Saturday, January 20, 2018

‘आधारहीन, शाश्‍वत, निश्‍चल आकाश में प्रविष्‍ट होओ।’


लेकिन मन सदा आधार खोजता है। मेरे पास लोग आते है और मैं उनसे कहता हूं, आंखें बंद कर के मौन बैठो और कुछ भी मत करो। और वे कहते है, हमें कोई अवलंबन दो, सहारा दो। सहारे के लिए कोई मंत्र दो। क्‍योंकि हम खाली बैठ नहीं सकते है। खाली बैठना कठिन है। यदि मैं उन्‍हें कहता हूं कि मैं तुम्‍हें मंत्र दे दूं तो ठीक है। तब वह बहुत खुश होते है। वे उसे दोहराते रहते है। तब सरल है।

आधार के रहते तुम कभी रिक्‍त नहीं हो सकते। यही कारण है कि वह सरल है। कुछ न कुछ होना चाहिए। तुम्‍हारे पास करने के लिए कुछ न कुछ होना चाहिए। करते रहने से कर्ता बना रहता है। करते रहने से तुम भरे रहते होचाहे तुम ओंकार से भरे हो। ओम से भरे हो, राम से भरे हो। जीसस से, आवमारिया से। किसी भी चीज सेकिसी भी चीज से भरे हो, लेकिन तुम भरे हो। तब तुम ठीक रहते हो। मन खालीपन का विरोध करता है। वह सदा किसी चीज से भरा रहना चाहता है। क्‍योंकि जब तक वह भरा है तब तक चल सकता है। यदि वह रिक्‍त हुआ तो समाप्‍त हो जाएगा। रिक्‍तता में तुम अ-मन को उपलब्‍ध हो जाओगे। वही कारण है कि मन आधार की खोज करता है। 


यदि तुम अंतर-आकाश, इनर स्‍पेस में प्रवेश करना चाहता हो तो आधार मत खोजों। सब सहारेमंत्र, परमात्‍मा, शास्‍त्रजो भी तुम्‍हें सहारा देता है वह सब छोड़ दो। यदि तुम्‍हें लगे कि किसी चीज से तुम्‍हें सहारा मिल रहा है तो उसे छोड़ दो और भीतर आ जाओ। आधारहीन।


यह भयपूर्ण होगा; तुम भयभीत हो जाओगे। तुम वहां जा रहे हो जहां तुम पूरी तरह खो सकते हो। हो सकता है तुम वापस ही न आओ। क्‍योंकि वहां सब सहारे खो जाएंगे। किनारे से तुम्‍हारा संपर्क छूट जाएगा। और नदी तुम्‍हें कहां ले जाएगी। किसी को पता नहीं। तुम्‍हारा आधार खो सकता है। तुम एक अनंत खाई में गिर सकते हो। इसलिए तुम्‍हें भय पकड़ता है। और तुम आधार खोजने लगते हो। चाहे वह झूठा ही आधार क्‍यों न हो, तुम्‍हें उससे राहत मिलती है। झूठा आधार भी मदद देता है। क्‍योंकि मन को कोई अंतर नहीं पड़ता कि आधार झूठा है या सच्‍चा है, कोई आधार होना चाहिए। 


एक बार एक व्‍यक्‍ति मेरे पास आया। वह ऐसे घर में रहना था जहां उसे लगता था कि भूत-प्रेत है, और वह बहुत चिंतित था। चिंता के कारण उसका भ्रम बढ़ने लगा। चिंता से वह बीमार पड़ गया, कमजोर हो गया। उसकी पत्‍नी ने कहा, यदि तुम इस घर से जरा रुके तो मैं तो रहीं हूं। उसके बच्‍चों को एक संबंधी के घर भेजना पडा।


वह आदमी मेरे पास आया और बोला, अब तो बहुत मुश्‍किल हो गयी है। मैं उन्‍हें साफ-साफ देखता हूं। रात वे चलते है, पूरा घर भूतों से भरा हुआ है। आप मेरी मदद करें।


