया था गिरफ्त में! की होगी तस्करी वगैरह... और दूसरे थे सरदार विचित्तर सिंह। दोनों सोचतेविचारते, कैसे निकल भागें? एक रात मौका हाथ लग गया। होली की रात थी; पहरेदार डटकर भांग छान गया था। सो उन्होंने कहां आज मौका है, आज निकल भागें; आज पहरेदार नशे में है।


पहले चंदूलाल निकले। जब चंदूलाल सरककर दरवाजे के पास से निकलने लगे, तो यू तो पहरेदार भंग के नशे में था, मगर जिंदगीभर की पहरेदारी की आदत, सो नशे में भी बोला : कौन है? चंदूलाल तो पक्के मारवाड़ी, होशियार आदमी, बोले. म्याऊं, म्याऊं। पहरेदार ने कहां, भाड़ में जा! अपनी मस्ती में बैठा था, कहां की बिल्ली आ गयी और!

सरदार विचित्तर सिंह ने सुना, उन्होंने कहां, वाह, गजब का चंदूलाल है! निकल गया पट्ठा!

सरदार विचित्तर सिंह भी निकले। फिर उस पहरेदार ने पूछा : कौन है? सरदार विचित्तर सिंह ने कहां : अरे, अभी वह मारवाड़ी बिल्ली गयी, मैं पंजाबी बिल्ला हूंनाम सरदार विचित्तर सिंह।

पकड़े गये। फौरन पकड़े गये।

जब मजिस्ट्रेट ने पूछा कि तुम यह क्या बकवास कर रहे थे, उन्होंने कहां, वह चंदूलाल भाग गया और उस हरामजादे ने भी सिर्फ म्याऊंम्याऊं कहां था! और मैंने तो पूरापूरा उत्तर दिया था कि मैं पंजाबी बिल्ला हूं सरदार विचित्तर सिंह मेरा नाम है और फिर भीं पकड़ा गया। मेरी तो राज समझ में नहीं आता!

नकल में अकसर यह भूल होनेवाली है। कुछ का कुछ हो जाएगा।

तोतों की तरह लोग दोहरा रहे हैं। यह उपनिषद् की प्रार्थना कितनी दोहराई जाती है। मगर जो दोहराते हैं, उनका अंधकार मिटते दिखता है? कहीं दीये जलते दिखते हैं? कहीं दीपावली होती दिखती है उनके जीवन में? —वही अंधकार, वही का वही अंधकार! 

प्रार्थना से नहीं कुछ हो सकता है। प्रार्थना पर खड़ी हुई धर्म की पूरी धारणा ही बचकानी है। मांगने की बात नहीं, जीने की बात है। जिओ तो पा सकोगे। खोजो तो पा सकोगे। यूं आलस्य से न चलेगा।
ये शब्द तो प्यारे हैं। मगर शब्द कितने ही प्यारे हों, शब्दों से क्या हो सकता है? इनमें अनुभव का अर्थ चाहिए। और अनुभव का अर्थ कौन डालेगा? वह तुम ही डाल सकते हो। उपनिषद् मुर्दा हैं, जब तक तुम उनमें प्राण न फूको...! तुम प्राण फूको तो तुम्हारे भीतर का उपनिषद् बोलने लगता है। और जब तुम्हारे भीतर की कोयल कुहूकुहू करती है, और तुम्हारे भीतर का पपीहा पिहापिहा पुकारता है, तब मजा है, तब रस है; रसौ वै सः, तब तुम्हें अनुभव होगा कि परमात्मा का क्या स्वरूप है!

साहब मिल साहब भये 

ओशो

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