Sunday, January 12, 2020

संतति नियमन तो अनिवार्य करना पड़ेगा और यह अलोकतांत्रिक नहीं है।



एक आदमी की हत्‍या करने में जितना नुकसान होता है, उससे हजार गुना नुकसान एक बच्‍चे को पैदा करने से होता है। आत्‍महत्‍या से जितना नुकसान होता है, एक बच्‍चा पैदा करने से उससे हजार गुणा नुकसान होता है। समझाने-बुझाने के प्रयोग से तो सफलता दिखाई नहीं पड़ती।


संतति नियमन तो अनिवार्य होना चाहिए।


तब गरीब व अमीर और बुद्धिमान व गैर बुद्धिमान का सवाल नहीं रह जायगा। तब हिन्‍दू, मुसलमान और ईसाई का सवाल नहीं रह जायेगा।


यह देश बड़ा अजीब है, हम कहते है कि हम धर्मनिरपेक्ष है, और फिर भी सब चीजों में धर्म का विचार करते है। सरकार भी विचार रखती है। हिन्‍दू कोड बिलबना हुआ है। वह सिर्फ हिन्‍दू स्‍त्रियों पर ही लागू होता है। यह बड़ी अजीब बात है। सरकार जब धर्म निरपेक्ष है तो मुसलमान स्‍त्रियों को अलग करके सोचे, यह बात ही गलत है। सरकार को सोचना चाहिए स्‍त्रियों के संबंध में।


मुसलमान को हक है कि वह चार शादियाँ करे,किन्‍तु हिन्‍दू को हक नहीं है। तो मानना क्‍या होगा? यह धर्म निरपेक्ष राज्‍य कैसे हुआ?


हिन्‍दुओं के लिए अलग नियम और मुसलमान के लिए अलग नियम नहीं होना चाहिए।


सरकार को सोचना चाहिए स्‍त्रीके लिए। क्‍या यह उचित है कि चार स्‍त्रियां एक आदमी की पत्‍नी बने? यह हिन्‍दू हो या मुसलमान, यह असंगत है। चार स्‍त्रियों एक आदमी की पत्नियाँ बने, यह बात ही अमानवीय है।


यह सवाल नहीं है कौन हिन्‍दू है और कौन मुसलमान है। यह अपनी-अपनी इच्‍छा की बात है। फिर कल हम यह भी कह सकते है कि मुसलमान को हत्‍या करने की थोड़ी सुविधा देनी चाहिए। ईसाई को थोड़ी या हिन्‍दू को थोड़ी सुविधा देनी चाहिए हत्‍या करने की। नहीं, हमें व्‍यक्‍ति और आदमी की दृष्‍टि से विचार करने की जरूरत नहीं है। यह सवाल पूरे मुल्‍क का है, इसमें हिन्‍दू, मुसलमान और ईसाई अलग नहीं किये जा सकते।


दूसरी बात विचारणीय है कि हमारे देश में हमारी प्रतिभा निरंतर क्षीण होती चली गयी है। और अगर हम आगे भी ऐसे ही बच्‍चे पैदा करना जारी रखते है तो संभावना है कि हम सारे जगत में प्रतिभा में धीरे-धीरे पिछड़ते चले जायेंगे।


अगर इस जाति को ऊँचा उठाना होस्‍वास्‍थ्‍य में, सौन्‍दर्य में, प्रतिभा में, मेधा में तो हमें प्रत्‍येक आदमी को बच्‍चे पैदा करने का हक नहीं देना चाहिए।


संतति नियमन अनिवार्य तो होना ही चाहिए। बल्‍कि जब तक विशेषज्ञ आज्ञा न दें, तब तक बच्‍चा पैदा करने का हक किसी को भी नहीं रह जाना चाहिए। मेडिकल बोर्ड जब तक अनुमति न दे-दे, तब तक कोई आदमी बच्‍चे पैदा न कर सके।


कितने कोढ़ी बच्‍चे पैदा किये जाते है, कितने ईडियट, मूर्ख पैदा किये जाते है। कितने संक्रामक रोगों से भरे लोग बच्‍चे पैदा करते है और उनके बच्‍चे पैदा होते चले जाते है। और देश में दया और धर्म करने वाले लोग है। अगर वे खुद अपने बच्‍चे न पाल सकते हों, तो हम उनके लिए अनाथालय खोलकर उनके बच्‍चों पालने का भी इंतजाम कर देते है। ये ऊपर से तो दान और दया दिखाई पड़ रही है, लेकिन है बड़ी खतरनाक इंतजाम। इंतजाम तो यह होना चाहिए कि बच्‍चे स्‍वस्‍थ,सुन्‍दर,बुद्धिमान, प्रतिभाशाली वह संक्रामक रोगों से मुक्‍त हों।


असल में शादी के पहले ही हर गांव में हर नगर में डॉक्टरों की, विचारशील मनोवैज्ञानिकों, साइकोलॉलिस्‍टस की सलाहकारसमिति होनी चाहिए। जो प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति को निर्देश दे। अगर दो व्‍यक्‍ति शादी करते है, तो वे बच्‍चे पैदा कर सकेंगे या नहीं, यह बता दें। शादी करने का हक प्रत्‍येक को है। ऐसे दो लोग भी शादी कर सकेंगे जिनको सलाह नदी गयी हो, लेकिन बच्‍चो पैदा न कर सकेंगे।


हम जानते है कि पौधे पर क्रास ब्रीडिंगसे कितना लाभ उठाया जा सकता है। एक माली अच्‍छी तरह जानता है कि नये बीज कैसे विकसित किये जाते है। गलत बीजों को कैसे हटाया जा सकता है। छोटे बीज कैसे अलग किये जा सकते है, बड़े बीज कैसे बचाये जा सकते है। एक माली सभी बीज नहीं बो देता। बीजों को छाँटता है।      


हम अब तक मनुष्‍य-जाति के साथ उतनी समझदारी नहीं कर सके, जो एक साधारण सा माली बग़ीचे में करता है। यह भी आपको ख्‍याल हो कि जब माली को बड़ा फूल पैदा करना होता है तो वह छोटे फूलों को पहले काट देता है। आपने कभी फूलों की प्रदर्शनी देखी है, जो फूल जीतते है,उनके जीतने का कारण क्‍या है?


उनका कारण यह है कि माली ने होशियारी से एक पौधे पर एक ही फूल पैदा किया। बाकी फूल पैदा ही नहीं होने दिये। बाकी फूलों को उसने जड़ से ही अलग कर दिया, पौधे की सारी शक्‍ति एक ही फूल में प्रवेश कर गयी।


एक आदमी बारह बच्‍चे पैदा करता है तो भी कभी भी बहुत प्रतिभाशाली बच्‍चे पैदा नहीं कर सकता। अगर एक ही बच्‍चा पैदा करे तो बारह बच्‍चों की सारी प्रतिभा एक बच्‍चे में प्रवेश कर सकती है।

संभोग से समाधी की ओर 

ओशो

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