Thursday, December 26, 2019

सुषुम्ना नाड़ी


ह्रदय की कुल मिलाकर एक सौ एक कड़ियां हैं। उनमें से एक नाड़ी मूर्धा, कपाल की ओर निकली हुई है इसे ही सुषुम्ना कहते हैं। उसके द्वारा ऊपर के लोकों में जाकर मनुष्य अमृतत्व को प्राप्त हो जाता है। 

दूसरी एक सौ कड़ियां मरणकाल में जीव को नाना प्रकार की योनियों में ले जाने की हेतु होती हैं। 
 
योग का नाड़ियों के संबंध में अपना विशिष्ट विज्ञान है। आधुनिक शरीर शास्त्र उससे राजी नहीं है। योग ने जिन नाड़ियों की चर्चा की है, वैज्ञानिक उस तरह की किसी भी नाड़ी को मनुष्य के भीतर नहीं पाते हैं। या जिन नाड़ियों को पाते हैं, उनसे योग के द्वारा प्रतिपादित नाड़ियों का कोई तालमेल नहीं है। योगियों ने इस संबंध में बड़ी चेष्टा भी की। विशेषकर पश्चिमीशिक्षा प्राप्त योगियों ने या उन चिकित्सकों ने, शरीरशास्त्रियों ने जो योग से परिचित हैं, योग की नाड़ियों और आधुनिक विज्ञान के द्वारा खोजी गई मनुष्य की नाड़ियों के बीच तालमेल बिठाने की अथक चेष्टा की। पर वह चेष्टा पूरी नहीं हो सकती, क्योंकि बहुत मौलिक रूप से भ्रांत और गलत है। इस बात को ठीक से समझ लेना जरूरी है।


योग जिन नाड़ियों की बात करता है, वे ठीक इस भौतिक शरीर की नाड़िया नहीं हैं। इसलिए इस भौतिक शरीर में उन्हें नहीं पाया जा सकता है। और जो लोग भी कोशिश करते हैं कि इस भौतिक शरीर की नाड़ियों से उनका तालमेल बिठा दें, वे योग का हित नहीं करते हैं, अहित करते हैं।

योग किसी और ही शरीर की बात कर रहा है, जिसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। वह इस शरीर के भीतर ही छिपा हुआ है। लेकिन स्थूल नहीं है, सूक्ष्म है। सूक्ष्म से अर्थ है कि वह शरीर पदार्थगत कम, ऊर्जागत ज्यादा है। वह एनर्जी बॉडी है या जिसको रूस के वैज्ञानिक बायो इलेक्ट्रिसिटी कहते हैं, जीव विद्युत कहते हैं, उसका शरीर है।

इस शरीर के ठीक भीतर छिपा हुआ विद्युत का एक शरीर है। 


यह ऊर्जा देह जिन व्यक्तियों में एक सौ एकवी नाड़ी में प्रविष्ट हो जाती है, यह ऊर्जा का प्रवाह, उनके मस्तिष्क के चारों तरफ एक आभामंडल, एक ऑस निर्मित हो जाता है। कृष्ण, बुद्ध, महावीर और क्राइस्ट उनके चित्रों के आसपास आपने एक आभामंडल बना देखा होगा। वह आभामंडल साधारण आखो से दिखाई नहीं पड़ता है। लेकिन जिस व्यक्ति के मस्तिष्क में, जिसे योग सुषुम्ना कहता है एक सौ एकवीं नाड़ी जिसे योग ने कहा है उसमें जब जीवन की ऊर्जा प्रविष्ट हो जाती है, तो सारे मस्तिष्क के चारों तरफ एक विद्युत का मंडल निर्मित हो जाता है।


यह विद्युतमंडल, जो लोग ध्यान को उपलब्ध हैं, उन्हें दिखाई भी पड़ने लगता है। जो जितने शांत हो जाते हैं, उतना ही यह विद्युतमंडल उन्हें दिखाई पड़ने लगता है; दूसरे के ऊपर भी दिखाई पड़ने लगता है। ऐसा विद्युतमंडल हर एक प्राणी के आसपास है। और वह विद्युतमंडल बताता है कि प्राणी किस अवस्था में है।


यह जो योग ने जिन नाड़ियों की बात की है, यह विद्युत शरीर की बात है। इस भौतिक शरीर से इसका कोई संबंध सीधा नहीं है। यद्यपि भौतिक शरीर पर परिणाम होंगे। विद्युत शरीर में जो भी अंतर पड़ेंगे, उसके भौतिक शरीर पर भी परिणाम होंगे। इसलिए योगी अपनी मृत्यु छह महीने पहले बता सकता है। यह हमने बहुत बार सुना है।

योग का अनुभव है कि ठीक मरने के छह महीने पहले विद्युतऊर्जा बिलकुल क्षीण हो जाती है। सिर्फ टिमटिमाने लगती है। उससे खबर मिल जाती है कि अब यह शरीर ज्यादा से ज्यादा छह महीने चल सकता है। मरते हुए आदमी को छह महीने पहले अपनी नाक दिखाई पड़नी बंद हो जाती है। और जब आपको अपनी नाक दिखाई पड़नी बंद हो जाए, तो आप समझना कि छह महीने के भीतर आप लीन हो जाएंगे। 

कठोपनिषद 

ओशो

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