Thursday, August 9, 2018

जब आप लाओत्‍सु पर बात कर रहे हों तो आप एक ताओवादी संत बन जाते हैं जब तंत्र पर बोल रहे हों तो आप तांत्रिक बन जाते हैं जब भक्ति की बात कर रहे हों तो आप संबोधि पाए हुए भक्त बन जाते हैं जब योग पर बोल रहे हैं लेई आप एक पूर्ण योगी बन गये है क्या आप कृपया स्‍पष्‍ट करेंगे कि किस तरह यह अद्भुत घटना संभव हो पायी है?


 जब तुम नहीं होते केवल तभी यह संभव होता है। यदि तुम हो, तब वह संभव नहीं हो पाता। यदि तुम नहीं हो, यदि मेजबान बिलकुल चला जाता है, तभी मेहमान मेजबान बनता है। वे मेहमान लाओत्सु हो सकते हैं, वे मेहमान हो सकते हैं पतंजलि। मेजबान वहां नहीं है, इसलिए मेहमान पूर्णतया उसकी जगह ले लेता है, वह मेजबान बन जाता है। यदि तुम न रहो, तब तुम पतंजलि हो सकते हो, उसमें कोई कठिनाई नहीं है। तुम कृष्ण बन सकते हो, तुम क्राइस्ट बन सकते हो। लेकिन यदि तुम रही वहां, तब यह बहुत कठिन है। यदि तुम हो वहां, तब जो कुछ तुम कहते हो भ्रांतिपूर्ण होगा।


इसीलिए मैं कहता हूं कि ये व्याख्याएं नहीं हैं। मैं पतंजलि पर चर्चा नहीं कर रहा। मैं तो अनुपस्थित हूं; पतंजलि को आने दे रहा हूं। इसलिए यह कोई व्याख्या या टीकाटिप्पणी नहीं है। व्याख्या का अर्थ होता है कि पतंजलि कुछ पृथक हैं, मैं कुछ पृथक हूं और मैं पतंजलि पर चर्चा कर रहा हूं। तब यह विकृत होगा ही। क्योंकि कैसे मैं पतंजलि पर टीका कर सकता हूं? जो कुछ मैं कहता हूं वह मेरा कहना होगा। और जो कुछ भी मैं कहता हूं वह मेरा अर्थनिर्णय होगा। वह पतंजलि का अपना नहीं हो सकता। और वह शुभ नहीं है। यह ध्वंसात्‍मक है। इसलिए मैं व्याख्या नहीं कर रहा। मैं केवल होने दे रहा हूं। और यह होने देना संभव होता है यदि तुम न रही। 


यदि तुम साक्षी हो जाते हो, तो अहंकार विलीन हो जाता है। जब अहंकार विलीन हो जाता है, तब तुम वाहन बन जाते हो, तुम एक मार्ग बन जाते हो। तुम एक बास की पोंगरी बन जाते हो। और बांसुरी पतंजलि के अधरों पर रखी जा सकती है, बांसुरी कृष्ण के अधरों पर रखी जा सकती है। वह बांसुरी वही रहती है लेकिन जब यह बुद्ध के होठों पर होती है तब बुद्ध प्रवाहित हो रहे होते हैं।


इसलिए यह कोई व्याख्या नहीं है। यह समझना मुश्किल है क्योंकि तुम तैयार नहीं हो कि होने देओ। तुम भीतर इतने विद्यमान हो कि तुम किसी और को वहां होने नहीं देते। पतंजलि व्यक्ति नहीं हैंएक उपस्थिति हैं। यदि तुम मौजूद नहीं होते हो, तो उनकी उपस्थिति कार्य कर सकती है।


यदि तुम पतंजलि से पूछो, तो वे यही कहेंगे। यदि तुम पतंजलि से पूछो तो वे नहीं कहेंगे कि ये सूत्र उनके द्वारा रचे गये हैं। वे कहेंगे, ये बहुत प्राचीन हैंसनातन। वे कहेंगे, लाखों और लाखों ऋषियों ने यह देखा है। मैं तो केवल एक वाहन हूं। मैं अनुपस्थित हूं और वे बोल रहे हैं। यदि तुम कृष्ण से पूछो, वे कहेंगे, 'मैं नहीं बोल रहा हूं। ये अत्यंत प्राचीन संदेश हैं। ये सदा से ऐसे रहे हैं।और यदि तुम जीसस से पूछो, वे कहेंगे, मैं तो हूं ही नहीं। मैं नहीं हूं।


यह आग्रह क्यों? कोई भी जो अनुपस्थित हो जाता है, जो अहंकारशून्य हो जाता है, वाहन की भांति कार्य करने लगता हैएक मार्ग की तरहवह सब जो सत्य है उसका एक मार्ग; वह सब जो अस्तित्व में छिपा हुआ है और जो प्रवाहित हो सकता है उसका मार्ग। और जो कुछ मैं कहता हूं उसे तुम केवल तभी समझ पाओगे जब तुम अनुपस्थित हो जाओ, चाहे कुछ क्षणों के लिए ही।
यदि तुम वहां बहुत ज्यादा होते हो, यदि तुम्हारा अहंकार वहां हैं, तो जो कुछ मैं कह रहा हूं वह तुममें प्रवाहित नहीं हो सकता है। यह केवल एक बौद्धिक संप्रेषण नहीं है। यह कुछ है जो अधिक गहरा है।


यदि तुम एक क्षण के लिए भी अहंकारशून्य हो जाते हो, तब घनिष्ठ संपर्क अनुभव होगा, तब कुछ अज्ञात तुममें प्रवेश कर चुका होगा और उस क्षण में तुम समझ पाओगे। और दूसरा कोई रास्ता नहीं है समझने का, जानने का।

पतंजलि योगसूत्र 

ओशो 
 

No comments:

Post a Comment