Saturday, December 28, 2019

स्वार्थी हो जाओ

स्वार्थी हो जाओतभी, केवल तभी परार्थी हो सकोगे; नहीं तो परार्थ, परोपकार की धारणा मूर्खतापूर्ण है। आनंदित होओतभी तुम दूसरों को आनंदित होने में सहायता दे सकोगे। अगर तुम उदास हो दुखी हो, कड़वाहट से भरे हो, तुम निश्चित ही दूसरे के प्रति हिंसक हो जाओगे और दूसरों के लिए दुख पैदा करोगे।

तुम महात्मा बन सकते हो, यह बहुत कठिन नहीं है। लेकिन अपने साधु-महात्माओ को जरा देखो। वे अपने पास आने वालों को हर तरह से सताने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उनके सताने का ढंग ऐसा है कि तुम धोखा खा जाते हो। वे तुम्हें सताते हैं तुम्हारे लिए; वे तुम्हें यातना देते हैं तुम्हारी भलाई के लिए। क्योंकि वे स्वयं को जो यातना दे रहे हैं। तुम यह कहने की हिम्मत नहीं कर सकते कि आप हमें उसकी शिक्षा दे रहे हैं जिसका आप स्वयं अनुसरण नहीं करते। वे पहले ही से इसका अन्याय कर रहे हैं वे अपने को सता रहे हैं पीड़ा दे रहे हैं अब वे तुम्हें भी यातना दे सकते हैं। और जब वह यातना तुम्हें तुम्हारी भलाई के लिए दी जा रही है तब वह बहुत खतरनाक हैतुम उससे बच नहीं सकते।

स्वयं को प्रसन्न रखने में क्या बुराई है? सुखी होने में क्या बुराई है? अगर कुछ बुराई है तो वह तुम्हारे दुखी होने में है क्योंकि दुखी व्यक्ति अपने चारों ओर दुख की तरंगें निर्मित कर लेता है। नंदित होओ और काम-कृत्य आनंद प्राप्त करने का गहरे से गहरा उपाय हो सकता है।

तंत्र कामुकता नहीं सिखाता। वह तो केवल यही कहता है कि काम महा सुख का स्रोत हो सकता है। एक बार जब तुम्हें उस महासुख का पता चल जाता है तुम आगे बढ़ सकते हो, क्योंकि अब तुम सत्य की भूमि पर खड़े हो। व्यक्ति को सदा काम में नहीं अटके रहना बल्कि काम का तालाब में कूदने के लिए जंपिंग बोर्ड की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। तंत्र का यही अभिप्राय है: तुम इसे जंपिंग बोर्ड समझो।और जब एक बार तुम्हें काम-सुख का अनुभव हो जाए तुम समझ सकोगे कि रहस्यदशद किस की बात करते रहे हैंएक परम संभोग की, एक ब्रह्मांडीय संभोग की।

मीरा नाच रही है। तुम उसे समझ न पाओगे। तुम उसके गीतों को भी समझ न पाओगे। वे कामुकता पूर्ण हैंउनमें काम-प्रतीक हैं। ऐसा होगा ही, क्योंकि आदमी के जीवन में संभोग ही एक ऐसा कृत्य है जिसमें अद्वैत की प्रतीति होती जिसमें तुम एक गहन-ऐक्य अनुभव करते हो, जिसमें अतीत मिट जाता है और भविष्य खो जाता है और बचता केवल वर्तमानकेवल सत्य वास्तविक क्षण।

इसलिए उन सभी रहस्यदर्शियों ने जिन्हें परमात्मा के साथ संपूर्ण अस्तित्व के साथ एक हो जाने की अनुभूति हुई है उन्होंने अपनी अनुभूति को अभिव्यक्त करने के लिए काम-प्रतीकों का उपयोग किया है। और कोई दूसरे प्रतीक नहीं हैं और कोई भी प्रतीक इतने निकट नहीं हैं।

काम केवल प्रारंभ है अंत नहीं। लेकिन अगर तुम प्रारंभ को ही चूक गए तो अंत को भी चूक जाओगे। और तुम अंत तक पहुंचने के लिए आरंभ से बच नहीं सकते।

तंत्र अध्यात्म और काम 

ओशो

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