Tuesday, September 24, 2019

साक्षीभाव क्या है? उसे हम जगाना चाहते हैं। क्या वह भी चित्त का एक अंश नहीं होगा? या कि चित्त से परे होगा?




 प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है, और ठीक से समझने योग्य हैसाधारणत: हम जो भी जानते हैं, जो भी करते हैं, जो भी प्रयत्न होगा, वह सब चित्त से होगा, मन से होगा, माइंड से होगाअगर आप रामराम जपते हैं, तो जपने की क्रिया मन से होगीअगर आप मंदिर में पूजा करते हैं, तो पूजा करने की क्रिया मन का भाव होगीअगर आप कोई ग्रंथ पढ़ते हैं, तो पढ़ने की क्रिया मन की होगीऔर आत्मा को जानना हो, तो मन के ऊपर जाना होगामन की कोई क्रिया मन के ऊपर नहीं ले जा सकती हैमन की कोई भी क्रिया मन के भीतर ही रखेगी

स्वाभाविक है कि मन की किसी भी क्रिया से, जो मन के पीछे है, उससे परिचय नहीं हो सकतायह पूछा है, यह जो साक्षीभाव है, क्या यह भी मन की क्रिया होगी? नहीं, अकेली एक ही क्रिया है, जो मन की नहीं है, और वह साक्षीभाव हैइसे थोड़ा समझना जरूरी है

और केवल साक्षीभाव ही मनुष्य को आत्मा में प्रतिष्ठा दे सकता है, क्योंकि वही हमारे जीवन में एक सूत्र है, जो मन का नहीं है, मांइड का नहीं है। 

आप रात को स्वप्न देखते हैंसुबह जागकर पाते हैं कि स्वप्न था, और मैंने समझा कि सत्य हैसुबह स्वप्न तो झूठा हो जाता है, लेकिन जिसने स्वप्न देखा था, वह झूठा नहीं होताउसे आप मानते हैं कि जिसने देखा था वह सत्य था, जो देखा था वह स्वप्न थाआप बच्चे थे, अब युवा हो गयेबचपन तो चला गया, युवापन गयायुवावस्था भी चली जायेगी, बुढ़ापा जायेगालेकिन जिसने बचपन को देखा, युवावस्था  को देखा, बुढ़ापे को देखेगा, वह आया, गया; वह मौजूद रहासुख आता है, सुख चला जाता है; दुःख आता है, दुःख चला जाता हैलेकिन जो दुःख को देखता है और सुख को देखता है, वह मौजूद बना रहता है। 
 
तो हमारे भीतर दर्शन की जो क्षमता है, वह सारी स्थितियों में मौजूद बनी रहती हैसाक्षी का जो भाव है, वह हमारी जो देखने की क्षमता है, वह मौजूद बनी रहती हैवही क्षमता हमारे भीतर अविच्छिन्न रूप से, अपरिवर्तित रूप से मौजूद हैआप बहुत गहरी नींद में हो जाएं, तो भी सुबह कहते हैं, रात बहुत गहरी नींद आयी, रात बड़ी आनंदपूर्ण निद्रा हुईआपके भीतर किसी ने उस निंद्रापूर्ण अनुभव को भी जानाउस आनंदपूर्ण सुषुप्ति को भी जानातो आपके भीतर जाननेवाला, देखनेवाला जो साक्षी है, वह सतत मौजूद है
मन सतत परिवर्तनशील है, और साक्षी सतत अपरिवर्तनशील हैइसलिए साक्षीभाव मन का हिस्सा नहीं हो सकताऔर फिर, मन की जोजो क्रियाएं हैं, उनको भी आप देखते हैंआपके भीतर विचार चल रहे हैं, आप शांत बैठ जायें, आपको विचारों का अनुभव होगा कि वे चल रहे हैं; आपको दिखायी पड़ेंगे, अगर शांत भाव से देखेंगे तो विचार वैसे ही दिखाई पड़ेंगे, जैसे रास्ते पर चलते हुए लोग दिखायी पड़ते हैंफिर अगर विचार शून्य हो जायेंगे, विचार शांत हो जायेंगे, तो यह दिखायी पड़ेगा कि विचार शांत हो गये हैं, शून्य हो गये हैं; रास्ता खाली हो गया हैनिश्चित ही जो विचारों को देखता है, वह विचार से अलग होगावह जो हमारे भीतर देखने वाला तत्व है, वह हमारी सारी क्रियाओं से, सबसे भिन्न और अलग है

जब आप श्वास को देखेंगे, श्वास को देखते रहेंगे, देखतेदेखते श्वास शांत होने लगेगीएक घड़ी आयेगी, आपको पता ही नहीं चलेगा कि श्वास चल भी रही है या नहीं चल रही हैजब तक श्वास चलेगी, तब तक दिखायी पड़ेगा कि श्वास चल रही है; और जब श्वास नहीं चलती हुई मालूम पड़ेगी, तब दिखाई पड़ेगा कि श्वास नहीं चल रही है लेकिन दोनों स्थितियों में देखने वाला पीछे खड़ा हुआ है

यह जो साक्षी है, यह जो विटनेस है, यह जो अवेयरनेस है पीछे, बोध का बिंदु है : यह बिंदु मन के बाहर है; मन की क्रियाओं का हिस्सा नहीं हैक्योंकि मन की क्रियाओं को भी वह जानता हैजिसको हम जानते हैं, उससे अलग हो जाते हैंजिसको भी आप जान सकते हैं, उससे आप अलग हो सकते हैं; क्योंकि आप अलग हैं हीनहीं तो उसको जान ही नहीं सकतेजिसको आप देख रहे हैं, उससे आप अलग हो जाते हैं, क्योंकि जो दिखायी पड़ रहा है, वह अलग होगा और जो देख रहा है, वह अलग होगा

चल हंसा उस देश 

ओशो


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