तो मैंने उसे अपना एक चित्र दिया और कहा, इसे ले जाओ। अब उन भूतों से मैं निपट लुंगा। तुम बस आराम करो। और सो जाओ। तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। उनसे मैं निपट लुंगा। उन्‍हें मैं देख लूंगा। अब यह मेरा काम है। और तुम बीच में मत आना। अब तुम्‍हें चिंता नहीं करनी है।


वह अगले ही दिन आया और बोला, बड़ी राहत मिली मैं चेन से सोया। आपने तो चमत्‍कार कर दिया। और मैंने कुछ भी नहीं किया था। बस एक आधार दिया। आधार से मन भर जाता है। वह खाली न रहा; वहां कोई उसके साथ था।


सामान्‍य जीवन में तुम कई झूठे सहारों को पकड़े रहते हो, पर वे मदद करते है। और जब तक तुम स्‍वयं शक्‍तिशाली न हो जाओ, तुम्‍हें उनकी जरूरत रहेगी। इसीलिए में कहता हूं कि यह परम विधि हैकोई आधार नहीं।


बुद्ध मृत्‍युशय्या पर थे और आनंद ने उनसे पूछा, आप हमें छोड़कर जा रहे है, अब हम क्‍या करेंगें? हम कैसे उपलब्‍ध होंगे? जब आप ही चले जाएंगे तो हम जन्‍मों-जन्‍मों के अंधकार में भटकते रहेंगे, हमारा मार्गदर्शन करने के लिए कोई भी नहीं रहेगा, प्रकाश तो विदा हो रहा है।’ तो बुद्ध ने कहा,तुम्‍हारे लिए यह अच्‍छा रहेगा। जब मैं नहीं रहूंगा तो तुम अपना प्रकाश स्‍वयं बनोंगे। अकेले चलो, कोई सहारा मत खोजों, क्‍योंकि सहारा ही अंतिम बाधा है।

और ऐसा ही हुआ। आनंद संबुद्ध नहीं हुआ था। चालीस वर्ष से वह बुद्ध के साथ था, वह निकटतम  शिष्‍य था, बुद्ध की छाया की भांति था, उनके साथ चलता था। उनके साथ रहता था। उनका बुद्ध के साथ सबसे लंबा संबंध था। चालीस वर्ष तक बुद्ध की करूणा उस पर बरसती रही थी। लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। आनंद सदा की भांति आज्ञानी ही रहा। और जिस दिन बुद्ध ने शरीर छोड़ा उसके दूसरे ही न आनंद संबुद्ध हो गयादूसरे ही दिन।


वह आधार ही बाधा था। जब बुद्ध ने रहे तो आनंद कोई आधार न खोज सका। यह कठिन है। यदि तुम किसी बुद्ध के साथ रहो वह बुद्ध चला जाए, तो कोई भी तुम्‍हें सहारा नहीं दे सकता। अब कोई भी ऐसा न रहेगा जिसे तुम पकड़ सकोगे। जिसने किसी बुद्ध को पकड़ लिया वह संसार में  किसी और को पकड़ पायेगा। यह पूरा संसार खाली होगा। एक बार तुमने किसी बुद्ध के प्रेम और करूणा को जान लिया हो तो कोई प्रेम, कोई करूणा उसकी तुलना नहीं कर सकती। एक बार तुमने उसका स्‍वाद ले लिया तो और कुछ भी स्‍वाद लेने जैसा न रहा।


तो चालीस वर्ष में पहली बार आनंद अकेला हुआ। किसी भी सहारे को खोजने का कोई उपाय नहीं था। उसने परम सहारे को जाना था। अब छोटे-छोटे सहारे किसी काम के नहीं, दूसरे ही दिन वह संबुद्ध हो गया। वह निश्‍चित ही आधारहीन, शाश्‍वत निश्‍चल अंतर-आकाश में प्रवेश कर गया होगा।


तो स्‍मरण रखो कोई सहारा खोजने का प्रयास मत करो। आधारहीन ही जानो। यदि इस विधि को कहने का प्रयास कर रहे हो तो आधारहीन हो जाओ। यही कृष्‍ण मूर्ति सिखा रहा है। आधारहीन हो जाओ, किसी गुरु को मत पकड़ो, किसी शस्‍त्र को मत पकड़ो। किसी भी चीज को मत पकड़ो।


विज्ञान भैरव तंत्र 

ओशो

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