Saturday, October 19, 2019

तनाव से भरा व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता


तनाव से भरा व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता। क्यों? तनाव से भरा व्यक्ति हमेशा किसी उद्देश्य के लिए जीता है। वह धन कमा सकता है लेकिन प्रेम नहीं कर सकता। क्योंकि प्रेम का कोई उद्देश्य नहीं प्रेम कोई वस्तु नहीं। तुम उसका संग्रह नहीं कर सकते; तुम उसे बैंक में जमा-पूंजी नहीं बना सकते, तुम उससे अपने अहंकार को मजबूत नहीं कर सकते। निश्चित ही प्रेम एक बहुत ही अर्थहीन कृत्य है जिसका उसके पार कोई अर्थ नहीं कोई उद्देश्य नहीं। उसका अस्तित्व किसी और चीज के लिए नहीं अपने ही लिए है। प्रेम-प्रेम के लिए है।


तुम कुछ पाने के लिए धन कमाते हो वह एक साधन है। तुम घर बनाते हो किसी उद्देश्य से उसमें रहने के लिए बनाते हो, यह एक साधन है। प्रेम साधन नहीं है। तुम प्रेम क्यों करते हो? किसलिए करते हो? प्रेम अपने में एक साध्य है। इसीलिए बुद्धि जो बहुत हिसाबी-किताबी है तर्कवान है जो हमेशा उपयोगिता की भाषा में सोचती है प्रेम नहीं कर सकती। और जो बुद्धि हमेशा किसी उपयोगिता किसी उद्देश्य की भाषा में ही सोचती है वह सदा तनावपूर्ण रहती है। क्योंकि उद्देश्य की पूर्ति भविष्य में होगी अभी और यहां कभी नहीं होती।

तुम मकान बनाते हो, तुम अभी और इसी समय उसमें नहीं रह सकते। पहले तुम्हें उसे बनाना पड़ेगा तुम भविष्य में ही उसमें रह पाओगे, अभी नहीं। तुम धन कमाते हो, बैंक में धन राशि भविष्य में जमा होगी अभी नहीं। उपाय तुम्हें अभी करने होंगे, फल भविष्य में आएंगे।

प्रेम हमेशा यहीं है। उसका कोई भविष्य नहीं। इसीलिए प्रेम ध्यान के अति निकट है। इसीलिए मृत्यु भी ध्यान के अति निकट है; क्योंकि मृत्यु अभी और यहीं है। वह कभी भविष्य में नहीं घटती। क्या तुम भविष्य में मर सकते हो? केवल वर्तमान में ही मर सकते हो। कोई कभी भविष्य में नहीं मरता। तुम भविष्य में कैसे मर सकते हो या तुम अतीत में कैसे मर सकते हो? अतीत जा चुका, वह अब है ही नहीं इसलिए तुम उसमें मर नहीं सकते। भविष्य अभी आया नहीं, इसलिए तुम उसमें कैसे मर सकते हो?

मृत्यु हमेशा वर्तमान में घटती है।

मृत्यु प्रेम, ध्यान ये सभी वर्तमान में ही घटित होते हैं। इसलिए अगर तुम मौत से भयभीत हो तो तुम प्रेम नहीं कर सकते। अगर तुम प्रेम से भयभीत हो तो तुम ध्यान नहीं कर सकते। अगर तुम ध्यान से भयभीत हो तो तुम्हारा जीवन व्यर्थ है--उपयोगिता की दृष्टि से व्यर्थ नहीं बल्कि इस अर्थ में कि तुम कभी जीवन में किसी आनंद को अनुभव न कर सकोगे। 




प्रेम, ध्यान, मृत्यु--इन तीनों को एक दूसरे के साथ जोड़ने की बात विचित्र लग सकती है लेकिन ऐसा नहीं है। ये तीनों समान अनुभव हैं। इसलिए अगर तुम एक में प्रवेश कर सको तो शेष दोनों में प्रवेश कर सकते हो।

 

तंत्र अध्यात्म और काम 

ओशो

No comments:

Post a Comment