Tuesday, March 13, 2018

ऑटो-सजेशंस और हिप्नोसिस से आपका ध्यान क्या अलग है? और अलग है तो कैसे? इसे स्पष्ट करें।



ऑटो-हिप्नोसिस और सम्मोहन से अलग नहीं है, ज्यादा है। जहां तक ऑटो-हिप्नोसिस जाती है, वहां तक तो यह ध्यान का मार्ग भी साथ ही साथ जाता है, उसी मार्ग पर। लेकिन जहां ऑटो-हिप्नोसिस रुक जाती है, यह मार्ग उससे आगे भी चला जाता है। और वह जो आगे जाने वाला सूत्र है, उसकी वजह से जहां तक हिप्नोसिस के साथ जाता है उसमें भी बुनियादी भिन्नता रहती है। सम्मोहन का मूल आधार तुम्हारे चेतन मन का सो जाना है। मूर्च्छित हो जाना ही सम्मोहन है। तो सम्मोहन के सुझाव की प्रक्रिया तुम्हें तंद्रा में ले जाती है। तुम जितने तंद्रिल हो जाते हो, जितने सुषुप्त हो जाते हो, उतना ही तुम सम्मोहित हो जाते हो। फिर उस सम्मोहन की स्थिति में तुमसे कुछ भी करवाया जा सकता है, क्योंकि तुम्हारा विवेक सोया हुआ है। 


ध्यान की इस प्रक्रिया में तुम्हें तंद्रा में नहीं जाना है। तंद्रा में जा भी नहीं सकते हो। क्योंकि ध्यान की पूरी प्रक्रिया एक्टिव है। इसलिए सम्मोहन करने वाला तुम्हें बिस्तर पर लिटाएगा, आरामकुर्सी पर बिठाएगा। सम्मोहन करने वाला इस बात की जांच करेगा कि तुम तंद्रा में जाने की स्थिति में लाए जाओ। सम्मोहित हो जाने के बाद तुम गहरी निद्रा में चले जाओगे। यह निद्रा और तुम्हारी साधारण निद्रा में थोड़ा ही फर्क है। यह इनडयूस्ड है, बस इतना ही फर्क है। यह चेष्टित है। इसलिए जिसने चेष्टा करके तुम्हें सुलाया है, उससे तुम्हारा संबंध जारी रहेगा, सिर्फ उससे, बाकी सब संबंध टूट जाएंगे। 


ध्यान की जो प्रक्रिया है, एक्टिव है। तुम दस मिनट गहरी श्वास ले रहे हो। इतनी गहरी श्वास में सोना असंभव है। अगर तुम सो जाओगे, फौरन श्वास शिथिल हो जाएगी। तुम्हें श्वास लेने के लिए जागा हुआ होना पड़ेगा। जो मैं सुझाव दे रहा हूं, वे ठीक उसी प्रकार के हैं जैसे सम्मोहन के हैं, लेकिन ठीक वही नहीं हैं। 


सम्मोहन में ले जाने वाला तुमसे कह रहा है कि तुम सो रहे हो, तुम अपने को छोड़ दो और सो जाओ। मैं तुमसे कह रहा हूं कि तुम गहरी श्वास को और गहरा करते चले जाओ। श्वास जितनी गहरी होगी, निद्रा में जाना उतना असंभव हो जाएगा, क्योंकि ब्लड सर्कुलेशन ज्यादा होगा। निद्रा का तो नियम है कि ब्लड सर्कुलेशन कम हो जाना चाहिए। असल में नींद का तो सूत्र ही यही है कि तुम्हारे सिर में खून की गति जितनी कम होगी उतनी तुम गहरी नींद में चले जाओगे। 


इसलिए तकिया रख कर सोते हो। क्योंकि सिर ऊंचा रहेगा और बाकी शरीर नीचा रहेगा, तो सिर में खून कम पहुंचेगा। और कोई तकिए में अर्थ नहीं है। इसलिए जितनी सभ्यता बढ़ती जाएगी, तकिए बढ़ते जाएंगे। क्योंकि सिर में दिन भर इतना खून चलेगा कि उसको रात और कम करना पड़े, और कम करना पड़े, और कम करना पड़े। 


ध्यान में इतनी तीव्र श्वास तुम्हारे खून की गति को तीव्र कर रही है। वह इतना तीव्र कर रही है कि खून ही नहीं चल रहा, तुम्हारी बॉडी इलेक्ट्रिसिटी जग जाएगी। जिसके होते हुए तुम सो ही नहीं सकते। असंभव है सोना। 


फिर दूसरे चरण में तुम्हें बड़ी जोर से अपनी सारी अभिव्यक्ति देनी है, जो भी हो रहा है उसको। नाच रहे हो, कूद रहे हो, रो रहे हो, हंस रहे हो।


इसीलिए मैं सुझाव नहीं देता कि तुम सब हंसो। क्योंकि अगर मैं सुझाव दूं कि तुम सब हंसो, तो वह सम्मोहन के बहुत करीब हो जाएगा। नहीं, मैं यह कहता हूं कि तुम्हें जो ठीक लगे, उसे तुम पूरी तरह करो। मैं तुमसे कहता हूं कि तुम्हें जो ठीक लगे, उसे तुम पूरी तरह करो। मैं तुम्हें पूरे वक्त होश में रखना चाहता हूं। क्योंकि तुम्हीं ध्यान में काम पड़ोगे। तुम सो गए तो ध्यान में कौन जाएगा? तुम्हें जगाए ही रखना है। 


सम्मोहक जो है वह तुम्हें सुलाने की कोशिश कर रहा है। क्योंकि अगर तुम न सोए, तो वह तुम्हारे साथ कुछ भी न कर सकेगा। तुम सो जाओ तो ही कुछ कर सकेगा। 


यह बिलकुल उलटा है, बिलकुल भिन्न है--एक सा दिखता हुआ भी, एक रास्ते पर चलते हुए भी, पैरेलल होते हुए भी। 


फिर तीसरे चरण में तुम पूछ रहे हो--मैं कौन हूं? वह भी तुम्हें इतनी तेजी से पूछना है कि तुम्हें एक क्षण को मन के तल पर भी तंद्रा न आ जाए। 


ये तीनों प्रयोग इतने तीव्र हैं कि इनमें तुम सो नहीं सकते। इसलिए तुम हिप्नोटाइज नहीं हो सकते हो। 


यहां तक हम साथ चलते हैं हिप्नोसिस के। हम प्रयोग कर रहे हैं सुझाव का तुम्हें जगाने के लिए और वह प्रयोग कर रहा है तुम्हें सुलाने के लिए। प्रयोग दोनों कर रहे हैं सुझाव का, सजेशन का, सजेस्टिबिलिटी का। लेकिन दोनों की इच्छा, यात्रा, लक्ष्य बिलकुल अलग है। फिर सम्मोहन सुला कर समाप्त हो जाता है। 


इन तीस मिनट की तीव्र प्रक्रिया के बाद तुम्हें मैं छोड़ रहा हूं परमात्मा में। अब तुम एक ऊर्जा के पिंड हो गए। अब तुम सिर्फ एक नाचती-कूदती ऊर्जा रह गए, शक्ति रह गए। अब तुम छलांग ले सकते हो। इतनी ऊर्जा, इतनी वाइटेलिटी में तुम कूद सकते हो सागर में। अब तुम हिम्मत जुटा सकते हो, जो तुम पहले न जुटा पाते। अब तुम्हारी पूरी शक्ति सक्रिय है। इससे सम्मोहन का कोई लेना-देना ही नहीं है। अब तुम एक नई यात्रा पर जा रहे हो, जो सुझाव के बाहर है। अब यह यात्रा तुम्हें ही करनी है। यह चुपचाप तुम्हें इसमें ही डूब जाना है। 


तो सम्मोहन से कुछ तालमेल है, क्योंकि सुझाव का मैं उपयोग कर रहा हूं। कुछ समानता है। लेकिन बहुत गहरे में बुनियादी भेद है। और वही भेद ज्यादा है। वही फिर आगे काम पड़ेगा। बाकी तो सब पीछे छूट जाएगा। 

जो घर बारे अपना 

ओशो

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